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Reserve Bank of India: जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों पर नकेल कसने की तैयारी, आरबीआई ने नियमों में व्यापक बदलाव का प्रस्ताव किया, यहां देखें विलफुल डिफॉल्टर की संख्या

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: September 23, 2023 08:58 IST

Reserve Bank of India: आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2022 के अंत में विलफुल डिफॉल्टरों की संख्या 2,790 रही, जो उसके पहले के वित्त वर्ष में 2,840 थी.

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ठळक मुद्दे2014-15 में विलफुल डिफॉल्टर की संख्या 5,349 थी.मार्च 2019 में बढ़कर 8,582 हो गई. 2017-18 में 7,535 और 7,079 को विलफुल डिफॉल्टर घोषित किया गया.

Reserve Bank of India: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों को लेकर नियमों में व्यापक बदलाव का जो प्रस्ताव किया है उससे उम्मीद बंध रही है कि विलफुल डिफॉल्टर अर्थात जानबूझकर बैंकों का कर्ज डुबोने वालों पर नकेल कसी जा सकेगी.

दरअसल, कई ऐसे बड़े कर्जदार होते हैं जो क्षमता होते हुए भी कर्ज का भुगतान करने से इनकार कर देते हैं. रिजर्व बैंक के नियमों के मुताबिक अगर कोई यूनिट कर्ज चुकाने की क्षमता के बाद भी कर्ज पर डिफॉल्ट हो जाए, या यूनिट डिफॉल्ट हो जाए लेकिन उठाए गए कर्ज की रकम को बताए गए उद्देश्य के लिए इस्तेमाल न करे और उसे किसी अन्य उद्देश्य में लगा दे या फिर यूनिट डिफॉल्ट हो जाए.

लेकिन कर्ज से उठाई गई रकम को कहीं और शिफ्ट कर दे अथवा यूनिट डिफॉल्ट हो लेकिन लोन के लिए गिरवी रखी गई संपदा को किसी और जगह खर्च करे, निपटान कर दे या फिर उसे हटा दे तो ऐसे मामलों में यूनिट और उससे जुड़े जिम्मेदार लोग विलफुल डिफॉल्टर कहलाते हैं.

सिस्टम का इस तरह से दुरुपयोग करने वालों के लिए अब रिजर्व बैंक ऐसी व्यवस्था कर रहा है कि कर्ज लेने वालों को जानबूझकर बकाया राशि नहीं लौटाने वाले की श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है और उनकी पहचान की प्रक्रिया को बेहतर बनाया जा सकता है. प्रस्ताव के तहत जानबूझकर चूक करने वाले ऋण सुविधा के पुनर्गठन के पात्र नहीं होंगे.

साथ ही वे किसी अन्य कंपनी के निदेशक मंडल में शामिल भी नहीं हो सकते हैं. दिशा-निर्देशों के मसौदे में यह भी कहा गया है, ‘जहां भी आवश्यक हो, कर्जदाता बकाया राशि की तेजी से वसूली के लिए उधार लेने वाले/गारंटी देने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करेगा.’ आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2022 के अंत में विलफुल डिफॉल्टरों की संख्या 2,790 रही, जो उसके पहले के वित्त वर्ष में 2,840 थी.

2014-15 में विलफुल डिफॉल्टर की संख्या 5,349 थी, जो मार्च 2019 में बढ़कर 8,582 हो गई. इसके साथ ही 2017-18 में 7,535 और 7,079 को विलफुल डिफॉल्टर घोषित किया गया. यह आंकड़ा केवल सरकारी बैंकों का है, इसमें निजी बैंकों का आंकड़ा शामिल नहीं है.

सरकार द्वारा संसद में दी गई जानकारी के अनुसार 2017-18 से लेकर 2021-22 तक 5 वित्त वर्षों में विभिन्न बैंकों ने 9.91 लाख करोड़ का लोन बट्टे खाते में डाला है. विजय माल्या, मेहुल चोकसी, नीरव मोदी जैसे भगोड़े कारोबारियों के नाम खूब उछले हैं लेकिन इसके अलावा भी बैंकों को चूना लगाने वालों के नामों की सूची बहुत लंबी है.

अब जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वालों की जो परिभाषा तय की गई है, उस श्रेणी में उन लोगों को रखा गया है, जिनके ऊपर 25 लाख रुपए या उससे अधिक का कर्ज है तथा भुगतान क्षमता होने के बावजूद उन्होंने उसे लौटाने से इनकार कर दिया. उम्मीद की जानी चाहिए कि रिजर्व बैंक के नए कदमों से जानबूझकर दिवालिया बनकर बैंकों और प्रकारांतर से आम जनता का पैसा हड़पने वालों से कठोरता से निपटा जा सकेगा. 

टॅग्स :भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई)Reserve Bank of Indiaभारत सरकारNirmal Sitharaman
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