ब्लॉग: कुछ नेताओं का सब कुछ दांव पर है इन चुनावों में

By राजकुमार सिंह | Updated: May 17, 2024 11:07 IST2024-05-17T11:04:24+5:302024-05-17T11:07:44+5:30

बेशक 18 वीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव केंद्रीय सत्ता का फैसला करेंगे, लेकिन कुछ नेताओं का इनमें सब कुछ दांव पर लगा है।

Blog: Everything is at stake for some leaders in these elections | ब्लॉग: कुछ नेताओं का सब कुछ दांव पर है इन चुनावों में

फाइल फोटो

Highlights18वीं लोकसभा चुनाव में कुछ नेताओं का सब कुछ दांव पर लगा हैइस चुनाव में बसपा चमत्कार नहीं कर पाई तो राजनीतिक शोध का विषय बन कर रह जाएगीचुनाव में राष्ट्रीय लोकदल का भी सब कुछ दांव पर है

बेशक 18 वीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव केंद्रीय सत्ता का फैसला करेंगे, लेकिन कुछ नेताओं का इनमें सब कुछ दांव पर लगा है। हार के बावजूद उनका वजूद तो शायद बचा रहे लेकिन चुनावी राजनीति में प्रासंगिकता शायद ही बचे।

बात बहुजन समाज पार्टी से शुरू कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश में चमत्कारिक रफ्तार से बढ़ी बसपा अपने बूते भी सत्ता तक पहुंची। मायावती ने देश के सबसे बड़े राज्य का चार बार मुख्यमंत्री बनने का करिश्मा कर दिखाया।

2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन में 19.3 प्रतिशत वोट की बदौलत 10 सीटें जीतने में सफल बसपा अकेले लड़ने पर 2022 के विधानसभा चुनाव में 12.88 प्रतिशत वोट और मात्र एक सीट पर सिमट गई। जो दस सांसद जीते थे, उनमें से भी ज्यादातर इस चुनाव से पहले हाथी का साथ छोड़ गए।

लोकसभा चुनाव बसपा अकेले लड़ रही है। इस चुनाव में बसपा चमत्कार नहीं कर पाई तो राजनीतिक शोध का विषय बन कर रह जाएगी।

राष्ट्रीय लोकदल का भी सब कुछ इस चुनाव में दांव पर है। कांग्रेस से अलग भारतीय क्रांति दल बनानेवाले चौधरी चरण सिंह बाद में प्रधानमंत्री भी बने। हार-जीत होती रही, दल का नाम भी बदलता रहा, पर उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा से भी आगे पंजाब, मध्य प्रदेश और ओडिशा तक फैले उनके जनाधार और क्षत्रपों पर सवालिया निशान नहीं लगा।

उनके निधन के बाद, खासकर मंडल-कमंडल के राजनीतिक ध्रुवीकरण के चलते वह जनाधार उनके बेटे अजित सिंह के जीवनकाल में ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों तक सिमट गया। अजित के बेटे जयंत चौधरी में चरण सिंह की छवि देखनेवालों को उम्मीदें बहुत थीं, पर उन्होंने जिस तरह विपक्ष से पलटी मार कर मात्र दो लोकसभा सीटों के लिए सत्तापक्ष का दामन थाम लिया, उसके नतीजे किसान राजनीति के सबसे बड़े चौधरी की विरासत का भविष्य भी तय कर देंगे।

वैसी ही चुनौती बिहार में चिराग पासवान के समक्ष है। रामविलास पासवान, लालू यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाली लोकदली-समाजवादी राजनीतिक धारा से निकले। नीतीश की राजनीति लंबी नहीं बची है। लालू के वारिस के रूप में तेजस्वी ने खुद को स्थापित कर लिया है, लेकिन मायावती के अलावा उत्तर भारत में दूसरे बड़े दलित चेहरे के रूप में उभरे पासवान की विरासत पर संकट है। पहले लोक जनशक्ति पार्टी, भाई और भतीजे के बीच बंट गई तो अब चुनावी परीक्षा है।

चुनाव केंद्र की सत्ता के लिए है, पर महाराष्ट्र की राजनीति पर भी परिणामों का गहरा असर होगा। शिवसेना तोड़ कर भाजपा की मदद से मुख्यमंत्री भी बन गए एकनाथ शिंदे की असली परीक्षा इन चुनावों में है। यही हाल अजित पवार का है।

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