ग्लोबलाइजेशन से पीछे हटें
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 16, 2018 12:11 PM2018-07-16T12:11:42+5:302018-07-16T12:11:42+5:30
विश्व में संरक्षणवादी नीतियां बढ़ रही हैं। इंग्लैंड के लोगों ने लगभग दो वर्ष पूर्व निर्णय दिया था कि वे यूरोपियन यूनियन से बाहर आएंगे जिसे ब्रेक्जिट नाम से जाना जा रहा है। इसी प्रकार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने संरक्षणवादी नीतियों को बढ़ावा दिया है। उन्होंने भारत और चीन से आयातित माल पर आयात कर बढ़ा दिए हैं।
लेखक- भरत झुनझुनवाला
विश्व में संरक्षणवादी नीतियां बढ़ रही हैं। इंग्लैंड के लोगों ने लगभग दो वर्ष पूर्व निर्णय दिया था कि वे यूरोपियन यूनियन से बाहर आएंगे जिसे ब्रेक्जिट नाम से जाना जा रहा है। इसी प्रकार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने संरक्षणवादी नीतियों को बढ़ावा दिया है। उन्होंने भारत और चीन से आयातित माल पर आयात कर बढ़ा दिए हैं। उनका मानना है कि माल सस्ता पड़े तो भी उसका आयात नहीं करना चाहिए और अपने देश में ही उत्पादन बढ़ाना चाहिए जिससे देश में राजस्व और रोजगार का विस्तार हो। इन नीतियों के विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज भी वैश्वीकरण के समर्थक दिख रहे हैं।
ग्लोबलाइजेशन का उद्देश्य था कि हमें आधुनिक तकनीकें मिलेंगी। इस उद्देश्य को हासिल करने में हम कतिपय सफल भी हुए हैं। जैसे अस्सी के दशक में अपने देश में मुख्यत: एम्बेसडर कार चलती थी। यह कार प्रति लीटर 8 किमी का न्यून एवरेज देती थी। आज देश में तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कारें बनाई जा रही हैं जो कि 25 किमी तक का एवरेज दे रही हैं। लेकिन क्या इन आधुनिक तकनीकों के आगमन को ग्लोबलाइजेशन की देन ही माना जा सकता है? आज टाटा मोटर्स तथा महिंद्रा एंड महिंद्रा द्वारा वैश्विक गुणवत्ता की कारें निर्यात की जा रही हैं। यदि ये कंपनियां आज उत्तम कारें बना सकती हैं तो अस्सी के दशक में भी बना सकती थीं।
सच यह है कि सरकार ने अस्सी के दशक में घरेलू कार निर्माताओं के बीच प्रतिस्पर्धा को दबा रखा था। जानकार बताते हैं कि उस समय टाटा देश में कार बनाने के इच्छुक थे परंतु उन्हें लाइसेंस नहीं दिया गया। देश के निजी क्षेत्र को प्रतिस्पर्धा का टॉनिक देने के स्थान पर बाजार को एकाधिकार की नींद की गोली दे रखी थी। फलस्वरूप कार निर्माता घटिया कार बनाते रहे। घरेलू प्रतिस्पर्धा की यह नींद तब टूटी जब संजय गांधी ने कार बनाने की पहल की। यानी नई तकनीकों को अपनाने का श्रेय वास्तव में प्रतिस्पर्धा को जाता है। यह प्रतिस्पर्धा घरेलू है या विदेशी इससे कोई अंतर नहीं पड़ता जैसे मिट्टी का घड़ा बनाने वाले कुम्हार को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है कि प्लास्टिक का घड़ा भारत में बना है या चीन में। पिछले दशक में टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी द्वारा मोबाइल फोन कंपनियों के बीच जिस प्रकार से प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया गया वह सुशासन की बेहतरीन मिसाल है। यही फार्मूला यदि हमने अस्सी के दशक में अपनाया होता तो हम तमाम उच्च तकनीकों को बिना विदेशी निवेश के हासिल कर सकते थे।
ग्लोबलाइजेशन का दूसरा उद्देश्य था कि आर्थिक विकास के लिए हमें विदेशी पूंजी उपलब्ध होगी। बीते दशक में भारी मात्र में विदेशी पूंजी आई भी है। लेकिन उतनी ही मात्र में या उससे अधिक पूंजी बाहर भी गई हो सकती है। केंद्रीय राज्यमंत्री जयंत सिन्हा की मानें तो हर वर्ष 300 से 600 अरब डॉलर की रकम विकासशील देशों से हवाला आदि के रास्तों से बाहर जा रही है। इस राशि का एक हिस्सा वापस अपने देश में ‘विदेशी निवेश’ के रूप में आ रहा है। जैसे आपको अपनी दुकान में एक करोड़ रुपए का निवेश करना है। आपने इस रकम को पहले हवाला से विदेश भेजा, फिर बैंकों के माध्यम से इसे वापस लाकर अपनी दुकान में ‘विदेशी निवेश’ दिखा दिया। ऐसा करने से इस निवेश पर अर्जित रकम पर इनकम टैक्स आपको उस देश में अदा करना होगा जहां से आपने ‘विदेशी निवेश’ को भेजा था। कई देशों में इनकम टैक्स की दर कम है। इसलिए भारतीय उद्यमी अपनी पूंजी का सीधा निवेश करने के स्थान पर विदेश से घुमाकर ‘विदेशी’ निवेश कर रहे हैं। ग्लोबलाइजेशन से तीसरा अपेक्षित लाभ निर्यातों-विशेषकर कृषि निर्यातों में वृद्घि का था। 1995 में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की संधि पर हस्ताक्षर करते समय हमें भरोसा दिया गया था कि हमारे किसानों को अपना माल विश्व बाजार में बेचने का अवसर मिलेगा। लेकिन विकासशील देशों ने चतुराई से अपने किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी को जारी रखा है। फलस्वरूप हमारे कृषि निर्यातों को विशेष सहूलियत नहीं मिली है। उल्टे विदेशी माल के आयात में वृद्घि हुई है जैसे आज देश में गणोशजी की मूर्तियां एवं खिलौने चीन से आ रहे हैं। हमारे निर्यात धक्का खा रहे हैं।
ग्लोबलाइजेशन के तीनों उद्देश्य असफल हैं। इसलिए बीते दो दशक के अपने इन अनुभवों को देखते हुए हमें इंग्लैंड व अमेरिका की तर्ज पर इससे पीछे हटना चाहिए।