ब्लॉग: सुरंगों से खोखले हुए पहाड़ में बढ़ रहे हादसे
By प्रमोद भार्गव | Published: November 22, 2023 10:55 AM2023-11-22T10:55:44+5:302023-11-22T11:02:51+5:30
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा भूमि में धंस जाने के कारण सुरंग बना रहे 41 मजदूर फंस गए। उनके प्राण पिछले कुछ दिनों से संकट में जरूर हैं, लेकिन उन्हें बचाने के हरसंभव प्रयत्न युद्धस्तर पर किए जा रहे हैं।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा भूमि में धंस जाने के कारण सुरंग बना रहे 41 मजदूर फंस गए। उनके प्राण पिछले कुछ दिनों से संकट में जरूर हैं, लेकिन उन्हें बचाने के हरसंभव प्रयत्न युद्धस्तर पर किए जा रहे हैं।
यह हादसा उत्तरकाशी से 55 किमी दूर बन रही सिलक्यारा-पोलगांव निर्माणाधीन सुरंग के भीतर हुआ। यह हादसा भू-स्खलन के कारण सुरंग का 15 मीटर हिस्सा जमीन में धंस जाने के कारण घटित हुआ।
इस हादसे के बाद एक बार फिर न केवल उत्तराखंड, बल्कि हिमाचल प्रदेश में चल रहे विकास कार्यों के परिप्रेक्ष्य में पहाड़ों को काटकर किए जा रहे निर्माण कार्यों पर प्रश्नचिह्न लग गया है क्योंकि इसी साल मार्च में भी सुरंग हादसा घट चुका है।
समूचे हिमालय क्षेत्र में बीते एक दशक से पर्यटकों के लिए सुविधाएं जुटाने के परिप्रेक्ष्य में जल विद्युत संयंत्र और रेल परियोजनाओं की बाढ़ आई हुई है। इन योजनाओं के लिए हिमालय क्षेत्र में रेल गुजारने और कई हिमालयी छोटी नदियों को बड़ी नदियों में डालने के लिए सुरंगें निर्मित की जा रही हैं।
बिजली परियोजनाओं के लिए भी जो संयंत्र लग रहे हैं, उनके लिए हिमालय को खोखला किया जा रहा है। इस आधुनिक औद्योगिक और प्रौद्योगिकी विकास का ही परिणाम है कि आज हिमालय के शिखर दरकने लगे हैं।
उत्तराखंड में गंगा और उसकी सहयोगी नदियों पर एक लाख तीस हजार करोड़ की जल विद्युत परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। इन संयंत्रों की स्थापना के लिए लाखों पेड़ों को काटने के बाद पहाड़ों को निर्ममता से छलनी किया जा रहा है और नदियों पर बांध निर्माण के लिए बुनियाद हेतु गहरे गड्ढे खोदकर खंभे व दीवारें खड़े किए जाते हैं।
कई जगह सुरंगें बनाकर पानी की धार को संयंत्र के पंखों पर डालने के उपाय किए गए हैं। इन गड्ढों और सुरंगों की खुदाई में ड्रिल मशीनों से जो कंपन होता है, वह पहाड़ की परतों की दरारों को खाली कर देता है और पेड़ों की जड़ों से जो पहाड़ गुंथे होते हैं, उनकी पकड़ भी इस कंपन से ढीली पड़ जाती है।
नतीजतन तेज बारिश के चलते पहाड़ों के ढहने और हिमखंडों के टूटने की घटनाएं पूरे हिमालय क्षेत्र में लगातार बढ़ जाती हैं। यही नहीं कठोर पत्थरों को तोड़ने के लिए भीषण विस्फोट भी किए जाकर हिमालय को हिलाया जा रहा है। अगर प्रस्तावित सभी परियोजनाएं कालांतर में अस्तित्व में लाए जाने के उपाय जारी रहते हैं तो हिमालय का क्या हश्र होगा, कहना मुश्किल है।