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ब्लॉग: मेडिकल के छात्रों में तनाव का बढ़ता स्तर बेहद चिंताजनक

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 21, 2024 09:50 IST

सर्वेक्षण के अनुसार मेडिकल के लगभग 28 प्रतिशत स्नातक (यूजी) और 15.3 प्रतिशत स्नातकोत्तर (पीजी) छात्र मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं.

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ठळक मुद्देराष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के एक कार्य बल के ऑनलाइन सर्वेक्षण में जो बातें सामने आई हैं वे बेहद चिंताजनक हैं. अगर किसी छात्र की सजा के तौर पर 36 घंटे तक की ड्यूटी लगा दी जाए तो क्या वह मानसिक रूप से प्रताड़ित महसूस नहीं करेगा? हफ्ते में एक दिन 24 घंटे की शिफ्ट और पांच दिन 10-10 घंटे की शिफ्ट होनी चाहिए.

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के एक कार्य बल के ऑनलाइन सर्वेक्षण में जो बातें सामने आई हैं वे बेहद चिंताजनक हैं. सर्वेक्षण के अनुसार मेडिकल के लगभग 28 प्रतिशत स्नातक (यूजी) और 15.3 प्रतिशत स्नातकोत्तर (पीजी) छात्र मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं. 

छात्रों में तनाव एक बड़ी समस्या है और सर्वे में शामिल लोगों में से 36.4 फीसदी ने बताया कि उन्हें तनाव से निपटने के लिए ज्ञान और कौशल की कमी महसूस होती है. इतनी बड़ी संख्या में मेडिकल के छात्र अगर तनाव और मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं तो ये निश्चय ही एक बेहद गंभीर मसला है. 

चिंताजनक यह है कि एमबीबीएस के 16.2 प्रतिशत और एमडी/एमएस के 31 प्रतिशत छात्रों ने बताया कि उनके मन में स्वयं को नुकसान पहुंचाने या आत्महत्या करने के विचार आते हैं. दूसरों को जीवनदान देने वाले डॉक्टरों को अगर अपने छात्र जीवन में इस हद तक तनाव का सामना करना पड़े तो यह किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं होना चाहिए. 

हाल ही में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में मेडिकल की एक प्रशिक्षु छात्रा की बलात्कार और जघन्य हत्या की वारदात के बाद वहां के छात्रों ने जिस तरह के माहौल में काम किए जाने की जानकारी दी है, वह अत्यंत गंभीर है. अगर किसी छात्र की सजा के तौर पर 36 घंटे तक की ड्यूटी लगा दी जाए तो क्या वह मानसिक रूप से प्रताड़ित महसूस नहीं करेगा? 

इसीलिए एनएमसी के कार्य बल ने सिफारिश की है कि रेजिडेंट्स डॉक्टर्स की ड्यूटी का समय हफ्ते में 74 घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए और एक दिन का अवकाश अनिवार्य हो. हफ्ते में एक दिन 24 घंटे की शिफ्ट और पांच दिन 10-10 घंटे की शिफ्ट होनी चाहिए. कार्य बल के यह भी ध्यान में आया है कि कई मेडिकल कॉलेज में छात्रों से दोबारा फीस वसूलने की वजह के चलते उन्हें जानबूझकर फेल कर दिया जाता है. 

पहले से ही भारी फीस चुकाकर मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों को ऐसे में कैसी मन:स्थिति से गुजरना पड़ता होगा, इसके बारे में सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. इसीलिए कार्य बल ने सिफारिश की है कि ऐसा करने वाले कॉलेजों पर भारी जुर्माना लगाया जाए. 

साल में अंडरग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों को रोटेशनल बेसिस पर कम से कम दस दिन का फैमिली वेकेशन ब्रेक देने की सिफारिश कार्य बल ने की है ताकि छात्र अपने  परिवार से मिल सकें, उन्हें अपनी समस्या बता सकें. सर्वेक्षण में जो बातें सामने आई हैं वे निश्चित रूप से बेहद गंभीर हैं और कार्य बल की सिफारिशों को एनएमसी को हर हाल में लागू करवाना चाहिए, ताकि छात्रों को भयानक तनाव से राहत मिल सके.

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