अवधेश कुमार का नजरियाः भ्रष्टाचार के खिलाफ कारगर कानून
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 3, 2018 05:40 AM2018-08-03T05:40:16+5:302018-08-03T05:40:16+5:30
भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2018 और भगोड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक 2018 को भ्रष्टाचार की राह में बड़ा रोड़ा मानते हैं अवधेश कुमार। पढ़ें...
अवधेश कुमार
संसद द्वारा हाल ही में पारित किए गए दो विधेयक भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में काफी महत्वपूर्ण कानूनी अस्त्र साबित होंगे। ये हैं, भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2018 और भगोड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक 2018। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ अब ये दोनों कानून का रूप ले चुके हैं। ये दोनों हालांकि अलग-अलग प्रकार के भ्रष्टाचारों से संबंधित हैं, लेकिन इनको भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई के लिए उठाए जा रहे समग्र कदमों का ही भाग माना जाएगा। 1988 का भ्रष्टाचार निरोधक कानून आज के हालात में भ्रष्टाचार के बदले आयाम और नए स्वरूपों में काफी हद तक अप्रासंगिक हो गया था। इसलिए इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई में आए अनुभवों के आलोक में आज के समय के अनुरूप बदला जाना अपरिहार्य हो गया था।
इसी तरह बैंकों से कर्ज लेकर विदेश भाग जाने वालों के विरुद्ध अलग से कोई कानून नहीं था। जिस तरह पिछले कुछ समय में बैंकों के साथ धोखाधड़ी कर करोड़ों डकारने वाले विदेश भाग गए हैं और उनसे बकाया वसूली में कठिनाई आ रही है, उसे देखते हुए इसके लिए आवश्यक कानून एकदम जरूरी हो गया था। ये कानून अपने-अपने क्षेत्रों में कितने प्रभावी होंगे इनका आकलन करना जल्दबाजी होगी, लेकिन कार्रवाई करने वाली एजेंसियों को कानूनों के रूप में ऐसे अस्त्र मिल गए हैं जिनसे मामले को तार्किक निष्पत्ति तक ले जाने में कठिनाई नहीं होगी। इसके पहले अपराध की अलग-अलग धाराओं में कार्रवाई करनी होती थी।
भ्रष्टाचार निरोधक कानून के प्रावधानों को देखें तो इसमें रिश्वतखोरी से संबंधित सारे पहलू समाहित हैं। इसमें रिश्वत लेने वाले के साथ-साथ देने वाले के लिए भी सजा का प्रावधान है। विधेयक में रिश्वत लेने के दोषियों पर जुर्माने के साथ तीन से लेकर 10 साल जेल की सजा का प्रावधान कर दिया गया है। हालांकि दूसरी बार रिश्वत लेने वालों को ही 10 साल की सजा मिलेगी। रिश्वत देने वालों को भी छह महीने से सात साल तक की सजा का प्रावधान है। पहली नजर में ऐसा लगता है कि रिश्वत देने वाले तो मजबूरी में देते हैं इसलिए उनके लिए कड़े प्रावधान उचित नहीं। बात ठीक है कि एक आदमी मजबूरी में रिश्वत देता है किंतु ऐसे लोगों को अपने बचाव का मौका दिया गया है। रिश्वत देने वाले को यह बताना होगा कि किस वजह से और किन परिस्थितियों में रिश्वत दी गई। अगर यह साबित हो गया कि उनको रिश्वत देने के लिए मजबूर किया गया तो उन्हें मुक्त किया जा सकता है। हम न भूलें कि व्यावसायिक संस्थान अपना काम निकालने के लिए रिश्वत को स्वाभाविक खर्च मानकर व्यवहार करते हैं। इसलिए यह प्रावधान जरूरी है। इसीलिए सरकारी कर्मचारी को रिश्वत लेने के लिए उकसाना अपराध बना दिया गया है। यह प्रावधान भी है कि अगर किसी व्यावसायिक संस्थान के कर्मचारी सरकारी कर्मचारी को रिश्वत देने के मामले में संलिप्त पाए जाते हैं तो उसके वरिष्ठ अधिकारियों को भी जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इस तरह इसे रिश्वत देने और लेने के मामले में एक संतुलित कानून कह सकते हैं।
अब आएं भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून पर। इस समय नीरव मोदी और मेहुल चोकसी का मामला हमारे सामने है। विजय माल्या पर तो लंबे समय से चर्चा हो रही है, किंतु बैंकों से कर्ज लेकर भगाने वाले ये ही नहीं हैं। 2015 से अब तक ऐसे 28 आरोपी विदेश भाग चुके हैं। 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि होने के कारण कुछ का प्रत्यर्पण संभव है किंतु इसकी प्रक्रिया भी आसान नहीं है। ब्रिटेन के साथ प्रत्यर्पण संधि है लेकिन विजय माल्या को नहीं लाया जा सका है। 2014 से अब तक आर्थिक अपराध के मामलों में सिर्फ 4 का ही प्रत्यर्पण हो पाया है। शेष के लिए संबंधित देशों से प्रत्यर्पण की अपील की जा चुकी है।
हमारे सामने दो प्रकार की चुनौतियां हैं। एक, अपराध करके देश छोड़कर भागने वालों की संख्या बढ़ रही है जिनको रोकना जरूरी है। दूसरे, जो भाग गए उनके आने की प्रतीक्षा करें और इसकी कोई सीमा न हो तो फिर बैंकों का धन कैसे वापस आएगा? वर्तमान कानून इन दोनों का उत्तर है। नए कानून में ऐसे भगोड़ों की देश ही नहीं विदेश की संपत्तियों को भी जब्त करने के प्रावधान हैं। हां, किसी प्रकार की कार्रवाई के लिए आर्थिक अपराध करने वालों के खिलाफ न्यायालय से गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाना चाहिए।
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