आलोक मेहता का ब्लॉग: सरकार नहीं, सामाजिक शक्ति से ही रक्षा और प्रगति संभव

By आलोक मेहता | Published: January 18, 2021 12:18 PM2021-01-18T12:18:55+5:302021-01-18T12:20:00+5:30

गंभीर राजनीतिक टकराव, आर्थिक समस्याओं-चुनौतियों, सीमा पर पाकिस्तान-चीन के सैन्य और आतंकवादी दबावों के बावजूद इस समय भारत पूरे विश्व में सर्वाधिक समझदार, चतुर और चिकित्सा के क्षेत्र में भी अग्रणी साबित हो रहा है.

Alok Mehta's blog: Defense and progress are possible only with social power, not government | आलोक मेहता का ब्लॉग: सरकार नहीं, सामाजिक शक्ति से ही रक्षा और प्रगति संभव

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

महर्षि अरविंद ने लगभग सौ साल पहले कहा था कि राष्ट्रवाद एक धर्म है. राष्ट्रवाद की शक्ति ही ईश्वर की शक्ति है. भारत का अंत नहीं हो सकता, क्योंकि मानव विश्व के जितने हिस्से हैं, उनमें केवल भारत ही है, जिसके लिए भविष्य निर्दिष्ट और सुरक्षित है. यह मानव जाति के भविष्य के लिए अत्यावश्यक है.

कोरोना संकट से संघर्ष और दुनिया के सबसे संपन्न देशों के मुकाबले सुधरी स्थिति तथा सरकार के साथ समाज का आदर्श तालमेल महर्षि की बात को सार्थक करता दिखता है. 

ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी में रह रहे परिवार के सदस्यों और मित्रों से पिछले महीनों के दौरान अधिक संपर्क रहा और कोरोना काल में अंतर्राष्ट्रीय मीडिया पर भी नजर रही. इसलिए भारत की स्थितियों से तुलना करना संभव हो रहा है.

गंभीर राजनीतिक टकराव, आर्थिक समस्याओं-चुनौतियों, सीमा पर पाकिस्तान-चीन के सैन्य और आतंकवादी दबावों के बावजूद इस समय भारत पूरे विश्व में सर्वाधिक समझदार, चतुर और चिकित्सा के क्षेत्र में भी अग्रणी साबित हो रहा है. कोरोना महामारी से मुक्ति के अभियान में अपनी वैक्सीन बनाकर पहले तीन करोड़ लोगों के लिए न केवल काम शुरू हो गया, वरन् ब्राजील सहित अनेक देशों को वैक्सीन निर्यात करने की तैयारी है.

उधर ब्रिटेन और अमेरिका में हाहाकार मचा हुआ है. इसे भारतीय लोकतंत्र की ऐतिहासिक सफलता कहा जाएगा कि जहां अमेरिका में भारी तनाव के बाद नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण के लिए बीस हजार सैनिकों को तैनात करना पड़ रहा है, वहीं जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी प्रयासों, कोरोना संकट के बावजूद सुदूर गांवों तक के लाखों लोगों ने जिला विकास परिषदों के चुनाव में शांतिपूर्ण ढंग से मतदान किया।

विभिन्न दलों के उम्मीदवारों को सफलता मिली और सारे मतभेदों के रहते हुए किसी बड़ी गड़बड़ी की शिकायत नहीं की. मध्य प्रदेश में भी बड़ी संख्या में विधानसभा के लिए उपचुनाव हुए और सबने नतीजों को सहर्ष स्वीकारा.

हमारे पाठक संभवत: भारत की शक्ति के गुणगान को थोड़ा अतिरेक कह सकते हैं, लेकिन क्या केवल अपने देश, समाज, धर्म, सरकार या विपक्ष, चिकित्सा अथवा सेना की सामर्थ्य पर आशंका, आलोचना, निंदा करना ही सही लेखन और पत्रकारिता है?

समाज में आत्म विश्वास पैदा करना, सामाजिक सौहाद्र को सराहना, आत्मनिर्भरता के लिए विभिन्न क्षेत्रों में हो रही उपलब्धियों के बजाय केवल अति संपन्न पश्चिमी देशों अथवा तेल उत्पादक खाड़ी के देशों या चीन के तानाशाही वाले आर्थिक साम्राज्य की प्रशंसा का आलाप किया जाए? 

पीएम केयर से भी एक कदम आगे है अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों से पैसा नहीं लेने का निर्णय. पीएम केयर से कोरोना संकट में सहायता के लिए सरकारी- गैर सरकारी संस्थाओं की व्यवस्था हुई, जो आगे काम आती रहेगी. लेकिन सरकार का काम मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे बनाना नहीं है.

फिर अयोध्या के मंदिर निर्माण में न केवल हिंदू धर्मावलम्बी ही योगदान दे रहे हैं, बल्कि स्थानीय मुस्लिमों के अलावा देश के अन्य भागों के लोग भी सामाजिक समरसता तथा भारतीयता के नाते सहयोग दे रहे हैं.

मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष देश के वरिष्ठतम सेवानिवृत्त अधिकारी नृपेंद्र मिश्र और न्यास से जुड़े सभी संगठनों की इस पहल का स्वागत होना चाहिए कि इस अभियान में सभी धर्मो, वर्गो, जातियों के करोड़ों लोगों से संपर्क कर उनकी श्रद्धा तथा क्षमता के अनुसार दस रुपए से लेकर दो हजार या अधिक के दान को एकत्न कर निर्माण होगा.

गरीबों और अरबपतियों में भेद किए बिना राजनीति से हटकर समाज और राष्ट्र को एकजुट रखना ही तो असली कर्तव्य, धर्म और राष्ट्रवाद है. भारतीय संस्कृति वस्तुत: मानवीय संस्कृति है, क्योंकि उसके आधार मूल्य सार्वभौम हैं.

भौतिक विविधता, जातीय रंग-रूपगत भिन्नता के रहते भी समाज समरस बन सकता है. संत दादू दयालजी ने दशकों पहले एक साखी में लिखा था- ‘दोनों भाई हाथ, पग, दोनों भाई कान. दोनों भाई नैन हैं, हिंदू-मुसलमान.’

Web Title: Alok Mehta's blog: Defense and progress are possible only with social power, not government

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