ब्लॉग: नींद की सेहत को लेकर जागना जरूरी

By अभिषेक कुमार सिंह | Published: March 15, 2024 11:14 AM2024-03-15T11:14:56+5:302024-03-15T11:16:29+5:30

उनका मत है कि इस आधुनिक व तेज दौड़ती-भागती दुनिया में नींद न आना एक बड़ी समस्या बन चुकी है। समस्या दिनदहाड़े नींद आ जाना नहीं बल्कि हमारी दिनचर्या में उसका जो निश्चित हिस्सा है, उसमें कटौती होते चले जाना है। 

It is important to be aware of sleep health | ब्लॉग: नींद की सेहत को लेकर जागना जरूरी

ब्लॉग: नींद की सेहत को लेकर जागना जरूरी

दुनिया भर में बदलती जीवनशैली का एक कहर नींद पर टूट रहा है। लोगों की आंखों से नींद या तो गायब हो रही है या उसके लिए निर्धारित वक्त में कटौती हो रही है। भारत इस बदलाव से जुदा नहीं है। यहां भी नींद का संकट पैदा हो गया है। खास तौर से उस नई पीढ़ी के लिए जो तमाम दबावों वाली नौकरियों या ऐसे कामकाज में है, जहां दिन और रात का कोई फर्क नहीं है। चौबीसों घंटे कामकाज की अपेक्षा वाली नौकरियों ने युवा कर्मचारियों की आंखों से नींद छीन ली है।

इसका एक अहसास इधर हाल में तब हुआ, जब देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय रचनात्मक पुरस्कार समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं की नींद के विषय में एक टिप्पणी की। सोशल मीडिया से जुड़े एक इन्फ्लुएंसर को पुरस्कार देते हुए उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि देश के किशोरों-युवाओं में नींद की कमी के बारे में जागरूकता पैदा की जाए। प्रधानमंत्री इससे पहले जनवरी में अपने रेडियो कार्यक्रम- मन की बात में भी इसी विषय पर अपील कर चुके हैं। असल में, इस तरह भारत जैसे युवा देश के लिए समस्या बन सकने वाली नींद के अभाव की ओर उन्होंने हमारा ध्यान खींचा है।

यहां उल्लेखनीय है कि जिस सोशल मीडिया के रचनात्मक पुरस्कार कार्यक्रम से जुड़ी पहलकदमी के सिलसिले में यह आयोजन किया गया, उस सोशल मीडिया की वजह से नींद सबसे ज्यादा संकट में है। यह साफ दिखाई दे रहा है कि सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों के चौबीसों घंटे इस्तेमाल की प्रवृत्ति के बढ़ते चले जाने से सोशल मीडिया और हमारी नींद के बीच परस्पर जंग होने लगी है। इस कारण बच्चों और युवाओं की जीवनशैली में भारी बदलाव आ रहे हैं।

इसके नतीजे में सेहत और चिकित्सा से जुड़े सारे संकेतक इसी ओर इशारा कर रहे हैं कि देश और दुनिया में सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ते चले जाने से हमारी नींद की समयावधि और गुणवत्ता घटती जा रही है। रात में जो वक्त सोने के लिए निर्धारित है, उस समय डिजिटल स्क्रीनों की जगमगाती रोशनियां हमारी आंखों और दिमाग के रास्ते हमारे समस्त तंतुओं पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। असल में, इंसानों और अन्य जीवधारियों की नींद रात-दिन का फर्क बताने और सिर्फ सपने देखने के लिए नहीं बनी है बल्कि इसका हमारी सेहत से एक जरूरी रिश्ता है।

जिन आंखों में नींद नहीं होती, माना जाता है कि वे किसी समस्या का सामना कर रही होती हैं। फर्क कम या ज्यादा नींद का हो सकता है, लेकिन नींद का उड़ जाना या उसमें अनियमितता आ जाना गंभीर रोग की निशानी माना जाता है। इधर कुछ वर्षों में समाज व स्वास्थ्य विज्ञानी चेतावनी देते रहे हैं कि दुनिया भर के शहरियों की नींद उचट चुकी है। उनका मत है कि इस आधुनिक व तेज दौड़ती-भागती दुनिया में नींद न आना एक बड़ी समस्या बन चुकी है। समस्या दिनदहाड़े नींद आ जाना नहीं बल्कि हमारी दिनचर्या में उसका जो निश्चित हिस्सा है, उसमें कटौती होते चले जाना है। 

Web Title: It is important to be aware of sleep health

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