1960 सिंधु जल संधिः 21वीं सदी में पहली बार पानी बना हथियार?, ‘रक्त और पानी एक साथ नहीं बह सकते’
By हरीश गुप्ता | Updated: May 1, 2025 05:37 IST2025-05-01T05:37:16+5:302025-05-01T05:37:16+5:30
1960 Indus Water Treaty: पीएम मोदी 21 वीं सदी में ‘पानी को हथियार के रूप में’ इस्तेमाल करने वाले पहले विश्व नेता बने जब उन्होंने चेतावनी दी कि ‘रक्त और पानी एक साथ नहीं बह सकते.’

सांकेतिक फोटो
1960 Indus Water Treaty: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के दिनों में अभूतपूर्व कदम उठाते हुए 1960 की सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को निलंबित करने का फैसला किया. आईडब्ल्यूटी भारत से पाकिस्तान के सिंधु नदी बेसिन में बहने वाली नदियों के पानी के उपयोग को नियंत्रित करता है. भले ही विशेषज्ञ इस बात पर बहस कर रहे हों कि क्या मोदी के कार्यों का प्रभाव जमीन पर दिखाई देगा, लेकिन इसका प्रभाव पहले से ही देखा जा रहा है. मोदी 21 वीं सदी में ‘पानी को हथियार के रूप में’ इस्तेमाल करने वाले पहले विश्व नेता बने जब उन्होंने चेतावनी दी कि ‘रक्त और पानी एक साथ नहीं बह सकते.’
सीमा पार से आतंक के कारण पिछले 65 वर्षों में विभिन्न सरकारों द्वारा संधि पर फिर से विचार करने की धमकियों के बावजूद, यह संधि दोनों देशों के बीच तीन युद्धों से बच गई. लेकिन अब नहीं. मोदी ने पानी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया है. सिंधु नदी के लगभग 93 प्रतिशत पानी का उपयोग पाकिस्तान द्वारा सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है.
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के प्रमुख बिलावल भुट्टो द्वारा दी गई धमकी से पता चलता है कि पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए पानी कितना महत्वपूर्ण है, जब उन्होंने कहा, ‘या तो हमारा पानी इसमें बहेगा, या उनका खून बहेगा.’’ मोदी हालांकि इस मुद्दे पर चुप रहे और भविष्य की कार्रवाई पर काम कर रहे हैं, लेकिन भारत के जल शक्ति मंत्री सी. आर. पाटिल ने भुट्टो को जवाब दिया.
पाटिल ने पलटवार करते हुए कहा, ‘पाकिस्तान में पानी की एक बूंद भी नहीं जाएगी.’ यह पहली बार नहीं है कि पानी को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया है. प्राचीन सभ्यताओं से लेकर आधुनिक युग तक के संघर्षों के इतिहास पर एक नजर डालें तो मुख्य रूप से बाढ़ लाने, पानी की आपूर्ति को मोड़ने और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाने जैसी रणनीति के माध्यम से ऐसा होता रहा है.
समकालीन इतिहास में, अंग्रेजों ने जर्मन बांधों को निशाना बनाते हुए डैमबस्टर्स की छापेमारी की और चीनियों ने दूसरे सिनो-जापानी युद्ध के दौरान आगे बढ़ती जापानी सेना को रोकने के लिए पीली नदी पर तटबंध को तोड़ दिया था.
विकल्पों पर विचार कर रहे हैं मोदी
देश बेसब्री से इंतजार कर रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई करेंगे. मोदी से पहले ही लोगों को बहुत उम्मीदें हैं क्योंकि 2016 में उरी हमले के बाद 10 दिनों के भीतर पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी और 2019 में पुलवामा हमले के बाद 12 दिनों के भीतर बालाकोट में हवाई हमले किए गए.
2025 में, प्रधानमंत्री पहले ही यह कह चुके हैं कि आतंकवादियों की पनाहगाहों को नष्ट करने का समय आ गया है. आखिरकार, पहलगाम में कई नई चीजें हुई हैं; सबसे बड़ा यह कि मारे गए लोगों का धर्म पहले कभी नहीं देखा गया. इसने राष्ट्र की अस्मिता और सत्तारूढ़ पार्टी के समर्थन आधार को भी चोट पहुंचाई. सभी की निगाहें मोदी पर टिकी हैं कि क्या सैन्य कार्रवाई की जाती है और कब की जाती है.
मोदी सरकार कई विकल्पों पर विचार कर रही है. भारत हाफिज सईद जैसे कुछ कुख्यात आतंकवादियों को निशाना बना सकता है, पीओके में आतंकी शिविरों पर सीमित हवाई हमले कर सकता है. वह सटीकता और खुफिया जानकारी के माध्यम से भारतीय क्षेत्र में रहते हुए ड्रोन हमले शुरू कर सकता है.
धर्म के आधार पर अपने लक्ष्य चुनने वाले आतंकवादियों की पहचान और विवरण का पता लगाने के लिए प्रयास ‘प्रगति पर’ हैं. 1986-1987 की सर्दियों में सीमा पर पांच लाख सैनिकों को जुटाकर भारत ने पाकिस्तान को युद्ध का डर दिखाने के लिए ब्रासटैक्स जैसा ऑपरेशन भी किया था. भारत ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से शांति के समय में अभूतपूर्व पैमाने पर टैंक और सैनिकों को उतारा था.
भारत के ऑपरेशन ब्रासटैक्स ने पाकिस्तान को चौंका दिया था और उसे अपने सैन्य संसाधनों सहित यह दिखाने के लिए मजबूर कर दिया कि उसके पास परमाणु क्षमता है. पाकिस्तान के पास बलूचिस्तान और पश्तून-बहुल क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सैन्य उपस्थिति है, जिसमें खैबर पख्तूनख्वा के कुछ हिस्से भी शामिल हैं, दोनों क्षेत्रों में चल रहे विद्रोह और सुरक्षा चिंताओं के कारण. वे बलूचियों का कत्लेआम कर रहे हैं और पख्तूनों से लड़ रहे हैं. पाकिस्तान को अंदरूनी तौर पर भी परेशानी का सामना करना पड़ेगा.
भारत ‘युद्ध विराम समाप्ति’ पर भी विचार कर रहा है क्योंकि फरवरी 2021 में दोनों देशों के बीच युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भी जमीन और सीमाओं पर युद्ध विराम नहीं हुआ. शांति समझौता सिर्फ कागजों पर था. इसलिए मोदी के पास तेजी से काम करने के कई विकल्प हैं क्योंकि पहलगाम की घटना को कई दिन हो चुके हैं.
ध्रुवीकरण की कोशिशों को झटका
जो लोग सोच रहे थे कि पहलगाम में हुए इस क्रूर आतंकी हमले से भाजपा को देश में अपने मूल वोट बैंक को एकजुट करने में मदद मिलेगी, उन्हें करारा झटका लगा है. जिन लोगों को लगा था कि इससे धार्मिक ध्रुवीकरण का रास्ता खुलेगा और बिहार तथा पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों में भाजपा को फायदा होगा, उन्हें करारा जवाब मिला है.
भाजपा ने अपने बड़बोले लोगों को सबक सिखाया और उनमें से कुछ के खिलाफ आपराधिक मामले भी दर्ज कराए. पहलगाम की घटना के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के बिरयानी विक्रेता की हत्या का दावा करने वाले और अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर वीडियो पोस्ट करने वाले गौ रक्षा दल चलाने वाले मनोज चौधरी को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी.
शुरुआत में आगरा पुलिस ने उसे नजरअंदाज किया. लेकिन 24 घंटे के भीतर ही दिल्ली और लखनऊ के बीच कुछ ऐसा हुआ कि उस व्यक्ति को धार्मिक भावनाएं भड़काने समेत विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. राजस्थान में भी भाजपा ने अपना रुख बदला और पार्टी के विधायक बालमुकुंदाचार्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई.
क्योंकि उन्होंने तीन दिन पहले जयपुर में पहलगाम आतंकी हमले के विरोध में एक मस्जिद के पास कथित तौर पर ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ का पोस्टर लगाया था. विवादास्पद पोस्टरों में एक नारा भी लिखा था, ‘कौन कहता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता?’ इसके साथ ही दाढ़ी वाले एक व्यक्ति की तस्वीर भी थी, जो मुसलमानों को निशाना बना रही थी.
भाजपा ने राजस्थान के पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा को भी पार्टी से निकाल दिया, जिन्होंने 7 अप्रैल को राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता और दलित टीकाराम जूली के जाने के बाद मंदिर का ‘शुद्धिकरण’ किया था. आहूजा की हरकतों से काफी हंगामा हुआ था. यह अलग बात है कि यह कार्रवाई घटना के दो सप्ताह से अधिक समय बाद और कांग्रेस द्वारा पहलगाम की घटना में आतंकवादियों को दंडित करने के लिए सरकार को पूर्ण समर्थन दिए जाने के मद्देनजर की गई.