जयंती विशेष: आज भी प्रासंगिक हैं मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: July 31, 2018 13:53 IST2018-07-31T07:41:07+5:302018-07-31T13:53:47+5:30

कथा सम्राट प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के लमही गाँव में हुआ था। आधुनिक हिन्दी उपन्यास के शिखर प्रेमचंद का आठ अक्टूबर 1936 को निधन हो गया।

Birthday Special: Even relevant are the compositions of Munshi Premchand | जयंती विशेष: आज भी प्रासंगिक हैं मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं

Premchand Jayanti

<p>अशोक मिश्र

महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा विदर्भ है जो कि आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से बेहद पिछड़ा हुआ है। इसकी एक वजह यह भी है कि इस संभाग में ज्यादा बड़े उद्योग नहीं हैं।

विदर्भ ही वह हिस्सा है जहां से आए दिन किसान आत्महत्या की खबरें उनकी दारुण स्थिति को बयां करती हैं। आज 31 जुलाई को हिंदी के सबसे बड़े कथाकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती है।

प्रेमचंद एक ऐसे लेखक रहे हैं जिन्होंने किसानों के दु:ख-दर्द को अपनी रचनाओं में सबसे अधिक उकेरा है।

जाहिर है कि प्रेमचंद की मृत्यु के आठ दशक बीतने के बाद भी किसानों के हालात जरा भी नहीं सुधरे हैं। यही कारण है कि प्रेमचंद की रचनाएं आज भी पठनीय हैं।   

अपने लेखन के माध्यम से प्रेमचंद ने सामाजिक प्रश्नों को साहित्य से जोड़ने का जो महत्वपूर्ण कार्य किया वह भावी भारतीय साहित्य के लिए एक आदर्श स्थिति के रूप में स्थापित हो गया है।

प्रेमचंद के कथा-साहित्य की विषय भूमि में अनेक सामाजिक कलंक अनावृत्त हुए हैं।

इन विषमतापूर्ण सामाजिक कलंकों को भोगते-ङोलते पात्र, करुणा को पाने के प्रथम हकदार हैं तथा शोषकों के अन्याय का प्रतिकार करने की ललकार भी इसी करुणा की प्रतिक्रि या के रूप में पाठकों के बीच आवंटित होती है।

प्रेमचंद इस  करुणा, पीड़ा और ललकार के महान सर्जक हैं। वह समाजोन्मुखी आदर्शवादिता के पक्षधर कथाकार हैं, मगर आदर्शवाद को वे हृदय-परिवर्तन के बल पर लाना चाहते हैं।

प्रेमचंद की कहानियों के पात्र और संवाद आज भी जीवंत हैं। आज भी धनिया, होरी, घीसू कहीं भी किसी भी गांव में देखे जा सकते हैं।

यह संतोष और साथ ही गर्व की बात है कि भारतीय साहित्यकारों के बीच विगत आठ दशकों से प्रेमचंद लगातार बहस का पर्याय बने रहे हैं। उनका साहित्य आज भी जीवंत और प्रासंगिक है।

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(अशोक मिश्र स्तंभकार हैं)

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