ब्लॉगः उपचुनाव परिणाम सबक हैं भविष्य के लिए

By राजकुमार सिंह | Published: September 14, 2023 09:13 AM2023-09-14T09:13:17+5:302023-09-14T09:13:56+5:30

हर राज्य का चुनाव परिणाम महत्वपूर्ण होता है, पर घोसी उपचुनाव परिणाम कई कारणों से खास है। वहां भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान 42 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए। भाजपा स्वयं को सांत्वना दे सकती है कि घोसी सीट तो पहले से ही सपा के पास थी, पर सवाल यह है कि दारा सिंह चौहान सरीखे चिर परिचित दलबदलू को ला कर अपनी यह फजीहत करवाने की क्या जरूरत थी?

Blog By-election results are lessons for the future | ब्लॉगः उपचुनाव परिणाम सबक हैं भविष्य के लिए

ब्लॉगः उपचुनाव परिणाम सबक हैं भविष्य के लिए

बेशक जरूरी नहीं कि मुख्य मुकाबले का भी वही परिणाम निकले, जो अभ्यास मैचों का हो, पर यह तो सच है कि छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में 38 दलों वाले सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए पर 28 दलोंवाला विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ भारी पड़ा है। उपचुनाव परिणामों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जाता, क्योंकि अकसर वे सत्तारूढ़ दल के पक्ष में जाते हैं, जिसके कारणों पर मतभिन्नता हो सकती है। पर पांच राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव से चंद महीने पहले हुए इन उपचुनावों के परिणामों को हल्के में लेना राजनीतिक समझदारी नहीं होगी। इसलिए भी कि ये उपचुनाव विपक्षी दलों का गठबंधन ‘इंडिया’ बनने के तीन महीने के अंदर ही हुए हैं और गठबंधन अभी तक बैठकों से निकल कर ढंग से जमीन पर भी नहीं उतर पाया है। फिर भी परिणाम उसका हौसला बढ़ानेवाले ही आए हैं। सत्ता- राजनीति कोई खेल नहीं कि ‘इंडिया’-एनडीए चुनावी संघर्ष के परिणाम को 4-3 बता कर इतिश्री कर ली जाए। इस तरह की आंकड़ेबाजी पूरा सच भी बयान नहीं करती। पांच राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव से चंद महीने पहले यह आंकड़ा सत्ता पक्ष के लिए खुशफहमीवाला नहीं माना जा सकता। बेशक एकतरफा निष्कर्ष निकालना अनावश्यक जल्दबाजी होगी।

हर राज्य का चुनाव परिणाम महत्वपूर्ण होता है, पर घोसी उपचुनाव परिणाम कई कारणों से खास है। वहां भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान 42 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए। भाजपा स्वयं को सांत्वना दे सकती है कि घोसी सीट तो पहले से ही सपा के पास थी, पर सवाल यह है कि दारा सिंह चौहान सरीखे चिर परिचित दलबदलू को ला कर अपनी यह फजीहत करवाने की क्या जरूरत थी? कहना न होगा कि शिवपाल यादव के चुनाव प्रबंधन के आगे भाजपाई रणनीतिकार घोसी में मात खा गए।

पश्चिम बंगाल में तो भाजपा अपनी सीट भी हार गई-वह भी तब, जबकि ‘इंडिया’ वहां एकजुट नहीं था। धुनगुड़ी सीट पिछली बार भाजपा ने जीती थी, लेकिन उपचुनाव में एक शहीद की विधवा पर दांव लगाने के बावजूद वह सीट नहीं बचा पाई। तृणमूल उम्मीदवार निर्मल चंद रॉय ने भाजपा उम्मीदवार तापसी रॉय को चार हजार वोटों से हरा दिया। बेशक पश्चिम बंगाल में तृणमूल के मुकाबले मुख्य विपक्षी दल बने रहने के लिए भाजपा अपनी पीठ थपथपा सकती है, पर त्रिकोणीय संघर्ष में भी अपनी ही सीट गंवा देना एक चेतावनी है। हां, त्रिपुरा में भाजपा ने जरूर कमाल किया है। उसने केंद्रीय राज्य मंत्री प्रतिमा भौमिक के इस्तीफे के चलते उपचुनाववाली धनपुर सीट तो बरकरार रखी ही है, आश्चर्यजनक रूप से अल्पसंख्यक उम्मीदवार उतार कर बॉक्सानगर सीट माकपा से छीन ली। केरल में पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी के निधन के चलते हुए पुथुप्पली उपचुनाव में उनके बेटे कांग्रेसनीत यूडीएफ उम्मीदवार के रूप में जीतने में सफल रहे। उत्तराखंड की बागेश्वर और झारखंड की डुमरी सीट के लिए हुए उपचुनाव के परिणाम अवश्य परंपरा -अनुरूप माने जा सकते हैं।

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