गलत मौके पर की गई सही कार्रवाई? वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग
By वेद प्रताप वैदिक | Published: April 5, 2021 04:38 PM2021-04-05T16:38:12+5:302021-04-05T16:39:31+5:30
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी की रिश्तेदार मेनका गंभीर के पति को ईस्टर्न कोलफील्ड्स (ईसीएल) से कथित अवैध कोयला खनन के मामले के सिलसिले में शुक्रवार को समन जारी किया था.
चुनावों के दौरान सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच भयंकर कटुता का माहौल तो अक्सर हो ही जाता है लेकिन इधर पिछले कुछ वर्षों में हमारी राजनीति का स्तर काफी नीचे गिरता नजर आ रहा है.
केंद्र सरकार के आयकर विभाग ने तृणमूल कांग्रेस के नेताओं पर छापे मार दिए हैं और उनमें से कुछ को गिरफ्तार भी कर लिया है. तृणमूल के ये नेतागण शारदा घोटाले में पहले ही कुख्यात हो चुके थे. इन पर मुकदमे भी चल रहे हैं और इन्हें पार्टी-निकाला भी दे दिया गया था लेकिन चुनावों के दौरान इनको लेकर खबरें उछलवाने का उद्देश्य क्या है ?
क्या यह नहीं कि अपने विरोधियों को जैसे-तैसे भी बदनाम करवाकर चुनाव में हरवाना है? बंगाल में मुख्यमंत्नी ममता बनर्जी के भतीजे की पत्नी रुचिरा बैनर्जी और उनके दूसरे कुछ रिश्तेदारों से एक मामले में पूछताछ चल रही है और चिट-फंड के मामले में दो अन्य मंत्रियों के नाम बार-बार प्रचारित किए जा रहे हैं.
इन लोगों ने यदि गैर-कानूनी काम किए हैं और भ्रष्टाचार किया है तो इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई जरूर की जानी चाहिए लेकिन चुनाव के दौरान की गई सही कार्रवाई के पीछे भी दुराशय ही दिखाई पड़ता है. इस दुराशय को पुष्ट करने के लिए विपक्षी दल अन्य कई उदाहरण भी पेश करते हैं. जैसे जब 2018 में आंध्र में चुनाव हो रहे थे, तब टीडीपी के सांसद वाई.एस. चौधरी के यहां छापे मारे गए.
अगले चुनाव में चौधरी भाजपा में आ गए. कर्नाटक के कांग्रेसी नेता शिवकुमार के यहां भी 2017 में दर्जनों छापे मारे गए. उन दिनों वे अहमद पटेल को राज्यसभा चुनाव में जिताने के लिए गुजराती विधायकों की मेहमान नवाजी कर रहे थे. लगभग यही रंग-ढंग हम केरल के कम्युनिस्ट और कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ इन चुनावों में देख रहे हैं.
इस तरह के आरोप अन्य प्रदेशों के कई विरोधी नेताओं ने भी लगाए हैं. चुनाव के दौरान की गई ऐसी कार्रवाइयों से आम जनता पर क्या अच्छा असर पड़ता है? शायद नहीं. गलत मौके पर की गई सही कार्रवाई का असर भी उल्टा ही हो जाता है.