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भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: सेवा क्षेत्र पर देना चाहिए था विशेष ध्यान

By भरत झुनझुनवाला | Updated: February 2, 2020 05:10 IST

मैं ये नहीं कह रहा हूं कि सड़कों में निवेश ठीक नहीं है. मैं यह कह रहा हूं कि जो इस समय रोजगार उपलब्ध कराने की प्राथमिकता है उसके लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और पंचायतों तक ब्रॉडबैंड पहुंचाने में बहुत अधिक रकम आवंटित की जानी चाहिए थी.

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वित्त मंत्नी ने स्वीकार किया है कि भारत में पंद्रह से पैंसठ वर्ष की कार्यशील जनसंख्या अधिक है, इसमें वृद्धि होने को है और इन्हें उत्पादक बनाना एक बड़ी चुनौती है. इस दिशा में उन्होंने घोषणा की है कि एक ऑनलाइन डिग्री कार्यक्रम कुछ संस्थाओं द्वारा शुरू किए जाएंगे. दूसरा कि विदेशी छात्नों को भारत में प्रवेश दिलाने के लिए आई-सैट नाम की एक अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा ली जाएगी जिससे हम अधिक संख्या में बाहरी छात्नों को ला सकें.

तीसरा, टीचरों और नर्सो की अंतर्राष्ट्रीय जरूरतों को पूरी करने के लिए उनकी ट्रेनिंग और भाषा की योग्यता को मेजबान देश के अनुसार बनाने के प्रयास किए जाएंगे. चौथा, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस जैसी शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा. ये चारों प्रयास अत्यंत सराहनीय और सही दिशा में हैं. लेकिन इन तमाम कार्यक्रमों पर व्यय की जाने वाली राशि नगण्य है. जैसे आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के विकास और पंचायतों तक ब्रॉडबैंड पहुंचाने के लिए क्र मश: मात्न 8 हजार करोड़ रु. और 6 हजार करोड़ रु. की रकम आवंटित की गई है. इसकी तुलना में बुनियादी संरचना जैसे सड़क और एयरपोर्ट के लिए बहुत ज्यादा रकम आवंटित की गई है.

यह जो सड़क जैसी बुनियादी संरचना है वह मुख्यत: मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी होती है. सेवा क्षेत्न जैसे ऑनलाइन डिग्री और बाहरी छात्नों को लाने जैसे कार्यक्रमों के लिए सड़क और एयरपोर्ट से ज्यादा जरूरी है कि हम आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस में ज्यादा निवेश करते. मैं ये नहीं कह रहा हूं कि सड़कों में निवेश ठीक नहीं है. मैं यह कह रहा हूं कि जो इस समय रोजगार उपलब्ध कराने की प्राथमिकता है उसके लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और पंचायतों तक ब्रॉडबैंड पहुंचाने में बहुत अधिक रकम आवंटित की जानी चाहिए थी. यदि हम हाईवे पर कुछ कम व्यय करते तो भी काम चल जाता.

कृषि पर जो बातें हम पिछले बीस वर्षो के बजटों में सुनते आए हैं, उन्हीं को दोहराया गया है. कोल्ड स्टोरेज आदि को बढ़ावा दिया गया है जो कि सही दिशा में है. लेकिन कृषि की मूल समस्या यह है कि कृषि उत्पादों के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में लगातार गिरावट आ रही है. विकास के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान भी कम होता जाता है. इसलिए कृषि की बुनियादी सुविधाओं को हम सुधार भी देंगे तो भी वैश्विक मूल्यों की गिरावट को देखते हुए कृषि लाभप्रद नहीं हो जाएगी. हम देख चुके हैं कि वर्ष 2014 से एनडीए सरकार लगातार किसानों की आय को बढ़ाने के वायदे करते आ रही है लेकिन हकीकत में एक प्रतिशत भी वृद्धि हुई हो, ऐसा नहीं लगता. इसका कारण है कि कृषि मूलत: लाभप्रद नहीं रह गई है. सरकार को इस सूर्यास्त क्षेत्न में अपनी ताकत लगाने के स्थान पर सूर्योदय वाले सेवा क्षेत्न पर विशेष ध्यान देना चाहिए था.

यही परिस्थिति लगभग मध्यम और छोटे उद्योगों की है. जिस प्रकार पिछले बीस वर्षो में इन्हें ऋण उपलब्ध कराने की बार-बार बात की जा रही है और इन्हें ऋण उपलब्ध कराया भी गया होगा लेकिन इससे इनकी हालत में तनिक भी सुधार नहीं हो रहा है. कारण यह है कि इन्हें ऋण उपलब्ध कराने के साथ-साथ सरकार ने खुले व्यापार को अपना रखा है और मेक इन इंडिया के तहत बड़े उद्योगों को बढ़ावा दे रही है. देसी और विदेशी बड़े उद्योगों की उत्पादन लागत कम आती है इसलिए चुनिंदा क्षेत्नों जैसे फुटबाल और फर्नीचर को छोड़ दें तो बाकी तमाम क्षेत्नों में छोटे उद्योग बड़े उद्योगों के सामने टिक ही नहीं रहे हैं.  

आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के संदर्भ में वित्त मंत्नी ने सरकारी शिक्षा तंत्न के सुधार पर कुछ भी नहीं कहा है. आज हमारे कॉलेजों में युवा केवल डिग्री प्राप्त करने के लिए प्रवेश लेते हैं. उन्हें शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं होता है. वित्त मंत्नी ने जो यह कहा है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में लड़कियों की शिक्षा का अनुपात अधिक हो रहा है, यह बहुत सुखद है लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह है कि लड़कों को यह भरोसा नहीं है कि शिक्षा प्राप्त करने से वे रोजगार कर सकेंगे अथवा अपने परिवार को पाल सकेंगे इसलिए लड़कों में शिक्षा के प्रति अरुचि है. उस मूल समस्या को वित्त मंत्नी ने दरकिनार कर दिया है. जरूरत यह थी कि वित्त मंत्नी हमारे विश्वविद्यालय एवं कॉलेज की व्यवस्था को सुधारने के कदम उठातीं.

पर्यावरण की दृष्टि से बजट में पूरा ध्यान पानी के अधिक दोहन पर है. यद्यपि भूमि के पुनर्भरण के प्रति भी कुछ आस्था दिखाई गई है. जैसे सोलर पैनल से चलने वाले सोलर पम्प सेट बनाने की बात की गई है जो कि सही दिशा में है. लेकिन जब भूमिगत पानी का स्तर पूरे देश में गिर रहा है उस समय पम्प सेटों को प्रोत्साहन देने का कोई औचित्य नहीं है चाहे वे सोलर ऊर्जा से ही चलने वाले हों. जरूरत थी कि हम साथ-साथ पानी के पुनर्भरण पर विशेष ध्यान देते. लेकिन वित्त मंत्नी ने इस दिशा में बहुत छोटा कदम उठाया है.

इस बजट में यद्यपि कुछ अच्छी बातें कही गई हैं जिनका मैं समर्थन करता हूं लेकिन मूल रूप से जो सूर्योदय का सेवा क्षेत्न है, उसके ऊपर कम ध्यान है और जो घिसा-पिटा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर है, उसी के लिए बुनियादी संरचना बनाने के प्रयास किए गए हैं जो कि अंतत: निष्फल होते दिखाई पड़ रहे हैं.

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