भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: कुशल कर्मियों के निर्यात का सुअवसर न गंवाएं
By भरत झुनझुनवाला | Updated: January 16, 2021 15:06 IST2021-01-16T15:04:56+5:302021-01-16T15:06:14+5:30
मैकिन्से ग्लोबल सलाहकार कंपनी के अनुसार वर्तमान में विश्व में 8 करोड़ कुशल कर्मचारियों की कमी है जबकि विकासशील देशों में 9 करोड़ अकुशल कर्मी बेरोजगार हैं.

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल में जापान के साथ एक अनुबंध को मंजूरी दी है जिसके अंतर्गत भारत के कुशल श्रमिक जापान जाकर कार्य कर सकेंगे. यह कदम सुदिशा में है और इसे पूरी क्षमता से लागू करना चाहिए.
मैकिन्से ग्लोबल सलाहकार कंपनी के अनुसार वर्तमान में विश्व में 8 करोड़ कुशल कर्मचारियों की कमी है जबकि विकासशील देशों में 9 करोड़ अकुशल कर्मी बेरोजगार हैं. इससे स्पष्ट है कि यदि हम अपने करोड़ों अकुशल कर्मियों को कौशल दे सकें तो वे विश्व में अपनी सेवाएं प्रदान करके अपना जीवनयापन कर सकते हैं और भारत के लिए भी पूंजी के रूप में साबित होंगे.
यदि हम इन्हें कौशल नहीं उपलब्ध करा सके तो ये बेरोजगार रहकर एटीएम तोड़ने जैसे अपराधों में संलिप्त होंगे. ऐसे में ये अभिशाप बन जाएंगे. लेकिन आज देश में कौशल विकास की परिस्थिति बहुत ही दुरूह है.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ वेल्डिंग के प्रमुख एस. श्रीनिवासन के अनुसार बीते समय में 10 से 20 हजार वेल्डर भारतीय कंपनियों ने चीन, रूस और पूर्वी यूरोप के देशों से बुलाए हैं क्योंकि अपने देश में कुशल वेल्डर उपलब्ध नहीं हैं. एक तरफ हम अपने कर्मियों को जापान भेजने का मन बना रहे हैं तो दूसरी तरफ हमारे पास अपनी जरूरत के ही वेल्डर उपलब्ध नहीं हैं और हम चीन से वेल्डर बुलाकर अपना काम चला रहे हैं. हम अपने देश में वेल्डर जैसे सामान्य कौशल का भी पर्याप्त विकास नहीं कर पा रहे हैं.
विश्व बैंक ने 2008 में कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के विद्यालयों का एक सर्वे किया था. उन्होंने पाया कि अध्यापक विद्यालय में उपस्थित नहीं होते हैं और यदि उपस्थित होते हैं तो भी बच्चों की पढ़ाई में कोई अंतर नहीं पड़ता है. स्थानीय निकायों जैसे पंचायतों को उन पर निगरानी रखने का अधिकार देने से भी कोई अंतर नहीं पड़ता है.
वस्तुस्थिति यह है कि हमारे सरकारी विद्यालयों में अध्यापकों की नौकरी पूर्णतया सुरक्षित है और उनकी बच्चों को पढ़ाने में तनिक भी दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि उन्हें अपनी नौकरी पर आंच आने की कोई संभावना नहीं दिखती है. अपने देश में कौशल विकास की आधारशिला जो बुनियादी शिक्षा की है, वह कमजोर है. लगभग ऐसी ही स्थिति औद्योगिक शिक्षा संस्थानों में है.
आईटीआई पास लोग मेरे पास काम करने को आए. उनके पास कम्प्यूटर विज्ञान में उत्तीर्ण होने का प्रमाण पत्न था. किंतु वे अपने विषय का तनिक भी ज्ञान नहीं रखते थे. आईटीआई में वेल्डिंग सिखाने वाले अध्यापक को न तो स्वयं वेल्डिंग आती है और न ही वहां वेल्डिंग के उपकरण मौजूद हैं जिनसे छात्नों को वेल्डिंग सिखाई जा सके. हमारी शिक्षा प्रणाली मात्न प्रमाणपत्न बांटने तक सीमित रह गई है.
यही कारण है कि करोड़ों अकुशल छात्र निठल्ले घूम रहे हैं और कौशल के अभाव में वे अपनी सेवा देश को प्रदान नहीं कर पा रहे हैं.
कैबिनेट के मंतव्य के अनुसार जापान को कुशल कर्मियों को उपलब्ध करने के लिए हमें वर्तमान शिक्षा तंत्न के बाहर सोचना होगा. वर्तमान शिक्षा तंत्न का आमूलचूल सुधार करना होगा.
सेंटर फॉर सिविल सोसायटी के एक अध्ययन के अनुसार हांगकांग, फिलीपीन्स, पाकिस्तान, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, ओडिशा आदि स्थानों पर प्रयोग किए गए हैं जिसके अंतर्गत सरकार द्वारा छात्रों को वाउचर दिए जाते हैं जिसे वे अपने मनपसंद विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के लिए उपयोग कर सकते हैं. इन वाउचरों का सभी स्थानों पर अच्छा प्रभाव देखा गया है.
इसलिए केंद्र समेत सभी राज्य सरकारों को चाहिए कि वर्तमान शिक्षा तंत्न को निरस्त करके वाउचर पद्धति लागू करें. सभी छात्नों को वाउचर दिए जाएं जिससे वे अपनी मर्जी के सरकारी अथवा प्राइवेट स्कूल में अपनी फीस अदा कर सकें. तब सरकारी टीचरों को भी वास्तव में पढ़ाने में रुचि उत्पन्न होगी और वाउचर मिलने से निर्धन छात्न के लिए अच्छे प्राइवेट स्कूल में दाखिला लेना संभव हो जाएगा. इससे हमारे युवकों का कौशल विकास हो पाएगा.