ब्लॉग: क्या समाज बेटियों की आशा-आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रहा ?
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: August 1, 2023 04:27 PM2023-08-01T16:27:21+5:302023-08-01T16:27:48+5:30
दुनिया में पिछले 50 वर्षों में 14.26 करोड़ लड़कियां तथा महिलाएं लापता हुईं. आंकड़ों के लिहाज से पचास वर्षों में दुनिया में लापता हुई हर तीन में से एक लड़की भारत की थी।
देश में 2019 से 2021 के बीच 13.13 लाख महिलाएं तथा लड़कियां गायब हो गईं. यह आंकड़ा केंद्रीय गृह मंत्रालय का है और यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षणिक तरक्की के बावजूद देश में लापता होने वाली लड़कियों तथा महिलाओं की संख्या में लगातार वृद्धि क्यों हो रही है.
क्या उनके पालन-पोषण में कोई कमी रह गई है, उन्हें दी जा रही शिक्षा में कोई त्रुटि है या पूरा पारिवारिक एवं सामाजिक परिवेश उनके अनुकूल नहीं है. अब इस बात पर चर्चा नहीं की जानी चाहिए कि किस राज्य में गुमशुदा लड़कियों तथा महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा या सबसे कम है.
मंथन इस पर होना चाहिए कि हमारी बेटियां इतनी बड़ी संख्या में लापता क्यों हो रही हैं और समय के साथ यह संख्या बढ़ती क्यों जा रही है. सरकार के आंकड़ों में यह नहीं बताया गया है कि लापता बेटियों में से कितनों की घरवापसी हुई.
दुनिया में पिछले 50 वर्षों में 14.26 करोड़ लड़कियां तथा महिलाएं लापता हुईं. आंकड़ों के लिहाज से पचास वर्षों में दुनिया में लापता हुई हर तीन में से एक लड़की भारत की थी.
भारत में 2019 से 2021 के बीच जो 13.13 लाख लड़कियां-महिलाएं लापता हुईं, उनमें ज्यादातर कम उम्र की हैं. लापता होने वाली बेटियों में 18 वर्ष से अधिक उम्र वालों की संख्या 10.61 लाख है जबकि 18 वर्ष से कम उम्र की ढाई लाख से अधिक बच्चियां लापता हुईं.
मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक परिवेश के जानकार इतनी बड़ी संख्या में बेटियों के लापता होने के कारणों पर लगभग एकमत हैं. भारत में सामाजिक, आर्थिक परिवेश को इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है. गरीबी के कारण लड़कियों में मानसिक उथल-पुथल बहुत ज्यादा होती है. बढ़ती उम्र के साथ-साथ उनकी जरूरतें भी बढ़ती हैं जो गरीबी के कारण पूरी नहीं हो पातीं.
बेहतर जिंदगी की तलाश में किसी के बहकावे में आकर पलायन कर जाती हैं. इसके अलावा प्रेम प्रकरण भी लड़कियों के लापता होने का बहुत बड़ा कारण है.
मानव तस्करों के बहकावे में भी लड़कियां तथा युवा महिलाएं घर छोड़कर चली जाती हैं. हमारा सामाजिक परिवेश महिलाओं तथा लड़कियों के बहुत अनुकूल नहीं है. लड़कियों के साथ भेदभाव पारिवारिक तथा सामाजिक रूप से होता है. परिवार आर्थिक रूप से संपन्न हो या गरीब, लड़कियों के साथ बराबरी का व्यवहार नहीं किया जाता.
परिवार में जब भी आगे बढ़ाने की बात होती है तो बेटों को प्राथमिकता दी जाती है. कार्य तथा शिक्षा स्थल में भी उपेक्षा तथा अपमान से व्यथित होकर लड़कियां और युवतियां हताश होकर घर से चली जाती हैं. समय के साथ-साथ शिक्षा का विकास तेजी से होता जा रहा है. लड़कियों की शिक्षा और रोजगार को सुगम बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं.
इससे कार्यस्थलों पर भी महिलाओं की संख्या बढ़ी है और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी लड़कियां आगे आ रही हैं. शिक्षा के साथ-साथ आर्थिक विकास के द्वार भी खुलते हैं. आर्थिक आत्मनिर्भरता से आत्मविश्वास भी आता है.
शिक्षा का एक बड़ा फायदा यह भी है कि लड़कियों में अच्छे-बुरे की समझ आ जाती है. होना तो यह चाहिए कि शिक्षा एवं आत्मनिर्भरता के साथ लड़कियों-महिलाओं के लापता होने की घटनाओं में भी कमी आनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है. हम अक्सर अमेरिका, यूरोप तथा अन्य विकसित देशों में पारिवारिक ढांचे में बिखराव तथा नैतिक मूल्यों के पतन की चर्चा करते हैं लेकिन इन राष्ट्रों में किशोरियों और युवा महिलाओं के लापता होने की संख्या भारत जितनी बड़ी नहीं है.
इन देशों में मानव तस्करी भारत तथा अन्य गरीब देशों की तरह विकराल नहीं है. तमाम कमजोरियों के बावजूद विकसित राष्ट्रों में लड़कियों तथा युवा महिलाओं के लापता होने की कम संख्या का कारण शायद यह हो सकता है कि बच्चों को युवावस्था में पैर रखते ही अपने फैसले खुद करने का अधिकार मिल जाता है जबकि भारत में शादी के पहले माता-पिता के घर में और शादी के बाद ससुराल में लड़की को हर बात के लिए परिजनों से अनुमति लेनी पड़ती है.
भेदभाव के साथ-साथ गरीबी और अशिक्षा ऐसी मजबूरियां पैदा कर देती हैं जिनसे बेटियां सुनहरे भविष्य की आस में घर छोड़ देती हैं और गलत हाथों में पड़कर अपना जीवन बर्बाद कर लेती हैं.
लड़कियों तथा कम उम्र की महिलाओं के बड़ी संख्या में लापता होने के आर्थिक, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर परिवार, समाज तथा सरकार को नए सिरे से गहन मंथन करना पड़ेगा ताकि बेटियों को बेहतर माहौल मिले और वे अपनी इच्छा के मुताबिक अपने भविष्य को संवार सकें.