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अर्थव्यवस्था की 'सर्जरी' थी नोटबंदी: एनसीएईआर एक्सपर्ट

By भाषा | Updated: September 2, 2018 12:21 IST

अर्थव्यवस्था की बेहतरी और सुरक्षा के लिये नये नोट छापने पर यदि आठ- दस हजार करोड़ रुपये खर्च हुये हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है।

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नई दिल्ली, 2 सितंबर: भारतीय रिजर्व बैंक की 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट आने के बाद नोटबंदी की सफलता-असफलता को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई। इस संबंध में नेशनल काउंसिल आफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के सीनियर फेलो डॉ. कन्हैया सिंह से भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब :

1. नोटबंदी में बंद किये गये 500, 1000 रुपये के करीब करीब सभी नोट बैंकिंग तंत्र में लौट आये हैं। क्या यह नोटबंदी की विफलता है?

उत्तर: बंद किये गये सभी नोटों का बैंकों में पहुंचना नोटबंदी की सफलता है। इससे पूरा धन औपचारिक रूप से आर्थिक तंत्र में आ गया है, जिससे अर्थव्यवस्था को फायदा होगा। नोटबंदी के दौरान लोगों ने अपने पास उपलब्ध नकदी को नष्ट करने के बजाय वाजिब, गैर-वाजिब विभिन्न तरीके अपनाकर बैंकों में पहुंचाने का काम किया। जनधन खातों में अचानक जमाधन बढ गया। कई बैंकर पकड़े गये। लेकिन धन का बैंकों में पहुंचना अच्छा है। इससे नकदी के स्रोत का पता लगाने में मदद मिलेगी। इस पर आगे क्या कारवाई होती है, यह सरकार को देखना है।

2. दावा किया गया था कि नोटबंदी से कालाधन समाप्त होगा, आतंकवाद, नक्सलवाद से निपटने में मदद मिलेगी। इसमें कितनी सफलता मिली है?

उत्तर: जहां तक आतंकवादी या नक्सल संगठनों को नकदी पहुंचने की बात है, उनके धन के स्रोत के बारे में जानकारियां सामने आई हैं। उनको होने वाले वित्तपोषण में भी बाधा खड़ी हुई है। धन बैंकों में आने के बाद उसे निकालने में उन्हें परेशानी हुई है। करीब दो- सवा दो लाख मुखौटा कंपनियों का पंजीकरण रद्द हुआ है। सालाना वित्तीय लेखाजोखा नहीं सौंपने को लेकर इतनी ही और कंपनियों पर भी पंजीकरण निरस्त होने की तलवार लटक रही है। यह काम नोटबंदी के बिना नहीं हो सकता था।

3. नोटबंदी को बड़ा घोटाला बताया जा रहा है, इससे अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान हुआ है। इसमें कितनी सचाई है?

उत्तर: हमारा मानना है कि नोटबंदी के रूप में वास्तव में देश में चलने रही नकदी और कालेधन की अर्थव्यवस्था की जरूरी 'सर्जरी' की गई है। इससे महंगाई पर अंकुश लगा है। रीयल एस्टेट क्षेत्र के दाम जो कि आसमान पर पहुंच गये थे नीचे आये हैं। रीयल एस्टेट क्षेत्र में जो कालाधन पहुंच रहा था उस पर अंकुश लगा है। अब आम मध्यम वर्ग के लोग भी घर खरीदने के बारे में सोचने लगे हैं। जहां तक जीडीपी वृद्वि में कमी आने की बात है, नोटबंदी के बाद एक- दो तिमाही में इसका असर देखा गया था, बाद में यह रिकवर हो गया। आप जानते हैं कि जब भी कोई सर्जरी होती है तो कुछ समय तक उसका असर तो शरीर पर रहता ही है।

4. नोटबंदी के दौरान नये नोट छापने पर अरबों रूपये खर्च करने की बात सामने आई है, अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाकर नये नोट छापने पर इतना धन खर्च करना कहां तक उचित है?

उत्तर: अर्थव्यवस्था की बेहतरी और सुरक्षा के लिये नये नोट छापने पर यदि आठ- दस हजार करोड़ रुपये खर्च हुये हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है। अर्थव्यवस्था को कालेधन और नकली नोटों के खतरे से बचाने के लिये इतनी राशि खर्च करना गलत नहीं है। संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर ने भी कहा था कि अर्थव्यवस्था की भलाई के लिये समय समय पर नोट बदलते रहना चाहिये। मेरा मानना है कि सरकार को 2,000 रुपये का नोट बंद कर देना चाहिये। केवल 100, 200 और 500 रुपये के नोट ही रखने चाहिये। नोटबंदी से यदि एक प्रतिशत लोगों की भी सोच में बदलाव आता है तो यह बहुत बड़ी बात है।

5. सरकार की तरफ से दावा किया जा रहा है कि नोटबंदी के बाद कर चुकाने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, और यही इसका व्यापक उददेश्य भी था। यह कहां तक सही है?

उत्तर: इसमें कोई दो राय नहीं है कि नोटबंदी के बाद कालेधन पर अंकुश लगा है और कर चुकाने वालों की संख्या बढ़ी है। प्रत्यक्ष कर संग्रह तेजी से बढ़ा है। आयकर रिर्टन दाखिल करने वालों की संख्या साढ़े तीन करोड़ से बढ़कर करीब सात करोड़ तक पहुंच गई है। पहले जहां इनमें हर साल नौ-दस प्रतिशत की बढ़ोतरी होती थी वहीं अब 20- 25 प्रतिशत की वृद्वि हो रही है। यह नोटबंदी का ही परिणाम है। 

महाबीर सिंह

टॅग्स :नोटबंदीआरबीआई
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