International Yoga Day 2024: जीवन की डोर सांसों से बंधी होती है इसलिए सामान्य व्यवहार में सांस लेना जीवन का पर्याय या लक्षण के रूप में प्रचलित है. सांस अंदर लेना और बाहर निकालना एक स्वत:चालित स्वैच्छिक शारीरिक क्रिया है जो शरीर में दूसरी प्रक्रियाओं को प्रभावित करती है और हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा असर डालती है. योग-विज्ञान में सांस लेना सिर्फ शारीरिक अभ्यास नहीं है. वह आध्यात्मिक विकास की राह भी है और तन-मन से स्वस्थ बने रहने का एक सरल नुस्खा भी है. योग के अंतर्गत प्राणायाम में सांस लेने के विभिन्न तरीकों पर विशेष चर्चा की गई है.
योगियों की अनेक उपलब्धियों का आधार सांसों के नियंत्रण में ही छिपा हुआ है. प्राणायाम का अर्थ होता है प्राण का विस्तार और उसकी अभिव्यक्ति. योग की परंपरा में प्राणिक ऊर्जा को नियमित करने और सकारात्मक रूप से संचारित करने के लिए प्राणायाम पर बल दिया गया है. चिकित्सा जगत की इसमें बहुत दिनों तक कोई खास रुचि न थी.
बीसवीं सदी के मध्य तक आते-आते यह स्पष्ट हुआ कि श्वास लेने और निकालने के दर (रेट) का स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है. दमा (अस्थमा) वस्तुत: श्वास की कमी से जुड़ा है. उच्च रक्तचाप की चिकत्सा में भी यह लाभप्रद पाया गया है. अब इसे वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में स्वीकृति मिल रही है. तंत्रिका तंत्र के आधुनिक अध्ययन योग की श्वास-विधियों के प्रभावों की पुष्टि कर रहे हैं.
खेल में तो युद्ध की सी चुनौती होती है. तब पल-पल का मूल्य होता है इसलिए खिलाड़ियों की भी रुचि इस ओर बढ़ रही है और इस पर विचार हो रहा है कि प्राचीन योग की श्वास-नियंत्रण की तरकीबें शरीर को साधने और श्वसन तंत्र को सुदृढ़ करने में कैसे मददगार होंगी. इस पर भी शोध हो रहा है कि शरीर किस तरह अच्छी तरह ऑक्सीजन का उपयोग करे और कार्बन डाईऑक्साइड को सहने की क्षमता को बढ़ाए.
श्वास के महत्व की लोकप्रियता के बावजूद अभी भी ज्यादातर लोग जीवन के इस आधारभूत पक्ष पर उचित ध्यान नहीं देते हैं. यदि यह स्वायत्त तंत्रिका तंत्र की बात न होती तो बहुत से लोग इसलिए अकाल ही कालकवलित हो जाते कि वे काम के वक्त सांस लेना भूल गए. सांस सभी लेते हैं इसलिए अच्छी तरह सांस लेना जरूरी होकर भी ध्यान में नहीं आता.
सांस का व्यायाम सबके लिए बेहद जरूरी है. काम ज्यादा हो, समयाभाव हो और आप श्वसन पर ध्यान देना चाहते हैं ताकि स्वास्थ्य सुधरे तो सबसे पहली बात है मुंह के बदले नाक से सांस लेने का अभ्यास करना चाहिए. इसमें ऑक्सीजन को रक्त में फैलाने के लिए अधिक मौका मिलता है इससे 10-20 प्रतिशत अधिक ऑक्सीजन मिलती है.
अपनी मानसिक प्रक्रियाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण सहायता आप मस्तिष्क और अन्य महत्वपूर्ण अंगों के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध कराकर कर सकते हैं. इसकी कुंजी सांस लेने की दर में है. धीमी और आराम की सांस लेना लाभप्रद है. तीव्र और छिछली सांस ठीक विपरीत प्रभाव वाली होती है.
जब आप नाक से सांस बाहर निकालते हैं तो अधिक कार्बन रखते हैं मुंह से निकालने की अपेक्षा, इसलिए ज्यादा-से-ज्यादा नाक से सांस लेने का अभ्यास करना चाहिए. इससे हीमोग्लोबीन से कोशिका में ऑक्सीजन का जाना बढ़ जाता है रक्त प्रवाह भी सुधर जाता है. ठीक तरह से सांस लेना स्वास्थ्य की कुंजी है. सचेत रूप से सांस लेना एक प्राचीन विषय है और आज की ताजी शब्दावली में श्वसन-अभ्यास एक अध्ययन विषय बन चुका है.