BLOG: डियर बचपन बहुत याद आते हो तुम

By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: March 27, 2018 03:11 PM2018-03-27T15:11:44+5:302018-03-27T15:22:43+5:30

वो बचपन का जमाना था कितना मासूम, था कितना सुहाना... पता नही क्यूँ पर बचपन आज तुम बहुत याद आ रहे हो, काश कोई ऐसा दरवाजा होता जिसके उस तरफ जाते ही तुम वापिस आ जाते।

BLOG: dear chlidhood i am always missing you | BLOG: डियर बचपन बहुत याद आते हो तुम

BLOG: डियर बचपन बहुत याद आते हो तुम

वो बचपन का जमाना था कितना मासूम, था कितना सुहाना...पता नही क्यूं, पर बचपन आज तुम बहुत याद आ रहे हो। काश कोई ऐसा दरवाजा होता जिसके उस तरफ जाते ही तुम वापिस आ जाते। कोई ऐसी घड़ी होती जिसको पीछे करते ही तुम मुझे फिर से गले लगाते और फिर से कहते चलो जीते हैं फिर वो सुहाने दिन। जिंदगी की इस आपाधापी में डियर बचपन तुम कहीं बहुत पीछे छूट से गए हो, पर आज मन कर रहा है कि एक बार फिर बचपन वापिस मिल जाए।

तुम थे तो कई गम नहीं होता था हर परेशानी सूरज के अस्त होने के साथ चली जाती थी। वक्त की इस रेस में हम सब कब इतने आगे निकल आए कि वो प्यारा वाला बचपन जिसे अब हम सबसे ज्यादा याद करते हैं कहीं खो सा गया है, जिसको सबसे ज्यादा हम सब याद करते हैं। सच, कितना मीठा सा था वो बचपन। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है।

शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए और गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी करने पर पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।

चोरी की सजा में था मजा

तुम थे तो मुहल्ले की आंटी के घर के शीशे को तोड़ना भी अपराध नहीं माना जाता था और आज अगर गलती से भी एक कांच का ग्लास भी टूट जाए तो अपराधी हो  जाते हैं। तब इतनी आपधापी नहीं थी, तुम भी स्वच्छंद थे और मैं भी स्वतंत्र थी। बचपन किसी कपोत की उड़ान जैसा ही तो होता है, निर्मल डरा सा, सहमा सा, बहुत कुछ देख लेने की चाहत, छोटी इच्छाएं, बड़ी सी भावनाएं। तब चोरी में भी  मजा था। ऐसा लगता था वो पड़ोसी भी बड़े अच्छे थे, जो शरारतों को बढ़ाने में साथ देते थे।

वो मां से बचकर खेलना

क्या दिन थे जिसमें छुट्टी वाले दिन देर तक सोने का दिल नहीं होता था,  बल्कि जल्दी से उठकर खेलने का जोश होता है। छुट्टी का दिन सोने के लिए नहीं, बस तुमको जीने के लिए आता था। तुम थे तो पता है मैं मां के सोते ही  छुपकर घर से निकल कर अपनी गुड़िया के साथ खेलना शुरू कर देती थी। अब वो गुड़िया भी नहीं और तुम भी नहीं हो।

वो दोस्ती करना और तोड़ना

डियर बचपन आपकी दोस्ती भी बड़ी प्यारी थी जिसमें कोई बदला नहीं था।वो बचपन ही तो होता था जहां हर रोज हम दोस्ती करते थे और हर रोज तोड़ते थे। एक बार हाथ बढानें पर दोस्त को गले से लगाते थे और लंच को शेयर करने में अपनी शान समझते थे। उस दोस्ती के की खनक आज भी दिल को सुंकून और आंखो में चमक दे जाती है।

जेब के सिक्कों से नहीं था प्यार

बचपन वही तो होता है जो कंचे और अंटियों को जेबों में भरकर सो जाए, बचपन  यानी जो पतंगों को बस्ते में छुपाकर लाए, बचपन मतलब जो मिट्टी को सानकर लड्डू बनाए, बचपन बोले तो वो जो बड़ों की हर चीज को छुपकर आजमाएं। वो बचपन ही तो था, जिसमें  जेब में सिक्कों से ज्यादा अपनों का प्यार भरा होता था। डियर बचपन यानी पेड़ पर चढ़ने के बाद जो उतरने के लिए चिल्लाए, बचपन वो जो अंदर से दरवाजा बंद कर बड़ों की परेशानी बन जाए, कुल मिलाकर बचपन यानी शरारत, शैतानी और मस्ती की खिलखिलाती पाठशाला।

रिश्तों पर बंदिशे नहीं थी

जब तुम थे तो किसी भी रिश्ते की बंदिश नहीं थी और आज जब तुम मुझसे दूर चले गए हो तो ये रिश्ते बांधते हैं। जब तुम थे तो दोस्त आते थे जाते थे लड़ते थे रोते थे हंसते थे पर टूटते नहीं थे और अब हम हर रोज टूटते हैं पर जुड़ते शायद नहीं है। पहले मन को संभालना नहीं पड़ता था और अब... नजारा बदला है तुम भी तो बदल गए हो। छोड़कर जो चले गए हो तुम मुझे।

कभी हंसी, कभी आंसू 

जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों  के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर और भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी का बचपन एक प्रेरणा भी है। बचपन में की गई गलतियां, नादानियां और शैतानियां बड़े होने पर जब याद आती हैं तो व्यक्ति सोचता है कि हां, हमने बचपन में ये-ये गलतियां की थीं और अब इसे नहीं दोहराएंगे, लेकिन अब कब? बचपन तो अब बीत चुका है! सुधार और परिमार्जन करने की उम्र की दहलीज पर हम खड़े हैं। अब वो जो बचपन बीत चुका है, वह अगले जन्म के पहले नहीं आने वाला। हां, उसकी सुखद-मधुर यादें आपके दिल-ओ-जेहन में मरते दम तक बनी रहेंगी। नहीं जाने वाली हैं वे मधुर यादें।

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