Health Report: हम भारतीय वास्तव में कितने स्वस्थ हैं?, हेल्थ ऑफ नेशन रिपोर्ट-2025 में कई खुलासे, जानें डॉक्टर की राय

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: April 18, 2025 05:14 IST2025-04-18T05:14:35+5:302025-04-18T05:14:35+5:30

Health Report: मीडिया में ऐसी कई खबरें आई हैं कि 18 से 23 साल के युवा बिना किसी लक्षण के या समय पर चिकित्सा सहायता पाने का मौका मिले बिना ही ईश्वर को प्यारे हो गए.

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सांकेतिक फोटो

Highlightsयुवती बेहोश हो गई और उसे मौके पर ही मृत घोषित कर दिया गया.महामारी से बचाव के लिए लोगों द्वारा इस्तेमाल किए गए टीकों के बारे में चर्चा को जन्म देती है.19 से 45 वर्ष की आयु के लोगों की अचानक मृत्यु के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है.

Health Report: हाल ही में कुछ परिचितों की अचानक मृत्यु ने मुझे झकझोर दिया है. वे युवा थे और उन्हें कोई गंभीर बीमारी नहीं थी. यह सिर्फ मैं ही नहीं, हम सभी ऐसी दु:खद घटनाओं के बारे में सुनते रहते हैं जो भारत में लगातार बढ़ रही हैं- जनसांख्यिकीय संदर्भों के अनुसार हम एक ‘युवा देश’ हैं  जिसमें जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त करने की ‘विशाल क्षमता’ है.

इस महीने के शुरू में एक प्रिय मित्र के बेटे की 37 वर्ष की आयु में अचानक मृत्यु हो गई, जिससे मुझे और उसके परिवार को बहुत बड़ा सदमा लगा. कारण पता चला कि दिल के दौरे ने युवा उद्यमी को इंदौर में चिकित्सा सहायता प्राप्त करने का भी मौका नहीं दिया और स्थानीय अस्पताल में उसे जाते ही मृत घोषित कर दिया गया.

मीडिया में ऐसी कई खबरें आई हैं कि 18 से 23 साल के युवा बिना किसी लक्षण के या समय पर चिकित्सा सहायता पाने का मौका मिले बिना ही ईश्वर को प्यारे हो गए. कुछ महीने पहले अपनी सहेली की शादी में नाच रही एक युवती बेहोश हो गई और उसे मौके पर ही मृत घोषित कर दिया गया.

मायोकार्डियल इंफार्क्शन या दिल के दौरे इतनी खामोशी से आते हैं कि वे प्रभावित व्यक्ति को जीवन बचाने के लिए डॉक्टर के पास जाने की कोई चेतावनी तक नहीं देते. ऐसी हर चौंकाने वाली आकस्मिक मौत समाज में कोविड-19 के बाद के प्रभावों और महामारी से बचाव के लिए लोगों द्वारा इस्तेमाल किए गए टीकों के बारे में चर्चा को जन्म देती है.

जहां चिकित्सा विशेषज्ञ और अन्य लोग इस बात को लेकर बहुत चिंतित हैं कि युवा लोगों की इस तरह से मृत्यु हो रही है, वहीं भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक अध्ययन ने स्पष्ट किया है कि कोविड-19 टीकाकरण और 19 से 45 वर्ष की आयु के लोगों की अचानक मृत्यु के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है.

वर्ष 2023 में किए गए एक लंबे शोध और उस वर्ष नवंबर में प्रकाशित निष्कर्षों में आईसीएमआर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि ‘केस-कंट्रोल’ अध्ययन ने कोविड के बाद के प्रभावों के बारे में आम तौर पर प्रचलित धारणा को गलत साबित कर दिया है. यह अध्ययन केरल के डॉ. राजीव जयदेवन ने किया था.

फिर भी, युवा पीढ़ी की अचानक मौतें जारी हैं, जिससे समाज के विभिन्न तबकों के वृद्ध और असहाय माता-पिता के बीच गंभीर चिंताएं पैदा हो रही हैं. यह घटनाएं शहरों में शायद अधिक सुनाई दे रही हैं. एकल परिवारों में, कई बार कमाने वाले सपूतों की ऐसी मौतें होती हैं, जिससे परिवार के लिए भारी आर्थिक चुनौतियां पैदा हो जाती हैं.

एक समय था जब सिकुड़ते वाल्व से लेकर कोरोनरी धमनी से संबंधित शिराओं में रुकावट (चिकित्सा की भाषा में सी.ए.डी.) या खराब कोलेस्ट्रॉल से लेकर हृदय के कमजोर होने तक के विभिन्न प्रकार के हृदय रोगों को वरिष्ठ नागरिकों या पर्याप्त रूप से शारीरिक व्यायाम न करने वालों की बीमारियां माना जाता था.

लेकिन तेजी से बदलती जीवनशैली और बाहर का खाना खाने की आदतों के कारण, जो जरूरी नहीं कि स्वास्थ्य के लिए अच्छा ही हो और हर किसी के जीवन में दबाव-सामाजिक तनाव, करियर की योजना बनाना, रोजगार के मुद्दे, कार्यस्थल पर तनाव, वित्तीय चिंताएं और विवाह से संबंधित मुद्दे आदि के चलते चिकित्सा विशेषज्ञों ने हृदय जोखिम के कारकों के लिए आयु सीमा कम कर दी है.

तो क्या हम तेजी से आर्थिक विकास करने की भारी कीमत चुका रहे हैं? शायद सरकार को भारतीयों के स्वास्थ्य जोखिमों के व्यापक प्रभावों के बारे में पता था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2019 में  राष्ट्रीय खेल दिवस पर राष्ट्रव्यापी अभियान -फिट इंडिया मूवमेंट- शुरू किया था. ‘फिट इंडिया’ की शुरुआत कुछ साल पहले ओडिशा में एक अल्पज्ञात सामाजिक-राजनीतिक नेता सुपर्णो सत्पथी ने की थी.

लेकिन यह राष्ट्रव्यापी अपील को जन्म नहीं दे सका. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस अभियान की शुरुआत ने परिदृश्य को थोड़ा बदल दिया है, लेकिन स्पष्ट रूप से अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है. देश का स्वस्थ होना आर्थिक विकास के भी रास्ते आसान बनाता है. दैनिक जीवन में खेलकूद और व्यायाम (साइकिल चलाना, तेज चलना, प्राणायाम, तैराकी आदि) की और तनावमुक्त व खुश रहने की भूमिका सभी उम्र के लोगों के लिए स्वस्थ जीवन जीने के लिए निर्विवाद मार्ग है. मैं समझता हूं कि पहले से कहीं ज्यादा लोग योग या अन्य व्यायाम अपना रहे हैं जो एक अच्छा संकेत है.

इस प्राचीन भारतीय व्यायाम पद्धति को दुनिया भर में स्वीकार कर लिया गया है और संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को विश्व योग दिवस को मान्यता दी है. हालांकि, जो बात वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है और विशेषज्ञों की सामूहिक समझ से परे है, वह यह है कि जब जीवन प्रत्याशा आम तौर पर बढ़ रही है, तब युवाओं की जान क्यों जा रही है?

अपोलो हॉस्पिटल्स द्वारा जारी हेल्थ ऑफ नेशन रिपोर्ट-2025 में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मानसिक स्वास्थ्य और कैंसर जैसी कई बीमारियों को सूचीबद्ध किया गया है, जो खतरनाक स्तर पर पहुंच गई हैं. रिपोर्ट में उपचारात्मक दृष्टिकोण से हटकर बचाव के उपायों पर ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है.

मुंबई के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. राजीव भागवत का कहना है कि तनाव का स्तर, अनियमित जीवनशैली (देर रात सोना आदि) व बढ़ती जनसंख्या (पढ़िए प्रतिस्पर्धा) युवाओं में बढ़ती मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में हैं, क्योंकि वे विभिन्न दबावों का सामना करने में (शायद) असमर्थ होते हैं.  

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