जब रक्षक ही भक्षक बन जाएतो क्या करें?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: February 18, 2025 06:44 IST2025-02-18T06:44:40+5:302025-02-18T06:44:47+5:30

निश्चय ही इसका खामियाजा उन ग्राहकों को भुगतना पड़ता है जिन्होंने बैंक के संचालनकर्ताओं पर भरोसा किया होता है.

What to do when New India Co-operative Bank becomes eater | जब रक्षक ही भक्षक बन जाएतो क्या करें?

जब रक्षक ही भक्षक बन जाएतो क्या करें?

न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक में जिन ग्राहकों ने अपनी पूंजी जमा की होगी, उन्होंने तो यही सोचा होगा कि बैंक अच्छा ब्याज देगा लेकिन उन्हें क्या पता था कि जिन लोगों पर वे भरोसा कर रहे हैं, वही उनकी जमा पूंजी पर डाका डाल देंगे. चूंकि सहकारी बैंक राष्ट्रीयकृत बैंकों की तुलना में थोड़ा सा ज्यादा ब्याज देते हैं और नियमों में ज्यादा सख्ती नहीं बरतते हैं इसीलिए लोग इन बैंकों के पास अपनी जमा पूंजी रखते हैं. जरा सोचिए कि न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक के खातेदार इस समय किस तरह की मानसिक पीड़ा से गुजर रहे होंगे.

न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक में गबन का मामला उजागर होने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने अगले 6 महीने के लिए बैंक पर प्रतिबंध लगा दिया है. गबन को लेकर पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर ली है लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि सहकारी बैंकों में आखिर घोटाला होता क्यों है? यह पहली बार नहीं है जब किसी सहकारी बैंक में गबन का मामला सामने आया हो. बिहार से लेकर महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ तक और यहां तक कि दूसरे राज्यों में भी गबन के कई मामले सामने आ चुके हैं.

यदि ताजा मामले की ही बात करें तो 122 करोड़ रु. का गबन एक दिन में तो हुआ नहीं होगा! षड्यंत्र काफी समय पहले रचा गया होगा, ऐसी स्थिति में सक्षम अधिकारियों को पता क्यों नहीं चला? इस मामले में बैंक के महाप्रबंधक हितेश मेहता और कुछ अन्य लोगों को दोषी माना जा रहा है. सवाल यह है कि सहकारी बैंकों के कामकाज पर निगरानी के लिए एक पूरा सिस्टम बना हुआ है तो इस मामले मे उस सिस्टम ने गड़बड़ी क्यों नहीं पकड़ी? आखिर गबन हो जाने के बाद ही मामले पकड़ में क्यों आते हैं? दरअसल ज्यादातर सहकारी बैंकों पर राजनीतिक नेताओं का दबदबा होता है, उन्हीं की छत्रछाया होती है, उन्हीं के लोग बैंकों में मुख्य पदों पर होते हैं इसलिए किसी सामान्य अधिकारी की हिम्मत ही नहीं होती कि वह किसी षड्यंत्र के खिलाफ कुछ बोल सके.

इस समय देश में करीब-करीब पंद्रह सौ शहरी सहकारी बैंक कार्यरत हैं. करीब 60 सहकारी बैंक ऐसे हैं जिनका दायरा कई राज्यों में फैला हुआ है. सहकारी बैंकों के साढ़े आठ करोड़ से ज्यादा ग्राहक हैं. देश में सहकारी बैंकों की स्थापना के पीछे उद्देश्य यही था कि आम आदमी को वित्तीय व्यवस्था में शामिल किया जाए और उसके पास का पैसा सिस्टम में आए ताकि उसे भी फायदा हो और जो जरूरतमंद हैं, उन्हें ऋण सहूलियत के साथ मिल सके.

वैसे देश में पहले सहकारी बैंक के रूप में हम सब अन्योन्या सहकारी बैंक को जानते हैं जिसकी स्थापना गुजरात में 1889 में हुई थी और उसका परिसमापन 2013 में हो गया. बीसवीं सदी के प्रारंभ में भी कई सहकारी बैंकों की स्थापना हुई थी जिन्होंने अच्छा काम भी किया लेकिन भारत में सहकारी बैंकों की धूम लिबरलाइजेशन के बाद ज्यादा हुई. राजनेताओं की छत्रछाया में बहुत से सहकारी बैंक खुले.

निश्चित रूप से इन बैंकों ने भी देश के वित्तीय क्षेत्र में अच्छी भूमिका निभाई लेकिन यह कहने में भी कोई हर्ज नहीं है कि इनमें से कई बैंक अपने संचालनकर्ताओं की नीयत के शिकार भी हुए. निश्चय ही इसका खामियाजा उन ग्राहकों को भुगतना पड़ता है जिन्होंने बैंक के संचालनकर्ताओं पर भरोसा किया होता है.

इस तरह के गबन वास्तव में रक्षक के भक्षक हो जाने के उदाहरण हैं. इन भक्षकों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई होनी चाहिए कि फिर कोई गबन की हिम्मत न कर पाए!

Web Title: What to do when New India Co-operative Bank becomes eater

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