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आम बजटः शिक्षा क्षेत्र के लिए और अधिक प्रावधानों की थी जरूरत, गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: February 6, 2021 15:32 IST

शिक्षा क्षेत्र के लिए कुल मिला कर पिछले बजट में 99312 हजार करोड़ रु. का प्रावधान था जो इस बार 93224  हजार करोड़ रु. हो गया है. यानी छह हजार करोड़ कम.

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ठळक मुद्देपिछले बजट से 6.13  प्रतिशत कम. हालांकि यह पिछले साल के संशोधित बजट से अधिक है.कुल मिला कर शिक्षा के लिए बजट प्रावधान पुराने ढर्रे पर ही है.नई शिक्षा नीति के लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है.

बड़े दिनों की प्रतीक्षा के बाद भारत का शिक्षा जगत पिछले एक साल से नई शिक्षा नीति-2020 को लेकर उत्सुक था.

यह बात भी छिपी न थी कि स्कूलों और अध्यापकों की कमी, अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम की दुर्दशा, पाठ्यक्रम और पाठ्यसामग्री की अनुपलब्धता और अनुपयुक्तता, शिक्षा के माध्यम की समस्या, मूल्यांकन की उपयुक्तता और पारदर्शिता से जूझ रही शिक्षा व्यवस्था समर्थ भारत के स्वप्न को साकार करने में विफल हो रही थी.

शैक्षिक उपलब्धि चिंताजनक रूप से निराश करने वाली हो रही थी

प्राथमिक विद्यालय के छात्नों की शैक्षिक उपलब्धि चिंताजनक रूप से निराश करने वाली हो रही थी. कुल मिला कर शिक्षा की गुणवत्ता दांव पर लग रही थी. एक ओर बेरोजगारी  थी तो दूसरी ओर योग्य  और उपयुक्त योग्यता वाले अभ्यर्थी भी नहीं मिल रहे थे. कोरोना महामारी ने जो भी पढ़ाई  हो रही थी उसको चौपट कर दिया.

लगभग पूरा एक शिक्षा-सत्न अव्यवस्थित हो गया. ऑनलाइन पढ़ाई और परीक्षा ने शिक्षा की साख को क्षति पहुंचाई है. इंटरनेट की व्यवस्था अभी भी हर जगह नहीं पहुंची है और जहां पहुंची है वहां भी वह बहुत प्रभावी नहीं है. इस माहौल में नई शिक्षा आशा की किरण सरीखी थी. इसलिए उसके संरचनात्मक और व्यावहारिक पक्षों को लेकर सभी गहन चर्चा में लगे हुए थे.

शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन की देहरी पर पहुंच रहा है

सरकार की ओर से जो संदेश और संकेत मिल रहा था उससे भी लोगों के मन में बड़ी आशाएं बंध रही थीं. मानव संसाधन विकास मंत्नालय को शिक्षा मंत्नालय में तब्दील करने के साथ लोगों को लग रहा था कि देश शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन की देहरी पर पहुंच रहा है और शुभप्रभात होने वाला है.

बहुत दिनों बाद शिक्षा को लेकर शिक्षा संस्थानों ही नहीं बल्कि आम जन में भी जागृति दिख रही थी. लगा कि ज्ञान केंद्रित और भारतभावित शिक्षा की एक ऐसी लचीली व्यवस्था के आने का बिगुल बज चुका है जो सबको विकसित होने का अवसर देगी. आखिर आत्मनिर्भर होने के लिए ज्ञान, कौशल और निपुणता के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं हो सकता.

विद्यार्थियों को मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा मिलने को भी स्वीकार किया गया

विद्यार्थियों को मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा मिलने को भी स्वीकार किया गया जिसे इस बहु भाषा-भाषी देश ने हृदय से स्वीकार किया. इन सब बदलावों का ज्यादातर लोगों ने स्वागत किया. संस्कृत समेत प्राचीन भाषाओं के संवर्धन लिए भी व्यवस्था की गई. भारतीय भाषाओं के लिए विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय अनुवाद संस्थान स्थापित करने के लिए पहल करने की बात सामने आई थी.

नेशनल रिसर्च फाउंडेशन और उच्च शिक्षा आयोग की स्थापना के साथ शैक्षिक प्रशासन का ढांचा भी पुनर्गठित करने का प्रस्ताव रखा गया. यह सब पलक झपकते संभव नहीं था और उसे संभव करने के लिए धन, लगन और समय की जरूरत थी. इस हेतु सबकी नजरें बजट प्रावधानों पर टिकी थीं. एक फरवरी को जो केंद्रीय बजट पेश किया गया उसे प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण ने नई शिक्षा नीति को लागू करने, उच्च शिक्षा आयोग के गठन, किसानों की आय को दूना करने, सुशासन, आधार संरचना को सुदृढ़ करने और सबके लिए व समावेशी शिक्षा की बात की.

युवा वर्ग को कुशल बनाने की जरूरत भी बताई

युवा वर्ग को कुशल बनाने की जरूरत भी बताई. टिकाऊ विकास ही उनका मुख्य तर्क था. अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक महत्व दिया गया और महामारी के बीच यह स्वाभाविक भी था. कृषि और अंतरिक्ष विज्ञान आदि भी महत्व के हकदार थे. लेकिन शिक्षा के क्षेत्न में बजट उम्मीद के अनुरूप नहीं रहा.

शिक्षा क्षेत्र के लिए कुल मिला कर पिछले बजट में 99312 हजार करोड़ रु. का प्रावधान था जो इस बार 93224  हजार करोड़ रु. हो गया है. यानी छह हजार करोड़ कम. अर्थात पिछले बजट से 6.13  प्रतिशत कम. हालांकि यह पिछले साल के संशोधित बजट से अधिक है. कुल मिला कर शिक्षा के लिए बजट प्रावधान पुराने ढर्रे पर ही है.

छह प्रतिशत जीडीपी की बात बिसर गई

नई शिक्षा नीति के लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है.  कठिन परिस्थितियों और चुनौतियों को देखते हुए शिक्षा के लिए पूर्वापेक्षा अधिक प्रावधान की आशा थी. विशाल आकार के बजट में शिक्षा को बमुश्किल ही कुछ जगह मिली और छह प्रतिशत जीडीपी की बात बिसर गई.

देश की चुनौतियों की वरीयता सूची में शिक्षा थोड़ा और नीचे खिसक गई. भारत की युवतर होती जनसंख्या और शिक्षा की जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं है. आशा है नई शिक्षा नीति को गंभीरता से लेते हुए शिक्षा के लिए बजट प्रावधान में सुधार किया जाएगा.

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