ब्लॉग: अमेरिकी धार्मिक रिपोर्ट स्वीकार्य नहीं, विविधता और सहिष्णुता भारत की संस्कृति थी और हमेशा रहेगी
By अवधेश कुमार | Published: May 19, 2023 11:38 AM2023-05-19T11:38:40+5:302023-05-19T11:39:18+5:30
अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी वार्षिक रिपोर्ट में भारत को अल्पसंख्यक विरोधी देश साबित करने की कोशिश की है. अमेरिका इसे विश्व भर के देशों में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति का तथ्यात्मक एवं प्रामाणिक दस्तावेज घोषित करता है. अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता कार्यालय के विशेष राजदूत राशद हुसैन ने कहा कि रिपोर्ट विश्व भर के लगभग 200 देशों और क्षेत्रों में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति के बारे में एक तथ्य आधारित व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इसे जारी करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों को उजागर करना है जहां धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता का दमन किया जा रहा है और अंततः प्रगति को ऐसे विश्व की ओर ले जाना है जहां धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता हर जगह हर किसी के लिए एक वास्तविकता हो. ब्लिंकन ने भारत का उल्लेख नहीं किया, पर रिपोर्ट में भारत का संदर्भ भयानक तस्वीरों से भरा है.
राशद हुसैन के बयान में भारत का जिक्र है. उन्होंने कहा कि कई सरकारों ने अपनी सीमाओं के भीतर धार्मिक समुदाय के सदस्यों को खुले तौर पर निशाना बनाना जारी रखा है. इन सरकारों के संदर्भ में रिपोर्ट के महत्वपूर्ण निष्कर्षों का उल्लेख करते हुए उन्होंने भारत का नाम स्पष्ट तौर पर लिया. उसके बाद चीन और अफगानिस्तान समेत कई देशों का उल्लेख किया गया है.
कोई भी निष्पक्ष और विवेकशील व्यक्ति इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं कर सकता.
भारत जैसे विविधताओं के देश में समुदायों के बीच कभी-कभार विवाद, टकराव आदि होते हैं, किंतु यह कहना कि केंद्र व राज्य सरकारों की भूमिका से इसे प्रोत्साहन या संरक्षण मिलता है, गलत है. न्यायपालिका के हाथों में ही ऐसे मामलों में अंतिम कानूनी फैसले का अधिकार है.
भारत सदियों से अनेक पंथों, संप्रदायों का देश है. विविधता और सहिष्णुता इसकी संस्कृति थी, है और रहेगी. इसके लिए हमें किसी बाहरी से सीख लेने की आवश्यकता नहीं है. जो समस्याएं उभरती हैं उनको निपटाने में भारत के लोग और संस्थाएं सक्षम हैं. ये बातें मुखरता से अमेरिकी कानों तक पहुंचाना आवश्यक हो गया है.