संतोष देसाई का ब्लॉगः ज्ञान की बदलती संकल्पना

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 30, 2019 07:45 AM2019-03-30T07:45:55+5:302019-03-30T07:45:55+5:30

विज्ञान के बारे में हमारी कल्पना ऐसी है कि जैसे किसी बच्चे के हाथ में कोई खिलौना आ जाए तो वह उसके काम करने की पद्धति के बारे में जानने की कोशिश करता है कि उसमें आवाज कहां से आती है, वह कोई करतब कैसे दिखाता है. यह जिज्ञासा ही मानव के ज्ञान हासिल करने का आधार होती है.

science education: Changing concepts of knowledge | संतोष देसाई का ब्लॉगः ज्ञान की बदलती संकल्पना

संतोष देसाई का ब्लॉगः ज्ञान की बदलती संकल्पना

संतोष देसाई

‘हम कुछ ऐसा लिख रहे हैं जिसे पढ़ पाना हमारे लिए संभव नहीं होगा.’ यह बात लेखक और शोधकर्ता केविन स्लाविन ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में प्रगति की जानकारी देते हुए कही थी. आज हम जिनकी कल्पना भी नहीं कर सकते, वैसे काम कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा किए जा रहे हैं. 

आज भी ऐसा बहुत बड़ा क्षेत्र है जो मनुष्य की ज्ञान की सीमा से परे है. हालांकि मशीनें अभी भी मनुष्य की विचार शक्ति का मुकाबला नहीं कर पाई हैं, फिर भी पिछले कुछ वर्षो में मशीनों ने मनुष्य की विचार शक्ति से भी अधिक क्षमता से काम करने की शक्ति हासिल कर ली है. लेकिन मशीनें जब खोज के विज्ञानसम्मत तत्वों का उपयोग न करते हुए अलग ही तरीके से काम करने लग जाएं तो ज्ञान की मूलभूत संकल्पना ही ध्वस्त हो जाती है!

विज्ञान के बारे में हमारी कल्पना ऐसी है कि जैसे किसी बच्चे के हाथ में कोई खिलौना आ जाए तो वह उसके काम करने की पद्धति के बारे में जानने की कोशिश करता है कि उसमें आवाज कहां से आती है, वह कोई करतब कैसे दिखाता है. यह जिज्ञासा ही मानव के ज्ञान हासिल करने का आधार होती है. लेकिन आज का युग डिजिटल तकनीकी ज्ञान का युग है और उसके कलपुज्रे अलग-अलग करके हम उसकी कार्यपद्धति के बारे में नहीं जान सकते. हम तकनीक से होने वाले फायदों का उसकी कार्यपद्धति जाने बिना ही उपभोग कर रहे हैं.

अब हम सुपर बुद्धिमत्ता की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. यह बुद्धिमत्ता क्या कुछ कर सकती है, इसकी पूरी कल्पना किसी को भी नहीं है. लेकिन वह जो भी करती है वह इतनी तेजी से और उत्तम ढंग से करती है कि उसकी कार्यपद्धति के बारे में जानने की जरूरत ही नहीं समझी जाती. 

मनुष्य द्वारा हासिल ज्ञान का उपयोग किए बिना मशीनें खुद ही आगे बढ़ रही हैं और हम उन पर निर्भर होते जा रहे हैं.  बेशक यह उम्मीद बरकरार है कि मशीनें मानव जितनी बुद्धिमान नहीं हो सकती हैं. लेकिन वे इसे दरकिनार करके आगे बढ़ सकती हैं. ऐसी स्थिति में हमारे पास मशीनों से निकलने वाले निष्कर्ष पर भरोसा करने और उनके अच्छे इरादों पर विश्वास करने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा. 

Web Title: science education: Changing concepts of knowledge

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