लाइव न्यूज़ :

Blog: अटल जी को प्रतिद्वंद्वी भी करते थे सम्मान 

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 17, 2018 04:26 IST

 वर्तमान भारतीय राजनीति में सत्ता या विपक्ष में रहते हुए जन श्रद्धा का केंद्र बने रहना दुष्कर है

Open in App

(लेखक-प्रभात झा)

 वर्तमान भारतीय राजनीति में सत्ता या विपक्ष में रहते हुए जन श्रद्धा का केंद्र बने रहना दुष्कर है. लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी 12 साल से बिस्तर पर रहे, फिर भी कोई दिन ऐसा नहीं गया होगा जब उनकी चर्चाएं करोड़ो घरों में नित नहीं होती रही होंगी. आजादी के पहले के नेताओं द्वारा समाज की जो कल्पना हुआ करती थी उसे बनाए रखने का काम अटलजी ने किया. 

हम ग्वालियर के लोग अटलजी को बहुत करीब से जानते रहे हैं. हम उनके पासंग भी नहीं हैं, पर ग्वालियर के होने के नाते स्वत: हमें गर्व महसूस होता है कि हम उस ग्वालियर के हैं, जहां अटल बिहारी वाजपेयी जैसे शख्स पैदा हुए. 

अटलजी ने कभी अपने बारे में नहीं सोचा, वे सदैव देश के बारे में सोचते रहे. वे भारत के आखिरी ऐसे नेता रहे जिनको सुनने के लिए लोग अपने आप आते थे, लोगों को लाने का कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता था.  उनकी वाणी का महत्व इसलिए बना क्योंकि उनकी वाणी और चरित्र में दूरी नहीं हुआ करती थी. वो जैसा बोलते थे वैसी ही जिंदगी जीते थे. 

 दुनिया का सबसे कठिन काम होता है कि प्रतिद्वंद्वियों के मन में श्रद्धा उपजा लेना. वे भारत के अकेले ऐसे राजनीतिज्ञ रहे, जिन्होंने विरोध में रहकर भी सत्ताधारियों के मन में श्रद्धा का भाव पैदा किया. ऐसे लोग धरा पर विरले होते हैं. तेरह दिन, तेरह महीने और उनके पांच साल के कार्यकाल को कौन भूल सकता है. भारत में गांव-गांव में बनी सड़कें आज भी अटलजी को याद कर रही हैं. कारगिल का युद्ध अटलजी की चट्टानी और फौलादी प्रवृत्ति को भी उजागर करता है. परमाणु विस्फोट कर विश्व को स्तब्ध कर देने का अनूठा कार्य किया अटलजी ने. 

हम लोग सौभाग्यशाली रहे कि अटलजी के साथ हमें काम करने का सुनहरा अवसर मिला. वे जन्में जरूर ग्वालियर में थे, पर भारत का कोई कोना नहीं है जो उन पर गर्व नहीं करता. कश्मीर से कन्याकुमारी तक उन्होंने अपने अथक वैचारिक परिश्रम से अद्भुत पहचान बनाई थी. वे सच के हिमायती थे. उन्होंने अपने जीवन को और सामाजिक जीवन को भी सच से जोड़कर रखा था. वे आजादी के बाद के पहले ऐसे नेता थे जिन पर जीवन की अंतिम सांस तक किसी ने कोई आरोप लगाने की हिम्मत नहीं की. सदन में एक बार उन्हें विरोधियों ने कह दिया कि अटलजी सत्ता के लोभी हैं, उस पर अटलजी ने संसद में कहा कि ‘‘लोभ से उपजी सत्ता को मैं चिमटी से भी छूना पसंद नहीं करूंगा.’’

सन 1975 में जब इंदिराजी ने देश में आपातकाल लगाया तब भी उन्होंने जेल की सलाखों को स्वीकार किया, पर झुके नहीं. जेल में भी उन्होंने साहित्य को जन्म दिया. जनता पार्टी जब बनी तो उन पर और तत्कालीन जनसंघ पर दोहरी सदस्यता का आरोप लगा. तो उन्होंने कहा कि, ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कोई सदस्य नहीं होता, वह हमारी मातृ संस्था है, हमने वहां देशभक्ति का पाठ पढ़ा है. इसीलिए दोहरी सदस्यता का सवाल ही नहीं उठता. हम जनता पार्टी छोड़ सकते हैं, पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नहीं छोड़ सकते.’’ विचारधारा के प्रति समर्पण का ऐसा अनुपम उदाहरण बहुत ही कम देखने को मिलता है. वे शिक्षक पुत्र थे. संस्कार उन्हें उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता कृष्णा देवी से मिले थे.

टॅग्स :अटल बिहारी वाजपेयी
Open in App

संबंधित खबरें

भारतसुशासन दिवस पर पीएम मोदी करेंगे राष्ट्र प्रेरणा स्थल का लोकार्पण, 232 करोड़ रूपए खर्च कर 65 एकड़ में बनाया गया राष्ट्र प्रेरणा स्थल

भारतमध्यप्रदेश: अटल जी की 100वीं जन्म जयंती पर शून्य से शतक कार्यक्रम 21 को, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल और मुख्यमंत्री करेंगे शिरकत

भारतउपराष्ट्रपति चुनावः खाली मतपत्रों में है संदेश?, खाली दिखने वाले वोट अर्थहीन नहीं हैं, गहरा अर्थ!

भारतआदिवासी नायक बिरसा मुंडा, सरदार वल्लभभाई पटेल और अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती, मोदी सरकार ने समिति गठित कीं, जानें इतिहास

भारतपूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की आज पुण्यतिथि, प्रधानमंत्री मोदी समेत नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

भारत अधिक खबरें

भारतसंसद से सड़क तक टकराव?, कांग्रेस में दो सत्ता केंद्रों की चर्चा के निहितार्थ

भारतHoliday Calendar 2026: कब होगी त्योहारों की छुट्टी और कब बंद रहेंगे बैंक? जानिए साल 2026 की पूरी अवकाश सूची

भारतMaharashtra Local Body Polls Result: महायुति 214, एमवीए 49, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी, जानें किस पार्टी को कितनी सीटें

भारतस्थानीय निकाय चुनावः 286 में से 212 सीट पर जीत?, अशोक चव्हाण बोले- भाजपा के 3,300 पार्षद निर्वाचित, जनवरी 2026 में 29 नगर निगमों चुनावों पर असर दिखेगा?

भारतबिहार में फाइनेंस कंपनियों के कर्ज से परेशान लोग आत्महत्या करने को मजबूर, पुलिस ने लिया गंभीरता से, ईओयू को दी कार्रवाई की जिम्मेदारी