अश्वनी कुमार का ब्लॉग: देश की उपलब्धियों पर गर्व लेकिन कमजोरियों को न भूलें
By अश्वनी कुमार | Published: February 1, 2021 10:24 AM2021-02-01T10:24:58+5:302021-02-01T10:26:03+5:30
सामाजिक और आर्थिक विषमताएं संविधान के वादे पर सवालिया निशान लगाती हैं. बहु-संस्कृतिवाद पर सीधा हमला एक साझी सांस्कृतिक विरासत के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को नकारता है.
71 साल पहले 26 जनवरी के दिन एक स्वतंत्र देश के लोगों ने खुद को राष्ट्रीय आकांक्षाओं से भरा एक संविधान दिया, जिसकी चाह में स्वतंत्रता की लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी गई थी.
आजाद भारत में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक न्याय के ऊंचे मानदंडों को हासिल करने की आकांक्षा के साथ विभिन्न संस्कृतियों के संगम का प्रतिनिधित्व करने वाले गणराज्य की स्थापना की गई थी.
1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा ‘पूर्ण स्वराज’ के अंतर्गत ऐसे आदर्श समाज की कल्पना की गई थी जिसमें सभी सद्भाव और खुशहाली से रह सकें.
स्वतंत्रता के बाद से देश की एकता को खतरा पैदा करने वाली विभिन्न चुनौतियों के बावजूद, हमने सभी बाधाओं को पार किया है. एक साझी सभ्यता की विरासत और नियति की साझा भावना से बंधे, एक नई वैश्विक व्यवस्था को आकार देने के लिए दुनिया के देशों के बीच हम एक शक्तिशाली आवाज के रूप में उभरे हैं.
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के 2050 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने की जबकि भविष्यवाणी की गई है, हम एक राष्ट्र के रूप में अपनी महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर गर्व कर सकते हैं. इसमें दुनिया के सबसे बड़े चुनाव का सफल आयोजन, सबसे बड़ा डिजिटल व्यक्तिगत पहचान कार्यक्रम और दुनिया में कहीं भी होने वाला सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम शामिल है.
हमारे अंतरिक्ष और परमाणु कार्यक्रमों की उल्लेखनीय सफलता हमें एक राष्ट्र के रूप में गौरवान्वित करती है. गणतंत्र दिवस परेड की विशालता और भव्यता इस पड़ाव पर एक राष्ट्र के आत्मविश्वास को प्रतिबिंबित करती है.
लेकिन हम न भूलें कि यह कहानी का केवल एक हिस्सा है.
विगत वर्षो में मजबूत आर्थिक विकास के बावजूद, भारत संयुक्त राष्ट्र की 2020 की विश्व खुशहाली रिपोर्ट में 153 देशों में से 144 वें स्थान पर है. यह 2019 की इकोनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट के लोकतंत्र सूचकांक में 51 वें स्थान पर है और संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक 2020 में 189 देशों में 129 वें स्थान पर है.
सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 53 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि देश के आधे गरीब हिस्से के पास देश की केवल 4.3 प्रतिशत संपदा है.
राजनीतिक अतिवाद, घरेलू आतंकवाद का बढ़ना, जातीय हिंसा में वृद्धि, निराशा की बढ़ती भावना, कटुता, रोष और हमारे लोगों के विशाल वर्गो के बीच अलगाव की पैदा होती भावना समाज में बढ़ते तनाव और संकट की ओर इशारा करती है.
सामाजिक और आर्थिक विषमताएं संविधान के वादे पर सवालिया निशान लगाती हैं. बहु-संस्कृतिवाद पर सीधा हमला एक साझी सांस्कृतिक विरासत के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को नकारता है.
किसानों का अभूतपूर्व आंदोलन शासन की प्रक्रियाओं में गहराते अविश्वास को दर्शाता है. गणतंत्र दिवस पर हिंसा की विचलित करने वाली घटनाओं ने बड़े पैमाने पर विरोध आंदोलनों में निहित उग्रता और उत्तेजित भीड़ के जवाब में राज्य की पुलिस शक्ति की सीमाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है.
हमारे संवैधानिक संस्थानों की त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली फ्रांसीसी राजनेता चेट्यूब्रायंड की चेतावनी की याद दिलाती है कि हर संस्था तीन चरणों से गुजरती है : ‘उपयोगिता, विशेषाधिकार और दुरुपयोग.’ क्या हमारे स्वायत्त संस्थान तीसरे चरण में हैं, यह एक सवाल है.
नागरिकों के रूप में, हमें अपने आपको ठगाने से इंकार करना चाहिए क्योंकि ‘झूठ तब तक काम नहीं करता है जब तक उस पर विश्वास नहीं किया जाता है.’ आइए हम आदर्शवाद के उन मूल्यों पर बट्टा न लगने दें जो हमारे गणतंत्र के प्रेरणास्नेत रहे हैं और जिनसे हमारी राजनीति को परिभाषित होना चाहिए.
आइए हम अपनी बहुलता को बनाए रखने और एक साथ यात्र करने का संकल्प लें ताकि हम दूर तक यात्र करें. हमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के उस वक्तव्य पर ध्यान देना चाहिए जो उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण के समय कहा था कि ‘असहमति ठीक है, लेकिन असहमति से अलग हो जाएं, ये गलत है’ और ‘हमें अपने दिलों को सख्त करने के बजाय अपनी आत्मा को खोलना होगा.’
तभी हम अपने राष्ट्र के लिए गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की मंगलकामना के साकार होने की आशा कर सकते हैं ‘जहां मन भय से मुक्त हो और मस्तक सम्मान से उठा हो..जहां विचार सच्चाई की गहराई से उपजते हों..जहां मन निरंतर-प्रगतिशील विचारों और कर्मठता की ओर बढ़ता हो..’’ मैं सीमस हीनी की उम्मीद भरी पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहता हूं :
‘..लेकिन फिर जीवन में एक बार/बेहद इच्छित ज्वार की लहर के लिए/न्याय का उदय हो सकता है, /और आशा और इतिहास लयबद्ध हो सकते हैं..’