अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: कारीगरी नहीं, वास्तविक राहत पैकेज का इंतजार

By अभय कुमार दुबे | Published: September 11, 2020 02:23 PM2020-09-11T14:23:44+5:302020-09-11T14:23:44+5:30

अप्रैल और मई में घरबंदी के कारण अर्थव्यवस्था के आंकड़े जमा करने की प्रक्रिया भी ठप हो गई थी. सरकार ने खुद ही मान लिया है कि कोविड-19 के कारण न केवल आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ा है, बल्कि ‘डाटा कलेक्शन मैकेनिज्म’ भी प्रभावित हुआ है.

Abhay Kumar Dubey's blog: No workmanship, waiting for genuine relief package gdp india economy | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: कारीगरी नहीं, वास्तविक राहत पैकेज का इंतजार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

सबसे पहले यह सवाल पूछना जरूरी है कि अर्थव्यवस्था में आई 23.9 प्रतिशत की गिरावट रोकने के लिए सरकार की तरफ से क्या पेशबंदी की गई होगी. कहना न होगा कि सरकार ने दो राहत पैकेज जारी किए. पहले छोटा, फिर बड़ा. बड़े के बारे में दावा किया गया कि वह बीस लाख करोड़ का है. यानी, अगर भारत की कुल अर्थव्यवस्था दो सौ लाख करोड़ की है तो उसका दस फीसदी. सुनने में बहुत प्रभावित करने वाला आंकड़ा है यह. लेकिन असलियत में हुआ यह कि सरकार ने कारीगरी दिखाई, और नया धन बाजार में केवल लाख-डेढ़ लाख करोड़ रुपए ही आया. नतीजा यह निकला कि टीवी की बहसों में तो सरकार को वाहवाही मिल गई लेकिन अर्थव्यवस्था का भला नहीं हुआ.

अब सभी लोग, सभी सेक्टर और सभी विशेषज्ञ सरकार की तरफ टकटकी लगा कर देख रहे हैं कि अब वह नया राहत पैकेज लाएगी, हर सेक्टर को कुछ न कुछ देगी, उत्पादन बढ़ेगा. इसके अलावा लोगों को यह उम्मीद भी है कि सरकार बाजार में मांग बढ़ाने के लिए लोगों की जेबों में कुछ न कुछ धन डालेगी. लेकिन इसके लिए जो पैसा चाहिए, वह कहां से आएगा. यह लाख टके का सवाल है, जिसका जवाब सरकार को तलाश करना है.

दूसरी बात यह है कि अर्थव्यवस्था में केवल 23.9 प्रतिशत की ही गिरावट क्यों दिखाई गई है? उनके ताज्जुब के कुछ ठोस कारण हैं. अप्रैल से जून, 2020 के बीच में अर्थव्यवस्था पिछले साल की इस अवधि के मुकाबले 57 फीसदी कम काम कर रही थी. अप्रैल में लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था का केवल 25 प्रतिशत हिस्सा ही सक्रिय था. मई में लॉकडाउन से कुछ राहत मिलने पर यह आंकड़ा चालीस फीसदी तक बढ़ा. जून में जब अनलॉक-1 की शुरुआत हुई तो अर्थव्यवस्था की गतिविधियां साठ फीसदी तक पहुंचीं. इस जोड़-बाकी से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि गिरावट का आंकड़ा 23.9 होने के बजाय 47 फीसदी होना चाहिए.

दिखाए गए और वास्तविक आंकड़े के बीच अंतर का एक और बुनियादी कारण है जिसकी तरफ जानकारों ने ध्यान खींचा है. वह है जीडीपी (कुल घरेलू उत्पाद) का अनुमान लगाने की प्रक्रिया में अनौपचारिक क्षेत्र की अनुपस्थिति. नोटबंदी के जमाने से ही असंगठित क्षेत्र की गतिविधियों पर बहुत बुरी तरह से मार पड़ी है. चूंकि यह क्षेत्र हमारे रोजगार में 94 फीसदी और कुल उत्पादन में 45 फीसदी का योगदान करता है. अर्थशास्त्रियों को यह दिख रहा है कि 1996 से ही जीडीपी के सालाना और तिमाही आंकड़ों में इस क्षेत्र का योगदान शामिल नहीं किया जाता है. गलतबयानी का खतरा उठाए बिना यह कहा जा सकता है कि 23.9 फीसदी की गिरावट केवल संगठित क्षेत्र में ही है. असंगठित क्षेत्र तो सत्तर से अस्सी फीसदी के बीच  गिरा है.

दरअसल, मामला कुछ और गहरा है. अप्रैल और मई में घरबंदी के कारण अर्थव्यवस्था के आंकड़े जमा करने की प्रक्रिया भी ठप हो गई थी. सरकार ने खुद ही मान लिया है कि कोविड-19 के कारण न केवल आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ा है, बल्कि ‘डाटा कलेक्शन मैकेनिज्म’ भी प्रभावित हुआ है. न औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक के लिए आंकड़े जमा किए जा सके, न ही उपभोक्ता सूचकांक के लिए. केवल उन्हीं कंपनियों ने अपने उत्पादन के बारे में जानकारी दी, जो लाभकारी उत्पादन कर पा रही थीं. अर्थव्यवस्था के बाकी एजेंटों की तरफ से खामोशी कायम रखी गई. दरअसल, आंकड़े जमा ही नहीं हुए. जो आंकड़े बताए जा रहे हैं उनका स्नेत जीएसटी जमा करने के आंकड़ों में है. यह परिस्थिति बताती है कि सरकार को जल्दी ही नए आंकड़े जारी करने पड़ेंगे.

जब से नोटबंदी हुई है, हर तिमाही में जीडीपी गिर रही है. लेकिन सरकार लगातार शेखी बघारती रही कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है. मोदीजी ने पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य का ऐलान क्या किया- मीडिया मंचों पर तरह-तरह की बढ़ी-चढ़ी दावेदारियों की धूम मच गई. यह अलग बात है कि सत्तारूढ़ पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं को यह तक नहीं पता था कि एक ट्रिलियन या खरब में कितने शून्य होते हैं. ऐसी शेखीखोरी का नतीजा यह निकलता है कि सार्वजनिक मंचों पर लगातार झूठ बोलते-बोलते झूठ को ही सच समझने का रवैया बन जाता है. नीति-निमार्ता यथार्थ से कट कर खुद अपने ही बनाए हुए बुलबुले में रहने लगते हैं. और, अगर कोई बुलबुला है तो देर-सबेर उसे फूटना ही होता है.

Web Title: Abhay Kumar Dubey's blog: No workmanship, waiting for genuine relief package gdp india economy

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