Trump Tariff on India: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भारत पर भारी टैरिफ और जुर्माना लागू किए जाने के फौरन बाद अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट के एक अहम बयान से अमेरिका की टैरिफ फरमान को लेकर असमंजस और भ्रम की स्थिति उजागर होती है. बेसेंट ने कहा कि भारत और अमेरिका के रिश्ते जटिल हैं लेकिन साथ ही कहा कि आखिरकार दोनों देशों में ट्रेड डील को लेकर सहमति बन जाएगी. यह बयान ऐसे वक्त आया है जबकि दोनों पक्षों के बीच टैरिफ को लेकर वार्ताओं का दौर चल रहा है.
और इसी के चलते प्रेक्षकों का मानना है कि भारत पर 50 फीसदी अमेरिकी टैरिफ लागू होने के बावजूद दोनों देशों के बीच समझौते की उम्मीद अभी बाकी है. उद्योग जगत की चिंताओं के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के टैरिफ फरमान से निपटने के लिए स्वदेशी और वोकल फॉर ग्लोबल पर जोर दिया है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था की निर्यात पर निर्भरता कम की जा सके.
इसी बीच एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम, जिस पर भारत सहित अमेरिका और अन्य देशों की नजरें टिकी हैं, यह है कि प्रधानमंत्री मोदी जापान और चीन की यात्रा पर जा रहे हैं. पीएम मोदी शंघाई सहयोग परिषद एससीओ की बैठक में चीन जाएंगे, जहां वे दोनों शिखर नेताओं से टैरिफ पर ट्रम्प के आदेश और इसके दुष्प्रभाव तथा इससे निपटने पर चर्चा करेंगे.
साथ ही एससीओ के एक अहम हिस्सेदार रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से यूक्रेन युद्ध और भारत के साथ द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर चर्चा करेंगे. पुतिन से मुलाकात का अहम बिंदु यह भी है कि इसमें रूस से तेल खरीद पर भी मोदी और पुतिन के बीच अहम चर्चा के संकेत हैं. अमेरिका ने पहले भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया था.
लेकिन छह अगस्त को रूस से तेल खरीदने के कारण 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया था. हैरानी की बात है कि ट्रम्प प्रशासन ने भारत की तुलना में चीन पर अपेक्षाकृत कम टैरिफ लगाया है, जबकि चीन भारत की अपेक्षा रूस से ज्यादा तेल खरीदता है. आखिर ट्रम्प की भारत को लेकर मंशा क्या है?
जैसा कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के एक विशेषज्ञ का मत है कि टैरिफ का रूस की तेल खरीद से ज्यादा लेना-देना नहीं है. ऐसा लगता है कि यह फरमान किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा नहीं बल्कि छोटे वाणिज्यिक उद्देश्यों से लागू किया गया है. विडंबना है कि अर्से तक अमेरिका चीन को किनारे लगाने के लिए भारत के साथ गलबहियां करता रहा है,
वहीं अमेरिका अब चीन के मुकाबले भारत के खिलाफ इस तरह के फरमान जारी कर रहा है. बहरहाल, जरूरत है कि दबाव के सामने झुकने की बजाय तेजी से बढ़ती हुई अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए छोटे, मझोले उद्योगों को मजबूत करें और घरेलू आर्थिक सुधार लागू करने पर जोर दें.
साथ ही नए बाजार खोजने की संभावनाएं तलाशें. साथ ही देखना होगा कि रूस, जापान और चीन जैसे देश भारत के खिलाफ इस तरह की रोक पर क्या रुख अपनाते हैं. अभी फिलहाल इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है लेकिन बिना किसी दबाव में आए इस चुनौती से दृढ़ता से निपटने का संकेत तो भारत ने साफ तौर पर दे ही दिया है.