लाइव न्यूज़ :

अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: किसान आंदोलन के पीछे की अनकही कहानी

By अभय कुमार दुबे | Updated: March 3, 2021 09:46 IST

कृषि बिलों के खिलाफ किसान आंदोलन जारी है. इस बीच पंजाब के बुजुर्ग किसान नेता बलबीर सिंह राजोवाल का एक भाषण भी चर्चा में है.

Open in App

हाल ही में पंजाब के बुजुर्ग किसान नेता बलबीर सिंह राजोवाल द्वारा मिली-जुली पंजाबी-हिंदी में दिया गया एक भाषण सुनने को मिला. यह हर पत्रकार को सुनना चाहिए.

 दरअसल जगरांव की भीड़-भरी किसान महापंचायत में दिया गया यह भाषण उस भीतरी कहानी को बयान करता है जो केंद्र सरकार द्वारा संसद में पारित कराए गए तीनों विवादास्पद कानूनों से जुड़ी हुई है. 

किसी भी सरकारी प्रवक्ता या किसी भी भाजपा प्रवक्ता ने आज तक राजोवाल द्वारा इस भाषण में कही गई बातों का खंडन नहीं किया है. इससे समझा जा सकता है कि या तो सरकार राजोवाल की बातों का महत्व नहीं समझ रही है, या फिर राजोवाल द्वारा पेश किए गए तथ्यों को सच मानती है और इसीलिए उनका खंडन करने का साहस नहीं जुटा पा रही है.

राजोवाल ने अपनी बात अक्टूबर, 2017 यानी तीन किसान कानूनों को अध्यादेश की शक्ल में पेश करने से तकरीबन ढाई साल पहले से शुरू की. 

उन्होंने बताया कि इस महीने केंद्र सरकार ने एनआईटीआई आयोग में एक बड़ी बैठक आयोजित की जिसमें भाग लेने का न्योता उन्हें भी मिला. उनके साथ राजस्थान और महाराष्ट्र के किसान नेता भी थे.

इस बैठक में सरकारी अफसरों, सरकारी अर्थशास्त्रियों के साथ-साथ निजी कंपनियों के सीईओ स्तर के प्रतिनिधि भी भाग ले रहे थे. चर्चा का विषय था खेती का संकट. बातचीत शुरू हुई तो एक सरकारी अर्थशास्त्री ने खड़े हो कर कहा कि अगर कृषि-क्षेत्र के संकट से पार पाना है तो निजी क्षेत्र को उसमें पूंजी निवेश करना होगा. 

इसके बाद एक निजी कंपनी के सीईओ ने खड़े हो कर कहा कि वे निवेश करने के लिए तैयार हैं, लेकिन उनकी कुछ शर्ते हैं. उनकी शर्ते मुख्य रूप से तीन थीं. पहली, सरकार पांच-पांच, सात-सात हजार एकड़ के विशाल रकबे वाली जमीनें बना कर उन्हें दे. 

दूसरी, उस जमीन पर खेती करने का ठेका पचास साल तक (यानी तीन पुश्तों तक) तय कर दिया जाए. तीसरी, किसान इस बंदोबस्त में कोई दखल न दें और उस जमीन पर मजदूर की तरह काम करें. 

बैठक चलती रही-चलती रही. जो भी वक्ता उठता था, इसी से मिलती-जुलती बात करता था. लेकिन न राजोवाल को बोलने का मौका मिला, न रामपाल जाट को. उनसे कहा गया कि धीरज रखिये, उनकी बात भी सुनी जाएगी. इस तरह मीटिंग खत्म होने में आधा घंटा रह गया.

अपनी बात कहने का समय न मिलता देख राजोवाल ने अपनी खास शैली में घोर आपत्ति दर्ज कराई. फिर बैठक को दो घंटे और चलाया गया जिसमें किसान नेताओं को भी बोलने का मौका मिला. 

राजोवाल ने कहा कि पंजाब और हरियाणा के जाटों की सभ्यता-संस्कृति एक जैसी ही है. वे मुख्यत: जमींदार या भूमिधर किसान हैं. भले ही कोई अपनी जमीन बेच दे, फिर भी वह अपना परिचय जमींदार के बेटे के तौर पर ही देता है. शादी के रिश्ते की बात में पहला सवाल यही पूछा जाता है कि आपके पास कितनी जमीन है. ऐसे जाट समाज को खेती का यह कॉर्पोरेट बंदोबस्त रास नहीं आएगा. 

राजोवाल ने स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार ने कोई भी गलत कदम उठाया तो कोई किसान नहीं मानेगा, भले ही उसके पास कम जमीन हो या ज्यादा. वह हरियाणा और पंजाब के किसानों को कंट्रोल नहीं कर पाएगी. राजोवाल का मानना है कि उनकी इस बात का सरकार और मीटिंग के अन्य भागीदारों पर असर पड़ा.

राजोवाल के मुताबिक इस बैठक के बाद सरकार चुपचाप पेशबंदी करती रही. उन्हें भी शक हो गया था, इसलिए वे भी चुपचाप कागज-पत्तर जमा करते रहे. इस बीच उन्हें प्रधानमंत्री दफ्तर द्वारा राज्य सरकारों को भेजा गया एक पत्र भी मिला जिसमें गेहूं की खरीद न करने की बात कही गई थी. 

इस पत्र को पढ़ने के बाद राजोवाल का शक गहरा गया. उन्होंने और दस्तावेज जमा किए, और 17 फरवरी को सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को जमा करके इस समस्या पर एक सेमिनार जैसा किया. इसमें उन्होंने सारे दस्तावेजों की प्रतियां राजनीतिक नेताओं को दीं. 

इस सेमिनार में कांग्रेस के सुनील जाखड़ ने मेज पर हाथ मार कर कहा- एमएसपी (न्यूनतम खरीद मूल्य) गई, एमएसपी गई, एमएसपी गई.

राजोवाल का कहना है कि सरकार इस आंदोलन को पंजाब-हरियाणा के किसानों तक सीमित मानती है. दरअसल, वह इन प्रांतों के बेहतरीन मंडी सिस्टम को तोड़ देना चाहती है. इसके खत्म होने के बाद कृषि को कॉर्पोरेट सेक्टर में देने के विरोध की संभावना ही पूरी तरह से खत्म हो जाएगी. 

उन्होंने किसान नेताओं और सरकार के बीच हुई 11 दौर की बातचीत के कुछ दिलचस्प पहलू भी जगरांव की महापंचायत में बयान किए. उन्होंने बताया कि सरकार ने तीनों कानूनों पर ‘क्लॉज-दर-क्लॉज’ चर्चा करने के लिए कहा. 

किसान नेता तैयार हो गए, और उन्होंने ‘क्लॉज-दर-क्लॉज’ कानूनों की कमियां बतानी शुरू कीं. सरकारी पक्ष हर कमी को नोट करता था, और कहता कि इसे संशोधन करके ठीक कर देंगे. जब कमियां बहुत ज्यादा हो गईं तो किसान नेताओं ने कहा कि इतने संशोधन करके क्या होगा, क्यों नहीं कानून ही रद्द कर देते. 

इस पर सरकार तैयार नहीं हुई. उसका कहना था कि संशोधन जितना चाहे करवा लो, लेकिन कानून वापसी की बात न करो.

टॅग्स :किसान आंदोलन
Open in App

संबंधित खबरें

भारतNagpur Farmers Protest: आओ बनाएं आंदोलन को जन आंदोलन!

भारतMaharashtra Farmers Protest: आंदोलन के स्वरूप को लेकर सहमति बननी चाहिए, हजारों वाहन 30 घंटे से ज्यादा फंसे

भारतमहाराष्ट्र विधानमंडलः किसानों को आसानी से मिला कर्ज लौटाएगा कौन?, 18.81 करोड़ किसान पर 3235747 करोड़ रुपए का कर्ज

कारोबारLatur Maharashtra Farmer Couple: किसानों की त्रासदी का जिम्मेदार कौन?, खुद बैल बन गए!

भारतसंयुक्त किसान मोर्चा ने किसानों से 28 मार्च को देशभर में विरोध-प्रदर्शन करने का आह्वान किया

भारत अधिक खबरें

भारतमहाराष्ट्र चुनावः 23 नगर परिषदों और नगर पंचायतों में मतदान, स्थानीय निकायों में खाली पड़े 143 सदस्य पदों पर पड़े रहे वोट, जानें लाइव

भारतArunachal Pradesh Local Body Election Results 2025: 186 जिला परिषद सदस्य सीट की गिनती जारी, ग्राम पंचायत में 6,227 उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित

भारतDelhi Fog: दिल्ली में छाया घना कोहरा, 100 से ज्यादा उड़ानें रद्द, यात्रियों के लिए जारी एडवाइजरी

भारतहाथियों के झुंड के टकराई राजधानी एक्सप्रेस, पटरी से उतरे कई डब्बे; 8 हाथियों की मौत

भारतMP News: भोपाल में आज मेट्रो का शुभारंभ, जानें क्या है रूट और कितना होगा टिकट प्राइस