कल्याणकारी योजनाओं का पुनर्गठन कीजिए
By भरत झुनझुनवाला | Published: June 29, 2019 10:31 AM2019-06-29T10:31:33+5:302019-06-29T10:31:33+5:30
देश में तीस करोड़ परिवार हैं. हर परिवार को यदि 5 हजार रु पया प्रति माह दिया जाए तो वर्ष में 60 हजार रुपए देने होंगे. इस सर्वव्यापी पेंशन व्यवस्था को लागू करने में 18 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी. यह रकम विशाल है. वर्ष 2016-17 में केंद्र सरकार का कुल खर्च 19.6 लाख करोड़ रुपए था.
बजट की एक चुनौती है कि मंद अर्थव्यवस्था में आम आदमी को राहत कैसे पहुंचाए. एनडीए-1 सरकार द्वारा छोटे किसानों के लिए पेंशन योजना लागू की गई है. तमाम राज्यों ने वृद्धों इत्यादि को पेंशन देने की व्यवस्था कर रखी है. इन पेंशन व्यवस्थाओं को टार्गेटेड व्यवस्था कहा जा सकता है. इनके अंतर्गत समाज के किसी विशेष वर्ग को ही पेंशन दी जाती है. इस व्यवस्था में समस्या है कि रिसाव अधिक होता है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के प्रोफेसर प्रणव वर्धन द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि आधे गरीबों के पास बीपीएल (बिलो पावर्टी लाइन) कार्ड नहीं है और जो बीपीएल के नाम पर सुविधा दी जाती है उसका तिहाई हिस्सा एपीएल (अबव पावर्टी लाइन) को जाता है. इस प्रकार यदि सरकार 75 रुपए की मदद देती है तो उसमें 25 रुपए एपीएल को चला जाता है. केवल 50 रु पया बीपीएल को जाता है और आधे बीपीएल वंचित रह जाते हैं. यह व्यवस्था उपयुक्त नहीं है क्योंकि इसमें रिसाव भी है और सभी उपयुक्त लोगों को मदद नहीं मिलती.
सुझाव है कि देश के हर परिवार को एक निश्चित रकम सीधे उसके बैंक खाते में हर माह दे दी जाए. इसे यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम कहा जाता है. देश में तीस करोड़ परिवार हैं. हर परिवार को यदि 5 हजार रु पया प्रति माह दिया जाए तो वर्ष में 60 हजार रुपए देने होंगे. इस सर्वव्यापी पेंशन व्यवस्था को लागू करने में 18 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी. यह रकम विशाल है. वर्ष 2016-17 में केंद्र सरकार का कुल खर्च 19.6 लाख करोड़ रुपए था. वर्तमान में यह लगभग 23 लाख करोड़ रुपए होगा. ऐसे में 18 लाख करोड़ की रकम जुटाना कठिन लगता है. लेकिन यह उतना कठिन नहीं है जितना कि दिखता है. इसे निम्नलिखित 4 स्रोतों से अर्जित किया जा सकता है.
पहला स्रोत पेट्रोल पर टैक्स लगाने का है. वर्तमान में पेट्रोल से लगभग 3 लाख करोड़ रुपए का टैक्स केंद्र सरकार को हर वर्ष मिलता है जबकि पेट्रोल पर टैक्स की दर लगभग 15 रुपए प्रति लीटर की है. सुझाव है कि इसे तीन गुना बढ़ा दिया जाए. पेट्रोलियम पदार्थो पर टैक्स बढ़ाकर 45 रुपए प्रति लीटर कर दिया जाए. ऐसा करने से पेट्रोल जो वर्तमान में 70 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है उसका दाम 100 रुपए प्रति लीटर हो जाएगा. साथ-साथ सरकार को 6 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय हो जाएगी. पेट्रोल के महंगा होने से पेट्रोल की खपत में भी कुछ कमी होगी जिससे हमारी आयातों पर निर्भरता कम होगी. आयात के लिए विदेशी मुद्रा को अर्जित करना भी हमारे लिए जरूरी नहीं रह जाएगा. ये अतिरिक्त लाभ होंगे. यह भार मुख्यत: उन लोगों पर पड़ेगा जो कि पेट्रोल का उपयोग अधिक करते हैं अथवा आवागमन ज्यादा करते हैं. गरीब कम आवागमन करता है इसलिए उस पर भार कम पड़ेगा.
दूसरा स्रोत वर्तमान में लागू तमाम जनकल्याणकारी योजनाएं हैं. इन योजनाओं का उद्देश्य गरीब को मदद पहुंचाना है. लेकिन उन पर किए गए खर्च का बड़ा हिस्सा प्रशासन में चला जाता है. वर्तमान में इन परियोजनाओं पर केंद्र सरकार द्वारा लगभग 8.4 लाख करोड़ रु पया प्रति वर्ष खर्च किया जा रहा है. इनमें से दो-तिहाई योजनाओं को पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है जिससे 5.7 लाख करोड़ रुपए की बचत हो जाएगी. इसी प्रकार खाद्य सब्सिडी का वर्तमान में बोझ लगभग 1.6 लाख करोड़ रुपए है. इस व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है क्योंकि हर परिवार को 5 हजार रुपए प्रति माह की रकम सीधे दी जाएगी. इन दोनों कल्याणकारी योजनाओं को बंद करने से गरीब के लिए खर्च किया जाने वाला 7.3 लाख करोड़ रुपए बंद हो जाएगा.
चौथा स्रोत जीएसटी का है. जीएसटी की प्राप्तियां वर्तमान में 12 लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष हैं. सुझाव है कि इन पर 50 प्रतिशत का सेस लगाया जा सकता है. बताते चलें कि जीएसटी पर लगाए गए सेस से प्राप्ति पूर्णतया केंद्र सरकार को जाती है जबकि स्वयं जीएसटी की प्राप्ति केंद्र और राज्य सरकार के बीच में बांटी जाती है. इस सेस से केंद्र सरकार को 6 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय हो सकती है. जीएसटी पर सेस लगाने का भार मुख्यत: उन लोगों पर पड़ेगा जो कि बाजार से माल ज्यादा खरीदते हैं. इसलिए इसका प्रभाव अमीरों पर अधिक और गरीबों पर कम पड़ेगा.
इन चारों मदों से सरकार 19.3 लाख करोड़ रुपए अर्जित कर सकती है. इस रकम का उपयोग देश के हर परिवार को 5 हजार रुपए प्रति माह देने के लिए जरूरी 18 लाख करोड़ रुपए जुटाने के लिए किया जा सकता है. सही है कि जीएसटी केंद्र सरकार के सीधे नियंत्नण में नहीं है. परंतु वित्त मंत्नी बजट में घोषणा कर सकती हैं कि सरकार यह प्रस्ताव जीएसटी काउंसिल में लाएगी.
मेरा आकलन है कि इन परिवर्तनों से अमीर पर भार बढ़ेगा जबकि गरीब पर कुल मिलाकर भार घटेगा. अमीर पर टैक्स का वजन बढ़ने से जितनी खपत में कमी होगी उससे कई गुना ज्यादा गरीब को पेंशन मिलने से खपत बढ़ेगी. इस प्रकार पूरे बाजार में मांग बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था चल निकलेगी. आगामी बजट के लिए जरूरी है कि इस प्रकार के मौलिक सुधारों पर ध्यान दिया जाए.