इस समय खाद्य वस्तुओं की ऊंची कीमतें देश के सभी वर्ग के लोगों की परेशानी और चिंता का एक बड़ा कारण बन गई हैं. खुदरा खाद्य महंगाई सरकार के लिए भी चुनौती बनी हुई है. खासतौर से बाजारों में गेहूं और दाल के बाद आलू, प्याज और टमाटर की बढ़ती कीमतों से खुदरा महंगाई दर पर दबाव बढ़ा है.
जून 2024 के एक महीने में आलू, प्याज व टमाटर की खुदरा कीमतों में क्रमशः 25 प्रतिशत, 53 प्रतिशत और 70 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस एंड एनालिसिस की मासिक ‘रोटी राइस रेट’ रिपोर्ट के मुताबिक शाकाहारी थाली का मूल्य जून 2024 में 10 फीसदी बढ़कर 29.4 रुपए हो गया है जबकि यह जून 2023 में 26.7 रुपए था.
शाकाहारी थाली का मूल्य मई में 27.8 रुपए था. इस थाली में रोटी, सब्जी (प्याज, टमाटर और आलू), चावल, दाल, दही और सलाद शामिल होते हैं. यद्यपि ऑपरेशन ग्रीन स्कीम को आलू, प्याज और टमाटर के किसानों को अच्छी कीमत दिलवाने के साथ इन वस्तुओं की पूरी एक वैल्यू चेन स्थापित करने के लिए लाया गया था, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली.
हर साल जून से अगस्त के दौरान इन वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं. गौरतलब है कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा महंगाई के आंकड़ों के अनुसार मई 2024 में खुदरा महंगाई दर 4.75 प्रतिशत के साथ पिछले 12 माह के निचले स्तर पर पहुंच गई है, लेकिन खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर 8.69 प्रतिशत की ऊंचाई पर स्थित है.
प्रमुख रूप से अनाज, दाल और सब्जी के दाम में बढ़ोत्तरी के कारण खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर ऊंची है. ऐसे में खाद्य वस्तुओं की महंगाई में कमी आने से खुदरा महंगाई दर और कम हो सकेगी तथा आम आदमी को राहत मिलते हुए दिखाई दे सकेगी.
नई गठबंधन सरकार के द्वारा बेहतर मानसून से निर्मित होने वाली ग्रामीण भारत की उम्मीदों को खुशियों के धरातल पर उतारने और इससे ग्रामीण भारत की आर्थिक ताकत में इजाफा करने के लिए कुछ अहम बातों पर ध्यान दिया जाना जरूरी होगा.
इस समय ग्रामीण भारत में जल्द खराब होने वाले ऐसे कृषि उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला बेहतर करने पर प्राथमिकता से काम करना होगा, जिनकी खाद्य महंगाई के उतार-चढ़ाव में ज्यादा भूमिका होती है.
यद्यपि इस समय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दर नियंत्रित है, लेकिन खाद्य पदार्थों की ऊंची महंगाई ने समग्र महंगाई दर को रिजर्व बैंक के लक्ष्य से ऊपर पहुंचा दिया है. ऐसे में महंगाई के प्रबंधन के लिहाज से खाद्य उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ खाद्य उपजों की बर्बादी रोकने से महंगाई पर अंकुश बने रहने की संभावना होगी.