अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: राजनीतिक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने की नहीं दिखती उम्मीद

By अभय कुमार दुबे | Published: March 31, 2021 09:23 AM2021-03-31T09:23:46+5:302021-03-31T09:23:46+5:30

महाराष्ट्र में सचिन वाझे से जुड़ा जो मामला सामने आया है और जिस तरह मुंबई पुलिस की ओर से वसूली जैसी बात सामने आई है, संभव है कि ये सब दूसरे राज्यों में भी चल रहा होगा.

Abhay Kumar Dubey blog: Sachin Vaze case How to curb Political corruption | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: राजनीतिक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने की नहीं दिखती उम्मीद

भ्रष्टाचार पर अंकुश कैसे लगेगा? (सचिन वाझे- फाइल फोटो)

मुंबई के सचिन वाझे प्रकरण के केंद्र में राजनीतिक भ्रष्टाचार का प्रश्न है. भले ही इस पर मुंबई के माहौल और राजनीति की छाप है, लेकिन ऐसे सचिन वाझे (केवल पुलिस नहीं, अन्य प्रशासनिक अफसर भी) और राजनीतिक मकसदों से की जाने वाली वसूली हर राज्य में आम है. 

हर डिपार्टमेंट के लिए वसूली के कोटे तय किए जाते हैं. इस तरह जमा किए जाने वाले धन से चुनाव लड़ा जाता है. एक चुनाव खत्म होते ही दूसरे चुनाव की तैयारी शुरू कर दी जाती है, और उस तैयारी का खास पहलू इसी तरह का धन जमा करना होता है. 

मुंबई पुलिस से प्रति माह लिए गए सौ करोड़ रुपयों से भी चुनावी राजनीति ही होनी थी. और, यह मान लेना नादानी होगी कि इस तरह की वसूली सचिन वाझे प्रकरण के बाद नहीं होगी. मैं तो मानता हूं कि इस भेद के खुलने के बावजूद यह वसूली जारी रहेगी. 

दूसरे राज्यों में भी यही सब चल रहा होगा. ऐसे भेद और भी खुल जाएं, तो भी यह सिलसिला नहीं रुकने वाला है. दरअसल, यह तंत्र इसी तरह से चलता है, और चलता रहेगा. वाझे के पास एक नोट गिनने की मशीन मिली थी. ऐसी मशीनें सत्तारूढ़ राजनेताओं की पत्नियां खरीदने विदेश जाती हैं. 

ऐसी खबरें अखबारों में छप चुकी हैं. एक मौजूदा मुख्यमंत्री की पत्नी के बारे में यह खबर प्रकाशित हो चुकी है. दरअसल, इस हमाम में सब नंगे हैं. 

मलेशियाई समाजशास्त्री सैयद हुसैन अलातास ने राजनीतिक भ्रष्टाचार के कुछ लक्षणों का उल्लेख किया है जिनके आधार पर इस परिघटना की एक परिभाषा दी जा सकती है. अलातास के अनुसार ऐसे भ्रष्टाचार में एक से अधिक व्यक्तियों का सम्मिलित होना अनिवार्य है, क्योंकि अकेले व्यक्ति द्वारा किया हुआ व्यवहार धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है. 

अलातास मानते हैं कि साधारणत: भ्रष्टाचार गोपनीयता की आड़ में किया जाता है. अर्थात यह छिपकर किया जाने वाला ऐसा अपराध है जो साधारणत: लोगों की नजरों में नहीं आता. खास बात यह है कि पारस्परिक लाभ के आदान-प्रदान में भ्रष्ट व्यवहार की पद्धति अपनाने वाले लोग उसके न्यायसंगत होने का दावा पेश करने से बाज नहीं आते. 

यह परिभाषा इस लिहाज से उपयोगी है कि इसके जरिये व्यक्तिगत रूप से की जाने वाली चालबाजियां, मूल्यहीनताओं, अनैतिकताओं, जालसाजियों, गबन इत्यादि को भ्रष्टाचार की श्रेणी से अलग किया जा सकता है. इसके बाद जो भ्रष्टाचारण बचता है, उसकी जड़ सरकारी तंत्र, नेटवर्किंग और ताकतवर लोगों की मिली-जुली साजिश में चिह्न्ति करना आसान हो जाता है.

भ्रष्टाचार की कई किस्में और डिग्रियां हो सकती हैं. लेकिन समझा जाता है कि राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार समाज और व्यवस्था को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है. अगर उसे संयमित न किया जाए तो भ्रष्टाचार मौजूदा और आने वाली पीढ़ियों के मानस का अंग बन सकता है. 

मान लिया जाता है कि भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक सभी को, किसी को कम तो किसी को ज्यादा, लाभ पहुंचा रहा है. राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार एक-दूसरे से अलग न होकर परस्पर गठजोड़ से पनपते हैं. 

2004 की ग्लोबल करप्शन रिपोर्ट के मुताबिक इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुहार्तो, फिलीपींस के राष्ट्रपति मार्कोस, जायरे के राष्ट्रपति मोबुतो सेकू, नाइजीरिया के राष्ट्रपति सानी अबाका, सर्बिया के राष्ट्रपति मिलोसेविच, हैती के राष्ट्रपति डुवेलियर और पेरू के राष्ट्रपति फुजीमोरी ने हजारों से लेकर अरबों डॉलर की रकम का भ्रष्टाचार किया.

राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार को ठीक से समझने के लिए अध्येताओं ने उसे दो श्रेणियों में बांटा है. सरकारी पद पर रहते हुए उसका दुरुपयोग करने के जरिये किया गया भ्रष्टाचार और राजनीतिक या प्रशासनिक हैसियत को बनाए रखने के लिए किया जाने वाला भ्रष्टाचार. 

निजी क्षेत्र को दिए गए ठेकों और लाइसेंसों के बदले लिया गया कमीशन, हथियारों की खरीद-बिक्री में लिया गया कमीशन, फर्जीवाड़े और अन्य आर्थिक अपराधों द्वारा जमा की गई रकम, टैक्स-चोरी में मदद और प्रोत्साहन से हासिल की गई रकम, राजनीतिक रुतबे का इस्तेमाल करके धन की उगाही, सरकारी प्रभाव का इस्तेमाल करके किसी कंपनी को लाभ पहुंचाने और उसके बदले रकम वसूलने और फायदे वाली नियुक्तियों के बदले वरिष्ठ नौकरशाहों और नेताओं द्वारा वसूले जाने वाले अवैध धन जैसी गतिविधियां पहली श्रेणी में आती हैं. 

दूसरी श्रेणी में चुनाव लड़ने के लिए पार्टी-फंड के नाम पर उगाही जाने वाली रकमें, वोटरों को खरीदने की कार्रवाई, बहुमत प्राप्त करने के लिए विधायकों और सांसदों को खरीदने में खर्च किया जानेवाला धन, संसद-अदालतों, सरकारी संस्थाओं, नागर समाज की संस्थाओं और मीडिया से अपने पक्ष में फैसले लेने या उनका समर्थन प्राप्त करने के लिए खर्च किए जाने वाले संसाधन और सरकारी संसाधनों के आवंटन में किया जाने वाला पक्षपात आता है.

Web Title: Abhay Kumar Dubey blog: Sachin Vaze case How to curb Political corruption

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