अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: अंतरिक्ष में नए युग की शुरुआत

By अभिषेक कुमार सिंह | Published: June 9, 2020 12:43 PM2020-06-09T12:43:20+5:302020-06-09T12:43:20+5:30

अंतरिक्ष को जानने-समझने और उसके आकर्षण में बंधने एक नया अवसर इधर तब पैदा हुआ, जब दुनिया में पहली बार एक निजी कंपनी के रॉकेट से उड़ान भरकर दो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) जा पहुंचे. अरसे से यह सपना एक सवाल के रूप में शायद हजारों आंखों में पल रहा है कि अगर वे पैसे चुका सकें तो क्या उन्हें कभी अंतरिक्ष की सैर का मौका मिल सकता है. 

Abhishek Kumar Singh's blog over beginning of a new era in space | अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: अंतरिक्ष में नए युग की शुरुआत

प्राइवेट कंपनी- स्पेस एक्स के रॉकेट फॉल्कन-9 से अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के सफल मिशन ‘कू्र डेमो-2’ ने इस आशाओं को नया आधार दिया है.

दार्शनिक की तरह सोचें तो अंतरिक्ष एक ऐसी जगह है जो हमें सभी दायरों से आजाद करती है. जात-पांत, रंगभेद, धर्म-संप्रदाय आदि तमाम आग्रहों से ऊपर उठने का संदेश देने वाले अंतरिक्ष का आकर्षण इससे इतर भी है. यह आकर्षण इसके रहस्यों को लेकर है. सौरमंडल की अतल गहराइयों की छानबीन करने वाले मानवनिर्मित उपग्रहों और चांद के अलावा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन तक की यात्राओं से अंतरिक्ष के कई रहस्य खुले हैं लेकिन यह ब्रह्मांड इतना विशाल है और इसे जानने की हमारी जिज्ञासाएं इतनी ज्यादा हैं, जिससे लगता है कि यह अन्वेषण कभी रुकेगा नहीं.

अंतरिक्ष को जानने-समझने और उसके आकर्षण में बंधने एक नया अवसर इधर तब पैदा हुआ, जब दुनिया में पहली बार एक निजी कंपनी के रॉकेट से उड़ान भरकर दो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) जा पहुंचे. अरसे से यह सपना एक सवाल के रूप में शायद हजारों आंखों में पल रहा है कि अगर वे पैसे चुका सकें तो क्या उन्हें कभी अंतरिक्ष की सैर का मौका मिल सकता है. 

प्राइवेट कंपनी- स्पेस एक्स के रॉकेट फॉल्कन-9 से अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के सफल मिशन ‘कू्र डेमो-2’ ने इस आशाओं को नया आधार दिया है.यह पहला मौका है, जब किसी निजी उड़ान से इंसान को स्पेस में ले जाया गया है. वैसे तो यह अंतरिक्ष में एक नए युग की शुरु आत है लेकिन इसके जरिए एक तीर से कई निशाने साधे जा सकेंगे.  

हालांकि 1969 के अपोलो-11 मिशन के बाद कोई इंसान चंद्रमा पर नहीं भेजा जा सका है, लेकिन बाद के चंद्रमिशनों के अलावा स्पेस स्टेशन मीर, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) के निर्माण और चीन-भारत के स्पेस मिशनों ने साबित किया कि अंतरिक्ष ऐसी दुरुह जगह नहीं है, जहां पहुंचा न जा सके. पर समस्या एक तो यह है कि अभी तक के सारे स्पेस मिशन सरकारी अंतरिक्ष संगठनों की देन थे. दूसरे, अब सरकारी स्पेस एजेंसियां बढ़ते खर्च और कमाई के नगण्य अवसरों के मद्देजनर इन अभियानों पर पैसा नहीं फूंकना चाहती हैं.  जैसे-जैसे सरकारी एजेंसियां खर्चीले स्पेस मिशनों से अपने हाथ खींच रही हैं, वैसे-वैसे प्राइवेट स्पेस एजेंसियां मौके को भुनाने की कोशिशें कर रही हैं.

उन्हें लगता है कि अंतरिक्ष को अब पर्यटन का केंद्र बनाया जा सकता है और दुनिया भर के अमीरों को इस रोमांचक यात्रा पर ले जाकर पैसे कमाए जा सकते हैं. हाल में हमारे देश की सरकार ने भी यही संकेत दिए हैं कि अब एक लीगल फ्रेमवर्क के तहत भारत के अंतरिक्ष सेक्टर में निजी क्षेत्र को भागीदारी के ज्यादा मौके दिए जाएंगे, ताकि ज्यादा संख्या में संचार सैटेलाइट बनाकर उनका प्रक्षेपण किया जा सके.

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