अरावली पर्वतमाला राष्ट्रीय धरोहर, बचाना जरूरी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: December 26, 2025 07:33 IST2025-12-26T07:30:29+5:302025-12-26T07:33:28+5:30

यह लूट जाहिर तौर पर जनहित के नाम पर की जा रही है, लेकिन जनता की आवाज को अनसुना किया जा रहा है.

Aravalli mountain range is national heritage it is important to save it | अरावली पर्वतमाला राष्ट्रीय धरोहर, बचाना जरूरी

अरावली पर्वतमाला राष्ट्रीय धरोहर, बचाना जरूरी

अभिलाष खांडेकर

भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला - अरावली - को लेकर मची हलचल निराशाजनक होने के साथ-साथ थोड़ी खुशी भी देती है. निराशाजनक इसलिए है क्योंकि केंद्र सरकार की सिफारिशों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की जिस परिभाषा को स्वीकार किया है, उसके अनुसार आसपास की जमीन से कम से कम 100 मीटर ऊंचे जमीन के हिस्से को ही अरावली पहाड़ी माना जाएगा. और खुशी यह है कि दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात राज्यों से होकर गुजरने वाली इस पर्वत श्रृंखला को बचाने के लिए पूरे देश में काफी हंगामा मचा हुआ है. लोग लाखों साल पुरानी इस प्राकृतिक धरोहर को बचाने के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

यह दिखाता है कि पर्यावरण के प्रति जागरूक ये अज्ञात चेहरे और आवाजें अपने लिए कोई खदान या बंदरगाह नहीं मांग रही हैं. ये परोपकारी लोगों का एक बड़ा समूह है जो उसे बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं जो उनका नहीं बल्कि राष्ट्र का गौरव है. हर जगह से अरावली बचाओ की आवाजें सुनाई दे रही हैं. क्या इसे आने वाले वर्षों में नष्ट होने से बचाने के लिए आज ही कोशिश नहीं की जानी चाहिए? क्या यह सामूहिक आवाजें सही नहीं हैं? राहत की बात है कि अरावली पर्वतमाला को लेकर खड़े हुए विवाद के बीच केंद्र सरकार ने अरावली रेंज में नया खनन पट्टा देने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है.

अरावली पर्वतमाला दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की जीवनरेखा है, जो पहले से ही अभूतपूर्व प्रदूषण और सबसे खराब वायु गुणवत्ता से जूझ रही है, जिससे हमारे देश की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी हो रही है. पर्यावरण की रक्षा करना, स्वच्छ हवा और पानी उपलब्ध कराना, पेड़ों और जल निकायों को बचाना, वन्यजीवों का संरक्षण करना और भारतीय नागरिकों के स्वास्थ्य की देखभाल करना किसी भी सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है, ठीक उसी तरह जैसे बुनियादी ढांचा और रोजगार उपलब्ध कराना.

भारत में प्रकृति संरक्षण के संबंध में समय-समय पर अनगिनत कानून और नियम, समितियां और प्राधिकरण (राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण) और बोर्ड (राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड) गठित किए गए हैं. वन अधिनियम, जल अधिनियम, पर्यावरण अधिनियम, आर्द्रभूमि नियम, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम आदि राष्ट्रीय संपदा की रक्षा के लिए बनाए गए हैं, जो मानव जाति के अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक है.

संसद द्वारा पारित और किसी न किसी मंत्रालय द्वारा गठित इन सभी कानूनी दस्तावेजों और निकायों का सार   भावी पीढ़ियों के लिए देश की प्राकृतिक संपदा की रक्षा करना है. लोगों को सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा चाहिए और उन्हें पानी, दवाइयां, भोजन और जीवन के लिए ऑक्सीजन जैसे अन्य प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है. प्रकृति हमें ये सब निःशुल्क प्रदान करती है.

लेकिन बढ़ती आबादी (कल्पना कीजिए कि दिल्ली और एनसीआर में कितने लोग रहते हैं) और बुनियादी ढांचागत गतिविधियों के प्रति अविवेकी प्रोत्साहन व लालच के कारण, वह पर्यावरण जो न्यायाधीशों और राजनेताओं सहित हम सभी को ठीक से सांस लेने में मदद करता है, सरकार के ऐसे निर्णयों के कारण खतरनाक रूप से प्रभावित हो रहा है.
जमीन से 100 मीटर से कम ऊंचाई पर खनन गतिविधि की अनुमति देने के मुद्दे को - भले ही वह बहुत कम मात्रा में हो - इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए. अरावली पर्वतमाला का यह हरा-भरा विशाल क्षेत्र लंबे समय से विवाद का विषय रहा है.

अरावली पर्वतमाला के एक बड़े हिस्से वाले अलवर से निर्वाचित केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव अपने मंत्रालय के फैसले का बचाव करते हुए कह रहे हैं कि अरावली के बहुत छोटे हिस्से में ही खनन की अनुमति दी जा रही है. लेकिन सच्चाई यह है कि खनन कंपनियों के लालच को देखते हुए यह निगरानी करना असंभव है कि वास्तव में कितना खनन होगा. आदर्श रूप से, अरावली को किसी भी औद्योगिक, आवासीय और खनन गतिविधि के लिए पूरी तरह से प्रतिबंधित क्षेत्र होना चाहिए. यह कई दुर्लभ जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का घर है. यह दिल्ली और राजस्थान के बीच एक प्राकृतिक पर्दे का काम करता है और प्रदूषण को काफी हद तक रोकता है.

पिछले कुछ वर्षों में, एक के बाद एक जंगल सड़कों, पुलों, हवाई अड्डों और बिजली संयंत्रों के निर्माण में हमारे वन कटते जा रहे हैं. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, अंडमान निकोबार, महाराष्ट्र, असम या उत्तराखंड- आप किसी भी क्षेत्र का नाम लीजिए, आपको वहां प्राकृतिक संपदा का सुनियोजित तरीके से दोहन होता दिखेगा. यह लूट जाहिर तौर पर जनहित के नाम पर की जा रही है, लेकिन जनता की आवाज को अनसुना किया जा रहा है. अरावली पर्वतमाला अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. एक बार खनन कंपनियां कदम रख दें तो देखते ही देखते यह संरक्षित क्षेत्र गायब हो जाएगा. ऐसा कई अन्य जगहों पर भी हो चुका है.

राहत की बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस भीषण पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए आगे आए हैं और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के मुख्य सचिवों को बुधवार को लिखे पत्र में साफ कहा है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत व उसकी ओर से मंजूर की गई नीति के तहत अरावली के संरक्षण और खनन के लिए नए क्षेत्रों की पहचान नहीं हो जाती है तब तक अरावली रेंज में नया खनन पट्टा देने पर प्रतिबंध लागू रहेगा.

Web Title: Aravalli mountain range is national heritage it is important to save it

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