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राजेश कुमार यादव का ब्लॉग: शिक्षा के बल पर ही भारत तरक्की की राह में बढ़ सकता है आगे

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: September 8, 2019 12:48 IST

केरल और लक्षद्वीप में सबसे ज्यादा 93 प्रतिशत और 92 प्रतिशत साक्षरता है. घनी आबादी वाले राज्यों उत्तर प्रदेश में महिला साक्षरता दर क्रमश: 59.3 और बिहार में 53.3 फीसदी है. साक्षरता दर के मामले में 51 विकासशील देशों में भारत का 38वां स्थान है.

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मा नव विकास और समाज के लिए उनके अधिकारों को जानने तथा साक्षरता की ओर मानव चेतना को बढ़ावा देने के लिए 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है. महात्मा गांधी ने कहा था कि शिक्षा एक ऐसा साधन है जो राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में एक जीवंत भूमिका निभा सकता है.

साक्षर व्यक्ति संविधान में प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करता है और राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक लाभों को प्राप्त करने में सक्षम होता है. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में अब 82.1 फीसदी पुरुष और 64.4 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं. संतोष की बात है कि पिछले दस वर्षो में ज्यादा महिलाएं  साक्षर हुई हैं.

केरल और लक्षद्वीप में सबसे ज्यादा 93 प्रतिशत और 92 प्रतिशत साक्षरता है. घनी आबादी वाले राज्यों उत्तर प्रदेश में महिला साक्षरता दर क्रमश: 59.3 और बिहार में 53.3 फीसदी है. साक्षरता दर के मामले में 51 विकासशील देशों में भारत का 38वां स्थान है.

1947 में आजादी के समय पूरे भारत में कुल 27 मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय हुआ करते थे, जो अब बढ़ कर 560 के पार पहुंच चुके हैं, लेकिन अच्छे संस्थानों की अभी भी कमी है. संख्या की दृष्टि से देखने पर भारत की उच्चतर शिक्षा व्यवस्था अमेरिका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर आती है, लेकिन जहां तक गुणवत्ता की बात है, दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है.

हालत यह है कि स्कूल की पढ़ाई करने वाले नौ छात्नों में से एक ही कॉलेज तक पहुंच पाता है और यही कारण है कि भारत में उच्च शिक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले छात्नों का अनुपात दुनिया में सबसे कम (11 फीसदी) है जबकि अमेरिका में ये अनुपात 83 फीसदी है.

2014 में संसद की मानव संसाधन विकास संबंधी स्थायी समिति का मानना था कि शिक्षा के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार बना दिए जाने और सर्व शिक्षा अभियान चलाए जाने के बाद से देश में साक्षरता की दर में इजाफा हुआ है, लेकिन भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सबसे बड़ी बाधा योग्य शिक्षकों की कमी और अवसंरचनात्मक विकास का न होना है.  अभी भी देश में 12 लाख स्कूली शिक्षकों की कमी है तथा जो शिक्षक हैं भी उनमें से लगभग साढ़े आठ लाख योग्य और प्रशिक्षित नहीं हैं.

शिक्षकों की कमी का आलम ये है कि आईआईटी और केंद्रीय विश्वविद्यालयों जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी 15 से 25 फीसदी शिक्षकों की कमी है. आज विश्व आगे बढ़ता जा रहा है और अगर भारत को भी वैश्विक प्रगति की राह पर कदम से कदम मिलाकर चलना है तो साक्षरता दर में वृद्धि करनी ही होगी. 

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