20 साल में कैंसर के मरीजों की संख्या दोगुनी, पंजाब में 1 लाख लोगों पर 90 मरीज कैंसर से पीड़ित

By निरंकार सिंह | Published: February 4, 2023 03:52 PM2023-02-04T15:52:51+5:302023-02-04T15:53:49+5:30

दुनिया भर के देशों में कैंसर के खिलाफ जंग जारी है। लेकिन जिस तेजी से चिकित्सा के उपाय खोजे जा रहे हैं उससे अधिक तेजी से इसका प्रसार हो रहा है। भारत में वैकल्पिक चिकित्सा के क्षेत्र में कई दशकों से काम करने वाली एक अग्रणी संस्था डीएस रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने खाद्य पदार्थों की पोषक ऊर्जा से कैंसर की औषधि तैयार की है।

Number of cancer patients doubled in 20 years from cancer 1 lakh 90 patients suffering in Punjab | 20 साल में कैंसर के मरीजों की संख्या दोगुनी, पंजाब में 1 लाख लोगों पर 90 मरीज कैंसर से पीड़ित

20 साल में कैंसर के मरीजों की संख्या दोगुनी, पंजाब में 1 लाख लोगों पर 90 मरीज कैंसर से पीड़ित

कैंसर के मामलों के जो ताजे आंकड़े जारी किए गए हैं, वे देश की भयावह स्थिति को दर्शाते हैं। खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने भी कुछ ही दिन पहले राज्यसभा में आधिकारिक आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 2020 और 2022 के बीच देश में कैंसर के अनुमानित मामले और इसके कारण होने वाली मृत्यु दर में वृद्धि हुई है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और दवाओं ने कई असाध्य रोगों पर विजय प्राप्त कर ली है और कुछ को रोक दिया है। लेकिन खतरनाक कैंसर सभी चिकित्सा विधियों को चकमा देकर आगे बढ़ने वाला रोग साबित हुआ है। पिछले 20 सालों में दुनिया भर में कैंसर के मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, और चंडीगढ़ में कैंसर के रोगियों की संख्या बढ़ी है। पंजाब में कैंसर के मामले 2018 में 36801, 2019 में 37744 और 2020 में बढ़कर 38636 हो गए। हरियाणा में 2018 में 27665, 2019 में 28453 और 2020 में 29219 कैंसर के मामले पाए गए। हिमाचल में 2018 में 8012, 2019, 8589 और 2020 में 8777 मामले पाए गए। चंडीगढ़ में 2018 में 966, 2019 में 994 2020 में 1024 मामले पाए गए। मौजूदा समय में पंजाब में 1 लाख लोगों पर 90 मरीज कैंसर से पीड़ित हैं।

दुनिया भर के देशों में कैंसर के खिलाफ जंग जारी है। लेकिन जिस तेजी से चिकित्सा के उपाय खोजे जा रहे हैं उससे अधिक तेजी से इसका प्रसार हो रहा है। भारत में वैकल्पिक चिकित्सा के क्षेत्र में कई दशकों से काम करने वाली एक अग्रणी संस्था डीएस रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने खाद्य पदार्थों की पोषक ऊर्जा से कैंसर की औषधि तैयार की है। शुरू में इसका परीक्षण कैंसर के कई मरणासन्न रोगियों पर किया गया। इन रोगियों में कई स्वस्थ होकर आज भी जीवित हैं। कई रोगियों में आशाजनक सुधार हुआ जिसकी पुष्टि उनकी जांच रिपोर्टो से साबित हुई। हाल ही में इस औषधि का परीक्षण कोलकाता के जाधवपुर विश्वविद्यालय के नैदानिक अनुसंधान केंद्र (सीआरसी) ने भी किया। सीआरसी के निदेशक डॉ. टी.के. चटर्जी के अनुसार- ‘डीएस रिसर्च सेंटर कोलकाता की पोषक ऊर्जा से तैयार की गई औषधि के पशुओं पर किए गए परीक्षण के परिणाम उत्साहजनक पाए गए हैं। यदि पशुओं के शरीर पर सर्वपिष्टी के प्रयोग किए जाने के बाद सीआरसी ने उत्साहजनक परिणाम प्राप्त किए हैं तो ऐसे ही परिणाम इसे मानव शरीर पर प्रयोग करने से भी प्राप्त किए जा सकते हैं, जो कैंसर उपचार के इतिहास में युगांतकारी घटना होगी। 

सीआरसी विभिन्न रोगों के लिए दवाइयों का नैदानिक परीक्षण करता है। इसी सिलसिले में उन्होंने सर्वपिष्टी का भी नैदानिक परीक्षण किया था। किसी दवाई की प्रभावकारिता का स्तर सुनिश्चित करने के लिए सामान्यतः दो प्रकार का परीक्षण किया जाता है- पहला, औषधीय (फार्माकोलॉजिकल) परीक्षण और दूसरा विष विद्या संबंधी (टोक्सीकोलॉजिकल) परीक्षण। ये परीक्षण आयातित सफेद चूहों पर किए गए। पशु शरीर में कैंसर कोशिकाओं को प्रविष्ट कराया गया और जब ट्यूमर निर्मित हो गया तब हमने दवा देना शुरू किया। ‘पोषक ऊर्जा’ के परीक्षण की स्थिति में 14 दिनों बाद जो प्रतिक्रियाएं देखी गई उनमें कोशिकाओं की संख्या स्पष्ट रूप से कम होना शुरू हो गई थी। 

पशु शरीर में कोई अल्सर पैदा नहीं हुआ। ट्यूमर विकास दर 46 प्रतिशत तक कम हो गई थी और दवा की विषाक्तता लगभग शून्य थी। ऐसे सकारात्मक परिणाम हाल के समय में नहीं देखे गए थे। इस औषधि में कैंसर को रोकने और उससे लड़ने की अपरिमित संभावनाएं हैं। डॉ. चटर्जी के परीक्षण से यह साबित हो गया है कि यह औषधि कैंसर रोगियों के लिए बहुत कारगर है। आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ इसका उपयोग भी कैंसर रोगियों के उपचार में कारगर पाया गया है। पर यह अभी बाजार में उपलब्ध नहीं है। इस औषधि का विकास डी।एस। रिसर्च सेंटर के डॉ. उमाशंकर तिवारी और प्रोफेसर शिवाशंकर त्रिवेदी ने किया था। लेकिन दोनों वैज्ञानिक इस समय जीवित नहीं हैं। उन्होंने डब्ल्यूएचओ और भारत सरकार से अपनी औषधि के परिणामों की जांच पड़ताल कराकर चिकित्सा की वर्तमान धारा में सम्मिलित किए जाने की मांग की थी ताकि लाखों कैंसर रोगियों की जान बचायी जा सके। पर ऐसा लगता है कि डब्ल्यूएचओ उन बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के दबाव में है जो यह नहीं चाहती है कि बाजार में कोई ऐसी सस्ती दवा आए जो कैंसर का नामोनिशान मिटा दे क्योंकि इससे उनके व्यापारिक हितों पर चोट पहुंचेगी।
 
विशेषज्ञों का कहना है कि आपके कैंसर के डायग्नोसिस में कुछ दिनों की देरी भी घातक हो सकती है। दूसरी सकारात्मक बात यह है कि हम थायरॉइड, ओवेरियन और स्तन कैंसर जैसे कुछ प्रकार के कैंसर के लगभग 100 फीसदी इलाज के करीब पहुंच गए हैं। टेस्टिकुलर और थायरॉयड जैसे कैंसर को लेकर हम आसानी से कह सकते हैं कि ठीक होने की 100 फीसदी संभावना है, लेकिन कैंसर के अन्य रूपों जैसे पेनक्रिएटिक के मामले में बचने की संभावना कम है। यह कहना मुश्किल है कि किस रिसर्च से हम इलाज के करीब पहुंचेंगे। हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि उपचार को लेकर दवाओं, कीमो और रेडिएशन के जरिए बेतहर हो रहे हैं।

Web Title: Number of cancer patients doubled in 20 years from cancer 1 lakh 90 patients suffering in Punjab

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