जब महज एक वोट से गिर गई अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार, किस्सा 1999 के 'अविश्वास प्रस्ताव' का
By आदित्य द्विवेदी | Published: March 20, 2018 07:41 AM2018-03-20T07:41:28+5:302018-03-20T09:01:03+5:30
TDP-YSRCP ने नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है। इसी संदर्भ में एक किस्सा 1999 का ,जब एक वोट कम होने की वजह से छिन गई थी बीजेपी के हाथ से सत्ता।
17 अप्रैल 1999 की सुबह 11 बजे का वक्त था। भारतीय संसद में गहमागहमी कुछ बढ़ी हुई थी। सभी सांसद अपनी-अपनी जगह पर बैठ चुके थे। कुछ ही देर में भारतीय संसद एक ऐतिहासिक पल का गवाह बनने जा रही थी। सदन में बीजेपी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होना था। लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने के कुछ ही देर पहले बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी मतदान में हिस्सा नहीं लेगी। सदन की कार्यवाही शुरू हुई। बसपा सुप्रीमो मायावती खड़ी हुई और उन्होंने बीजेपी सरकार के खिलाफ वोट कर दिया। भारतीय राजनीतिक इतिहास का ये सबसे करीबी और रोमांचक अविश्वास प्रस्ताव होने जा रहा था।
इस पूरे घटनाक्रम की आधारशिला इस अविश्वास प्रस्ताव से 13 महीने पहले रखी जा चुकी थी। 1998 में हुए लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पूर्ण बहुमत का आंकड़ा नहीं छू सका। कई पार्टियों के बाहरी समर्थन से सरकार बनी और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चुने गए। सरकार गठन के साल भर के अंदर एआईएडीएमके पार्टी की जयललिता ने गठबंधन से असंतोष जाहिर कर दिया। वो तमिलनाडु की डीएमके सरकार को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिराना चाहती थी। लेकिन केंद्र की वाजपेयी सरकार ने उनकी इस मांग पर सहमति नहीं जताई। इसके बाद जयललिता ने एनडीए का साथ छोड़ने का फैसला किया और अविश्वास प्रस्ताव की पृष्ठभूमि तैयार हुई।
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कांग्रेस ने इसे सरकार गिराने के मौके के तौर पर देखा और वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया। 17 अप्रैल 1999 को लोकसभा में प्रस्ताव पर बहस और वोटिंग होनी थी। लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने के कुछ ही देर पहले बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी मतदान में हिस्सा नहीं लेगी। सदन की कार्यवाही शुरू हुई। बसपा सुप्रीमो मायावती खड़ी हुई और थोड़ी देर पहले के अपने स्टैंड को बदल दिया। उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट कर दिया। सत्ता पक्ष में खामोशी छा गई। अब नजरें विपक्षी बेंच पर बैठे गिरिधर गमांग पर जाकर टिक गई।
ओडिशा के कोरापुट से सांसद गिरधार गमांग ने दो महीने पहले मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। नियम के अनुसार मुख्यमंत्री बनने के छह महीने के भीतर सदन से इस्तीफा देना होता है। लेकिन नैतिक रूप से दो संवैधानिक पदों पर बैठना उचित नहीं है। बीजेपी नैतिकता के भरोसा अपनी नैया पार लगना चाहती थी। गिरधर गमांग बैठे मुस्कुरा रहे थे। गमांग ने भी बीजेपी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन कर दिया। अब बीजेपी की आखिरी उम्मीद नेशनल कांफ्रेंस के सांसद सैफुद्दीन सोज़ थे।
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नेशनल कांफ्रेंस का वाजपेयी सरकार को समर्थन था। सासंद सैफुद्दीन सोज़ ने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया। मतदान पूरा हो चुका था। अब बारी वोटों की गिनती की थी। वाजयेपी सरकार के पक्ष में 269 और विरोध में 270 वोट पड़े। महज एक वोट से 13 महीने पुरानी वाजपेयी सरकार गिर गई।
सदन खामोश था। अटल बिहारी वाजपेयी अपना हाथ उठाकर सैल्यूट की मुद्रा में माथे तक ले गए। उन्होंने जनादेश को स्वीकार कर लिया था। बाद के कुछ भाषणों में उन्होंने कहा कि जो सरकार जोड़-तोड़ और अनैतिकता से चलती हो उसे मैं चिमटे से भी छूने से मना कर दिया। भारतीय राजनीतिक इतिहास में यह सबसे करीबी मुकाबला जिसे एक सबक के तौर पर हमेशा याद किया जाना चाहिए।