अवधेश कुमार का नजरियाः सिविल सेवा में उम्र सीमा कम करना ठीक नहीं होगा
By अवधेश कुमार | Published: December 28, 2018 01:55 PM2018-12-28T13:55:22+5:302018-12-28T13:55:22+5:30
आप अन्य सुविधाएं उनको नहीं दे सकते तो कम से कम उम्र की सीमा तो ऐसी बनाए रखिए ताकि जब उसे ज्ञान हो तो उसके पास सिविल सेवा परीक्षा में सम्मिलित होने का समय रहे.
केंद्र सरकार की ओर से संघ लोकसेवा द्वारा आयोजित भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों की उम्र सीमा घटाए जाने से इनकार करना बड़ी संख्या में प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए राहत भरी खबर है. हालांकि इसमें यह गारंटी नहीं है कि आगे भी ऐसा नहीं होगा.
ध्यान रखिए, नीति आयोग ने सिविल सेवा को लेकर काफी सुझाव दिए हैं. उदाहरण के लिए उसने कहा है कि सिविल सेवाओं के लिए केवल एक ही परीक्षा ली जाए. सभी सेवाओं में बहाली के लिए उसने एक केंद्रीय टैलेंट पूल बनाए जाने का सुझाव दिया है. इसमें अभ्यर्थियों को उनकी क्षमता के अनुसार विभिन्न सेवाओं में लगाए जाने की बात है. सिविल सेवा में समानता लाने के लिए इनकी संख्या में भी कमी करने का सुझाव है. इस समय केंद्र और राज्य स्तर पर 60 से ज्यादा अलग-अलग तरह की सिविल सेवाएं हैं.
यह बात समझ से परे है कि दो-चार वर्ष उम्र सीमा कम कर देने से कार्यक्षमता और गुणवत्ता में क्या अंतर आ जाएगा? वैसे भी आप अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और अति पिछड़े वर्ग की उम्र सीमा तो घटा नहीं रहे जो पहले से ज्यादा है. अगर सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों की उम्र 27 वर्ष कर दी जाए तो आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों से इनके बीच 10 वर्ष से ज्यादा का अंतर हो जाएगा. जिस तरह आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों की उम्र सीमा तय करने में उनके आर्थिक-सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन का ध्यान रखा गया, वैसे ही दूसरों के बारे में भी रखना चाहिए.
सिविल सेवा में हर वर्ग, क्षेत्र और विचार के लोगों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए. यह सामान्य समझ की बात है कि गांवों में बहुतेरों की पढ़ाई की शुरुआत थोड़ी देर से होती है. ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन करते-करते उनकी उम्र काफी हो जाती है. जब तक उनकी समझ विकसित होती है तब तक काफी उम्र निकल चुकी होती है. जाहिर है, उम्र सीमा घटाने से सीधी क्षति इस समूह को होगी. हिंदी और क्षेत्रीय भाषी राज्यों के युवा इससे सीधे प्रभावित होते हैं.
भारत में अभी वह स्थिति पैदा नहीं हुई है जहां सभी को समान शिक्षा मिल सके. एक तरफ संपन्न और विकसित परिवार का छात्र, जिसकी अच्छे संस्थानों में शिक्षा हुई और जिसे प्रतियोगिता परीक्षाआंे की जानकारी आरंभिक जीवन से ही है और दूसरी ओर असुविधाओं से भरे जीवन में सामान्य सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले प्रतियोगी परीक्षाओं से अनभिज्ञ नौजवान को आप एक ही नजरिए से नहीं देख सकते.
आप अन्य सुविधाएं उनको नहीं दे सकते तो कम से कम उम्र की सीमा तो ऐसी बनाए रखिए ताकि जब उसे ज्ञान हो तो उसके पास सिविल सेवा परीक्षा में सम्मिलित होने का समय रहे. इस वर्ग के लोग जब सिविल सेवा में आते रहेंगे तभी तो वे गांवों की समस्याओं के समाधान का सही रास्ता बना सकते हैं.