ब्लॉग: खतरे में हैं बुरहानपुर के जल-भंडारे

By पंकज चतुर्वेदी | Published: March 22, 2024 11:53 AM2024-03-22T11:53:52+5:302024-03-22T11:57:54+5:30

मुगलकाल की बेहतरीन इंजीनियरिंग का नमूना मध्यप्रदेश में ताप्ती नदी के किनारे बसे बुरहानपुर शहर में है। पिछले साल इसका नाम विश्व विरासत के लिए यूनेस्को को भेजा गया था।

Blog: Burhanpur's water reservoirs are in danger | ब्लॉग: खतरे में हैं बुरहानपुर के जल-भंडारे

फाइल फोटो

Highlightsमुगलकालीन इंजीनियरिंग का नमूना मध्यप्रदेश में ताप्ती नदी के किनारे बसे बुरहानपुर शहर में हैपिछले साल इसका नाम विश्व विरासत के लिए यूनेस्को को भेजा गया थाबुरहानपुर शहर से उत्तर-पश्चिम में चार जगहों पर पानी को रोकने का इंतजाम किया गया था

सतपुड़ा की सघन जंगलों वाली पहाड़ियों के भूगर्भ में धीरे-धीरे पानी रिसता है, फिर यह पानी प्राकृतिक रूप से चूने से निर्मित नालियों के माध्यम से सुरंगनुमा नहरों में आता है और यह जल कुइयों में एकत्र हो जाता है, आम लोगों के उपयोग के लिए। अभी दो दशक पहले तक इस संरचना के माध्यम से लगभग चालीस हजार घरों तक बगैर किसी मोटर पंप के पाइप के जरिये पानी पहुंचा करता था।

कुछ आधुनिकता की हवा, कुछ कोताही और कुछ पारंपरिक तकनीकी ज्ञान के बारे में अल्प सूचना; अपने तरीके की विश्व की एकमात्र ऐसी जल-प्रणाली को अब अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है। उस समाज से जूझना पड़ रहा है जो कि खुद पानी की एक-एक बूंद के लिए प्रकृति से जूझ रहा है। मुगलकाल की बेहतरीन इंजीनियरिंग का यह नमूना मध्यप्रदेश में ताप्ती नदी के किनारे बसे बुरहानपुर शहर में है। पिछले साल इसका नाम विश्व विरासत के लिए यूनेस्को को भेजा गया था।

बुरहानपुर में अपनाई गई तकनीक मूलतः सतपुड़ा पहाड़ियों से भूमिगत रास्ते से ताप्ती तक जाने वाले पानी को भंडाराओं में जमा करने की थी। बुरहानपुर शहर से उत्तर-पश्चिम में चार जगहों पर इस पानी को रोकने का इंतजाम किया गया था।

इनका नाम था मूल भंडारा, सुख भंडारा, चिंताहरण भंडारा और कुंडी या खूनी भंडारा। जल प्रवाह और वितरण का यह पूरा सिस्टम गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत पर आधारित है। भूमिगत नालिकाओं को भी हल्की ढलान दी गई है। अपने निर्माण के तीन सौ पचास वर्ष बाद भी यह व्यवस्था बिना किसी लागत या खर्च के काम कर रही है।

बीते कुछ सालों के दौरान इसमें पानी कुछ कम आ रहा है। सन्‌ 1985 में जहां यहां का भूजल स्तर 120 फुट पर था, वह 2010 में 360 और आज 470 फुट नीचे चला गया है। असल में जिन सुरंगों के जरिये पानी आता है, उनमें कैल्शियम व अन्य खनिजों की परतें जमने के कारण उनकी मोटाई कम हो गई और उससे पानी कम आने लगा।

इसके अलावा सतपुड़ा पर जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बरसात के दिन कम होना और इन नालियों व सुरंगों में कूड़ा आने के चलते यह संकट बढ़ता जा रहा है। सन 1992 में भू वैज्ञानिक डॉ. यूके नेगी के नेतृत्व में इसकी सफाई हुई थी, उसके बाद इनको साफ करने पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। हालांकि डॉ. नेगी ने उसी समय कह दिया था कि इस संवेदनशील संरचना की सफाई हर दस साल में हो।

आज भी यहां के पानी का पीएच वैल्यू 7.2 से 7.5 है जो एक उच्च स्तर के मिनरल वॉटर का मानक है। लेकिन खुले कुंडों के पास चूने के कारखाने लगने से प्रणाली के पानी की पवित्रता भी प्रभावित हुई है। कुंडों के आसपास लोगों का रहना बढ़ता गया है। वे कुंडों के पास बने चबूतरों पर नहाते-धोते हैं। इसका गंदा पानी भी रिसकर कूपकों में पहुंचता है। रेलवे स्टेशन के पास स्थित दो कुंड ऊपर से टूट गए हैं। फिर इसमें बरसात का पानी और कई बार नालियों का पानी भी सीधे चला जाता है।

अगर इन छोटी-बड़ी चीजों पर तत्काल ध्यान न दिया गया तो यह ऐतिहासिक प्रणाली बहुत जल्दी ही सिर्फ इतिहास की चीज बनकर रह जाएगी। बुरहानपुर के जल-भंडारे केवल ऐतिहासिक ही नहीं, भूगर्भ और भौतिकी विज्ञान के हमारे पारंपरिक ज्ञान के अनूठे उदाहरण हैं। इनका संरक्षण महज जलप्रदाय व्यवस्था के लिए नहीं, बल्कि विश्व की अनूठी जल प्रणाली को सहेजने के लिए भी अनिवार्य है।

Web Title: Blog: Burhanpur's water reservoirs are in danger

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