भरत झुनझुनवाला: दिल्ली मॉडल को समझ कर लड़ें कोरोना से लड़ाई
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 30, 2020 02:33 PM2020-04-30T14:33:21+5:302020-04-30T14:33:21+5:30
लॉकडाउन के दौरान तमाम सरकारी कर्मी घर बैठे वेतन उठा रहे हैं जैसे पीडब्ल्यूडी, शिक्षा, इत्यादि के. इन्हें कोरोना संक्रमण के सर्वे तथा मॉनिटरिंग पर लगा देना चाहिए. अपने देश में 2 करोड़ सरकारी कर्मी हैं. एक करोड़ स्वास्थ्य एवं पुलिस में हैं, तो एक करोड़ घर बैठे हैं.
अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी को मुफ्त बिजली और पानी तथा महिलाओं को बस में मुफ्त यात्रा की सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं. साथ में उन्होंने सरकारी विद्यालय एवं अस्पतालों के कार्य में अद्भुत सुधार किया है. राष्ट्रीय स्तर पर इसी प्रकार की सरकारी कार्यकुशलता से हम कोरोना के प्रसार को रोक सकेंगे.
चीन ने वुहान को वापस खोल दिया है. इसका मुख्य कारण उसके सरकारी कर्मियों की कार्यकुशलता दिखती है. सोशल डिस्टेंसिंग का नियम निकालना एक बात है, उसका अनुपालन कराना दूसरी बात है. अनुपालन करने के लिए सरकारी कर्मियों की कार्यकुशलता जरूरी है. जैसे रेलवे स्टेशन पर लोग एक साथ खड़े हों तो कंडक्टर को चुस्त होना होगा. उन पर सोशल डिस्टेंसिंग न रखने का फाइन लगाना होगा. लेकिन यदि कंडक्टर का ध्यान खाली बर्थ को बेचने पर हो तो वह सोशल डिस्टेंसिंग पर ध्यान नहीं देगा. इसलिए दिल्ली में सरकारी कर्मियों की कार्यकुशलता से हमें सबक लेना चाहिए.
लॉकडाउन के दौरान तमाम सरकारी कर्मी घर बैठे वेतन उठा रहे हैं जैसे पीडब्ल्यूडी, शिक्षा, इत्यादि के. इन्हें कोरोना संक्रमण के सर्वे तथा मॉनिटरिंग पर लगा देना चाहिए. अपने देश में 2 करोड़ सरकारी कर्मी हैं. एक करोड़ स्वास्थ्य एवं पुलिस में हैं, तो एक करोड़ घर बैठे हैं. देश में 30 करोड़ परिवार हैं. इन घर बैठे कर्मियों को 30-30 परिवार आवंटित कर देने चाहिए. प्रतिदिन इन्हें इन परिवारों से मिलकर कोरोना की जानकारी लेनी चाहिए. लेकिन यह भी तब सफल होगा जब ये घर बैठे कर्मी फर्जी जानकारी ऊपर न भेज दें. इसलिए बायोमीट्रिक रिकॉर्डिग तथा फोटो भेजनी चाहिए. इस दिशा में दिल्ली मॉडल को समझने की जरूरत है.
जानकार बताते हैं कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में छोटी-मोटी दवाएं वास्तव में मुफ्त मिल रही हैं. समस्या होने पर सुनवाई भी हो रही है. दिल्ली के स्कूलों में ढांचागत सुविधाओं जैसे स्कूल की कुर्सियां और ब्लैक बोर्ड आदि में तो बहुत सुधार हुआ है लेकिन अध्यापकों की रुचि में सुधार कम हुआ है. वह भी तब जब उपमुख्यमंत्नी मनीष सिसोदिया इस कार्य को व्यक्तिगत रूप से मॉनिटर करते रहते हैं.
दिल्ली जैसे छोटे राज्य में अस्पतालों और विद्यालयों को मॉनिटर करना फिर भी संभव है. उपमुख्यमंत्नी का इनके पास पहुंचना भी संभव है. लेकिन इस कार्यप्रणाली को किसी भी बड़े राज्य में लागू करना कठिन हो जाता है. बड़े राज्य के शिक्षा मंत्नी के लिए यह संभव नहीं है कि वह तमाम जगह पर जाकर स्वयं जांच कर सके, विद्यार्थियों से बात कर सके अथवा शिकायतों को गहराई से समझ सके. लगभग यही प्रणाली प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात में लागू की गई थी. उनके राज्य स्तर पर हर क्षेत्न में सीधे व्यक्तिगत संपर्क थे. लेकिन उनके द्वारा ही केंद्र में आने पर वह कार्यप्रणाली सफल नहीं हो सकी है. जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार बढ़ रहा है.
दिल्ली मॉडल की सफलता में राज्य की ऊंची आय की भी भूमिका है. दिल्ली और दूसरे राज्यों में पहला अंतर यह है कि दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2018-19 में 365 हजार प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष थी. इसकी तुलना में उत्तर प्रदेश की आय मात्न 61 हजार रु. एवं बिहार की आय 49 हजार रु. प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष है. अत: यदि दिल्ली की सरकार द्वारा मुफ्त बिजली, पानी एवं सरकारी विद्यालयों को सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकीं तो दूसरे बड़े एवं कमजोर राज्यों द्वारा ये ही सुविधा उपलब्ध कराना कठिन लगता है. यहां यह अंतर भी है कि दिल्ली सरकार के पास पुलिस आदि व्यवस्था का बोझ नहीं होता है जबकि दूसरे राज्यों को अपने बजट से तमाम पुलिस व्यवस्था का भी भार उठाना पड़ता है.
इन कारणों से दिल्ली के मॉडल को बड़े राज्यों द्वारा अथवा राष्ट्र के स्तर पर लागू करना कठिन होगा. वास्तव में हमें ढांचागत प्रशासनिक सुधार करने होंगे. बड़े राज्यों की सरकारों को चाहिए कि बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य की व्यवस्था के कार्यान्वयन में सुधार करें. अधिकारी और कर्मियों की कार्यकुशलता का बाहरी स्वतंत्न कंसल्टेंट से गुप्त आकलन कराया जाए और जनता द्वारा गुप्त आकलन विभिन्न तरीकों से कराया जाए.
इस प्रकार के आकलनों से सरकार उन अध्यापकों, प्रधानाचार्यो एवं डॉक्टरों को संस्थागत तरीके से चिह्न्ति कर सकेगी जो कि वास्तव में कार्यकुशल हैं और उन्हें दायित्व देकर पूरी व्यवस्था को सुधारा जा सकता है. इसके साथ-साथ वर्तमान में घर बैठे सरकारी कर्मियों को हर चौराहे, मंडी, मॉल, बस स्टेशन और रेलवे स्टेशन पर खड़ा किया जा सकता है ताकि वे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराएं. इस प्रकार के सिस्टम को बनाकर ही दिल्ली मॉडल को स्थायी बनाया जा सकता है और कोरोना से लड़ा जा सकता है.