अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: बाघों की संख्या बढ़ी, अब उनकी मुश्किलें कम करें

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 16, 2020 11:27 AM2020-07-16T11:27:16+5:302020-07-16T11:27:16+5:30

देश के मौजूद टाइगर रिजर्व का कुल रकबा (क्षेत्रफल) फिलहाल 3 लाख 80 हजार वर्ग किमी है, जबकि गिने गए करीब तीन हजार बाघों को रहने के लिए 200 वर्ग किमी प्रति बाघ के हिसाब से 6 लाख वर्ग किमी जगह चाहिए. साफ है कि बाघों को रहने का प्राकृतिक माहौल देना है तो मौजूदा क्षमता से दोगुनी जगह उन्हें देनी पड़ेगी.

Abhishek Kumar Singh's blog: Tigers increase, now reduce their difficulties | अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: बाघों की संख्या बढ़ी, अब उनकी मुश्किलें कम करें

वर्ष 2006 में सरकार ने तय किया था कि किसी भी कीमत पर देश में बाघ बचाए जाएंगे.

अभिषेक कुमार सिंह

ऐसे वक्त में जब वन्यजीवों को लेकर रोजाना ही अनगिनत नकारात्मक खबरें आ रही हों, बाघों की गणना का भारतीय कीर्तिमान हमारा हौसला बढ़ाता है. भारत ने वर्ष 2018 में कैमरा ट्रैपिंग तकनीक के जरिए देश के अभयारण्यों में बाघों की गिनती के रूप में जो दुनिया का सबसे बड़ा वन्यजीव सर्वेक्षण किया था, उसे गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह दी गई है. बताया गया है कि इस गणना में देश में 2967 बाघों की मौजूदगी का अनुमान लगाया गया था जो एक बहुत बड़ा आंकड़ा नहीं है, लेकिन संतोष इसका है कि यह संख्या विश्व के कुल बाघों की 75 प्रतिशत तक है. यानी दुनिया में सबसे ज्यादा बाघ अब भी भारत  में ही हैं.

इस कीर्तिमान की महत्ता कई वजहों से है. इनमें पहला कारण वह ‘संकल्प सिद्धि’ है जिसके माध्यम से केंद्र सरकार ने बाघों की संख्या दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया था. वर्ष 2006 में सरकार ने तय किया था कि किसी भी कीमत पर देश में बाघ बचाए जाएंगे. 2014 की तुलना में देखें तो बाघों की मौजूदा संख्या (2967) अपनी पिछली गणना के मुकाबले एक तिहाई ज्यादा है. लेकिन यह संख्या 2006 की तुलना में दोगुना से भी अधिक हो चुकी है. हालांकि गणना के नए तरीके का तकनीक पेंच यह है कि बाघों की पिछली गिनती में डेढ़ साल या इससे ज्यादा उम्र वाले बाघ ही गिने गए थे, जबकि इस गिनती में एक साल तक की उम्र वाले बाघों (शावकों) को भी गिना गया है.

गणना करने वाले अधिकारियों का मत है कि एक और डेढ़ साल के बाघ के बीच ज्यादा फर्क नहीं होता, लिहाजा गणना की न्यूनतम आयु एक साल कर दी गई है. इसके डेढ़ साल रखने की वजह यह बताई गई थी कि इस उम्र में आकर बाघ आत्मनिर्भर हो जाता है. हालांकि यह सिर्फ एक तकनीकी मामला है. ज्यादा उल्लेखनीय बात यह है कि यह एक व्यापक सर्वेक्षण था जिसमें  2018-19 की अवधि में अभयारण्यों के विभिन्न 141 क्षेत्रों में करीब 27 हजार स्थानों पर कैमरे लगाए गए.  

आंकड़े और सर्वेक्षण अपनी जगह हैं, बाघ की मुश्किलें अपनी जगह. हमें यह बात इसलिए कहनी पड़ रही है कि इसी सर्वेक्षण में पता चला कि देश के तीन बाघ अभयारण्यों (टाइगर रिजर्व) में तमाम प्रयासों के बावजूद एक भी बाघ नहीं खोजा जा सका. ध्यान रहे कि सर्वेक्षण का उद्देश्य सिर्फ गिनती करना नहीं होता, इसलिए जब यह पता चलता है कि आबादी बढ़ने के साथ-साथ बाघों के प्राकृतिक रहवास का संकट भी बढ़ रहा है, तो आने वाले वक्त में पैदा होने वाली दिक्कतों का अहसास होने लगता है.

देश के मौजूद टाइगर रिजर्व का कुल रकबा (क्षेत्रफल) फिलहाल 3 लाख 80 हजार वर्ग किमी है, जबकि गिने गए करीब तीन हजार बाघों को रहने के लिए 200 वर्ग किमी प्रति बाघ के हिसाब से 6 लाख वर्ग किमी जगह चाहिए. साफ है कि बाघों को रहने का प्राकृतिक माहौल देना है तो मौजूदा क्षमता से दोगुनी जगह उन्हें देनी पड़ेगी.

Web Title: Abhishek Kumar Singh's blog: Tigers increase, now reduce their difficulties

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