इलाहाबाद डायरीः सुजावन घाट मंदिर, खनन माफिया और दो युवकों के बीच चाकूबाजी का साम्प्रदायिक तनाव बन जाना
By आदित्य द्विवेदी | Published: January 12, 2018 10:38 PM2018-01-12T22:38:06+5:302018-01-12T22:46:48+5:30
एक समाज के रूप में हम इतने असंवेदनशील कब हो गए? जो अवैध खनन के लिए मंदिर ढहा देता है और दो युवकों के बीच झगड़े को साम्प्रदायिक तनाव बना देता है!
इन दिनों इलाहाबाद में हूं। प्रयाग का प्रसिद्ध माघ मेला चल रहा है। एक महीने के लिए धर्म की अस्थाई नगरी। जहां दिन-रात वेद पुराण की व्याख्याएं होती हैं। शुक्रवार (12 जनवरी) को इलाहाबाद से सटे ऐतिहासिक सुजावनपुर मंदिर जाने की योजना बनी। यह मंदिर यमुना की धारा के बीच एक टीले पर स्थित है। 'ओमकारा' फिल्म में बाहुबली के रुद्राभिषेक का पूरा सीन इसी मंदिर में फिल्माया गया है। पहले लोग इस मंदिर की खूबसूरती के लिए दौड़े चले आते थे अब इसकी दुर्दशा देखने आते हैं। घाट पर खनन माफियाओं का बोलबाला है। कहते हैं खनन माफियाओं ने कुछ दिन पहले मंदिर की प्राचीन मूर्ति भी गायब करवा दी थी। फिलहाल वहां असली मूर्ति की नकल रखी गई है।
सुबह 9 बजे इलाहाबाद से घूरपुर के लिए निकले। साथ में दो अखबार के रिपोर्टर भी थे। इलाहाबाद से करीब 20 किमी की दूरी हमने आधे घंटे में तय की। वहां पहुंचते ही एक और स्ट्रिंगर भी हमारे साथ हो लिया। शुरुआती बातचीत में ही पता चल गया कि उस स्ट्रिंगर को इलाके के ऐतिहासिक स्थलों के बारे में अच्छी जानकारी है। हर दो किलोमीटर बाद वह किसी पहाड़ी टीले पर गाड़ी रुकवाता और उसका ऐतिहासिक महत्व बताया। उस स्ट्रिंगर की बातों से स्पष्ट हो गया था कि कैसे बौद्ध धार्मिक स्थलों का भगवाकरण करने की कोशिश की जा रही है।
घूरपुर से हम ऐतिहासिक भीटा गांव पहुंचे जहां से सुजावनपुर घाट के लिए एक धूल भरा कच्चा रास्ता जाता है। घाट पर पहुंचते ही सामने एक टीलेनुमा आकृति दिखाई दी। आदतन फोटो खींचने के लिए मैंने जैसे ही मोबाइल निकाला साथ चल रहे स्ट्रिंगर ने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसने उस ओर इशारा किया जिधर खनन जारी था। सामने से दो-तीन लोग लोग हमारी तरफ बढ़ रहे थे। स्ट्रिंगर ने बताया कि यहां बालू का अवैध खनन चल है। अगर इन्हें जरा भी शक हुआ कि हम मीडिया कवरेज के लिए आए हैं तो यहां से निकल पाना मुश्किल हो जाएगा।
मंदिर जाने के लिए कोई सीधा रास्ता नहीं था। यमुना की एक छोटी-सी धारा पर लकड़ी रख दी गई थी। उसी पर चढ़कर मंदिर पहुंचना था। मंदिर की हालत ऐसी मानो धाराशायी होने के लिए सिर्फ एक धक्के का इंतजार कर रहा हो! मंदिर में एक 'डुप्लीकेट' मूर्ति रखी थी जिसमें शिवलिंग पर बुद्ध जैसी आकृति गुदी हुई थी। मंदिर के गुंबद में अंदर की तरफ अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ था। स्ट्रिंगर ने अपने पूरे ज्ञान के आधार पर बताया कि औरंगजेब का एक सरदार था शाइस्ता खान। उसी ने यहां एक आरामगाह बनवाई थी।
हम मंदिर देख ही रहे थे कि खननकारियों का मुखिया हमारे पास आ गया। मंदिर की दुर्दशा और जीर्णोद्धार के विकल्पों पर कुछ विमर्श हुआ। दरअसल, ये दिखावे की बात-चीत थी। सच्चाई ये है कि वो चाहता कि जितनी जल्दी हो सके ये यहां से चले जाएं और हम चाहते थे कि यहां जितनी देर रहे ये हमें कोई नुकसान ना पहुंचाए। मुखिया तब तक हमारे साथ रहा जब तक हम दर्शन करने के बाद वापस अपनी गाड़ी तक नहीं पहुंच गए। मैंने उसी मुखिया को अपना मोबाइल देकर मंदिर में अपनी कुछ तस्वीरें क्लिक करवाई।
सुजावनपुर से निकलकर हम वापस घूरपुर पहुंचे। वहां से इलाहाबाद के लिए निकल ही रहे थे कि अचानक हमारे साथ चल रहे रिपोर्टर के मोबाइल पर एक मैसेज फ्लैश हुआ- 'घूरपुर थाना क्षेत्र के करमा गांव में साम्प्रदायिक तनाव'। मैसेज सुनते ही मेरे मुंह से निकल गया कि हमें वहां चलना चाहिए। थोड़ी देर बाद एक और मैसेज आया- 'पथराव और आगजनी में एसडीएम करछना घायल।' अबतक हमारी गाड़ी करमा गांव की तरफ मुड़ चुकी थी।
डिजिटल पत्रकारिता की दुनिया में डेस्क पर काम करते हुए रिपोर्टिंग के ऐसे मौके बहुत कम मिलते हैं। घटनास्थल वहां से करीब 5 किमी दूर था। रास्ता उसी गांव से अंदर से होकर जाता था जहां हिंसा हुई थी। रास्ते में मिलने वाले गांव के लोगों ने आगे के खतरे के बारे में आगाह किया लेकिन हम बढ़ते रहे। रास्ते में जहां 8-10 लोग इकत्रित दिखते धड़कनें बढ़ जाती थी। करमा गांव पहुंचे तो देखा सड़कें पत्थर और बोल्डर से पटी पड़ी हैं। गाड़ी वहीं रोक दी।
आस-पास कोई दिखाई नहीं दे रहा था। हिम्मत करके थोड़ा और आगे बढ़े तो पीएसी और पुलिस के जवान तैनात थे। कुछ ही दूरी पर एसएसपी इलाहाबाद, एडीएम, एसपी यमुनापार समेत पूरा प्रशासनिक महकमा जमा था। प्रशासनिक अधिकारियों को देखकर जान में जान आई। हम गाड़ी से उतरे। मौके पर कुछ तस्वीरें खींची। सुरक्षाकर्मियों, अधिकारियों और ग्रामीणों से बात की। पूरा मामला हैरान कर देने वाला था। कहानी कुछ ऐसी है...
घूरपुर थाना क्षेत्र के करमा बाजार में धर्मेद्र पटेल और वसीम का घर आसपास है। गुरुवार शाम धर्मेद्र के घर के पास रखे पुवाल (धान का भूसा) को वसीम लेकर अपने घर आ रहा था। इसको धर्मेद्र ने देख लिया तो दोनों मे हाथापाई हो गई। मामला चौकी पहुंचा और समझा-बुझाकर शांत करा लिया गया। शुक्रवार सुबह वसीम अपने कुछ साथियों के साथ धर्मेंद्र की दुकान पर पहुंचा और पेट और जांघ में चाकू मारकर घायल कर दिया और फरार हो गया। धर्मेंद्र के पक्ष के लोगों ने चक्का जाम कर दिया जिसके बाद प्रशासन मौके पर पहुंचा। गिरफ्तारी का अल्टीमेटम दिया गया। गिरफ्तारी नहीं होने पर भीड़ का आक्रोश बढ़ा और पत्थरबाजी और आगजनी शुरू कर दी गई।
पत्थरबाजी में करछना के एसडीएम और उनका अर्दली घायल हो गए। पीएसी के कुछ जवानों को भी चोटें आई। बवाल बढ़ता देख और पुलिस बल के साथ एसएसपी इलाहाबाद पहुंचे और उपद्रव पर काबू पा लिया गया। घायल एसडीएम को स्थानीय चिकत्सालय में प्राथमिक उपचार के बाद इलाहाबाद रेफर कर दिया गया। यहां देखिए करमा गांव में मची हिंसा का वीडियो...
करमा से हम लोग इलाहाबाद के लिए वापस निकले। शाम होते-होते मैं संगम के माघ मेला क्षेत्र पहुंच गया। गंगा आरती के बाद देर शाम तक घाट किनारे ही बैठा रहा। सोचता रहा कि लाउडस्पीकर से जारी धार्मिक व्याख्याओं का समाज पर कोई असर क्यों नहीं पड़ रहा। एक समाज के रूप में हम इतने असंवेदनशील और असहिष्णु क्यों होते जा रहे हैं जो खनन के लिए मंदिर ढहा देता है और दो युवकों के झगड़े को साम्प्रदायिक तनाव बना देता है।