Israel-Iran conflict: वैश्विक संघर्ष से बढ़ रहीं आर्थिक चुनौतियां
By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Updated: October 25, 2024 11:20 IST2024-10-25T11:19:43+5:302024-10-25T11:20:52+5:30
israel-iran conflict: वैश्विक शेयर बाजार के साथ-साथ भारत के शेयर बाजार पर भी असर पड़ना शुरू हुआ है.

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israel-iran conflict: इन दिनों ईरान और इजराइल सहित पश्चिम एशिया में बढ़ते संघर्ष तथा रूस-यूक्रेन युद्ध के विस्तारित होने से भारत की आर्थिक चुनौतियां बढ़ गई हैं. ये चुनौतियां कच्चे तेल की कीमतों, शेयर बाजार में गिरावट, माल ढुलाई की लागत बढ़ने, खाद्य वस्तुओं की महंगाई, भारत से चाय, मशीनरी, इस्पात, रत्न, आभूषण तथा फुटवियर जैसे क्षेत्रों में निर्यात आदेशों में कमी, निर्यात के लिए बीमा लागत में वृद्धि तथा इजराइल और ईरान के साथ द्विपक्षीय व्यापार में कमी के रूप में दिखाई दे रही हैं. स्थिति यह है कि वैश्विक शेयर बाजार के साथ-साथ भारत के शेयर बाजार पर भी असर पड़ना शुरू हुआ है.
पश्चिम एशिया संकट और चीन से सरकारी प्रोत्साहन के दम पर बाजार चढ़ने के मद्देनजर भारत के शेयर बाजार में कुछ विदेशी निवेशकों के द्वारा जोखिम वाली संपत्तियां बेची जा रही हैं और वे अपना कुछ निवेश निकाल रहे हैं. स्थिति यह है कि सेंसेक्स और निफ्टी के लिए अक्तूबर 2024 का पहला सप्ताह 4.5 फीसदी के नुकसान के साथ दो साल की सबसे बड़ी गिरावट का सप्ताह रहा है.
युद्ध बढ़ने की आशंका के बीच निवेशक सुरक्षित निवेश के तौर पर सोने की खरीदी का भी रुख कर रहे हैं. इससे वैश्विक स्तर के साथ-साथ भारत में भी सोने की खपत और सोने की कीमत बढ़ने लगी है. यदि कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी तो दुनियाभर में कई वस्तुओं के दाम बढ़ने के साथ-साथ भारत में भी कीमतें बढ़ने का सिलसिला शुरू हो सकता है.
चूंकि ईरान दुनिया के सबसे बड़े कच्चा तेल उत्पादकों में से एक है और यह देश पश्चिम एशिया के संवेदनशील इलाके में स्थित है, ऐसे में ईरान के तेल बाजार में अस्थिरता से कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ने पर पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पाद महंगे होने लगेंगे. इसका असर भारत पर विशेष रूप से पड़ेगा, क्योंकि भारत अपनी तेल की जरूरतों के करीब 80 फीसदी तक आयात पर निर्भर है.
चूंकि ईरान प्राकृतिक गैस के भी बड़े उत्पादकों में से एक है, युद्ध की स्थिति में ईरान से होने वाले गैस निर्यात पर भी असर पड़ सकता है और इससे यूरोप और एशिया के साथ-साथ भारत में भी प्राकृतिक गैस की कीमतें बढ़ सकती हैं. एक चिंताजनक बात यह भी है कि ईरान और इजराइल के बीच संघर्ष का असर वैश्विक शिपिंग रूट्स पर भी पड़ सकता है, खासकर होर्मुज जलडमरूमध्य पर. यह वैश्विक यातायात का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मार्ग है. दुनिया को मिलने वाला करीब एक तिहाई तेल और खाद्य व कृषि उत्पादों का अधिकांश यातायात इसी मार्ग से होता है.
ऐसे में इस क्षेत्र में शिपिंग बाधित होने से ग्लोबल सप्लाई चेन प्रभावित हो सकती है. इससे खाद्य पदार्थों, जैसे कि गेहूं, चीनी और अन्य कृषि उत्पादों की कीमतें बढ़ने लगेंगी. यह बात भी महत्वपूर्ण है कि ईरान और इजराइल के बीच युद्ध का अप्रत्यक्ष प्रभाव भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग पर भी पड़ सकता है, क्योंकि भारत अभी भी ज्यादातर दवाओं के लिए कच्चे माल का बड़ा हिस्सा विदेश से आयात करता है.
ऐसे में दवाओं की कीमतों में बढ़ोत्तरी की आशंका होगी. इसमें कोई दो मत नहीं है कि पश्चिम एशिया में युद्ध के बढ़ने पर बाजार में तेज गिरावट और महंगाई वृद्धि का दौर निर्मित होते हुए दिखाई दे सकता है. लेकिन युद्ध की ऐसी आशंकाओं के बीच भी भारत के कई ऐसे मजबूत आर्थिक पक्ष हैं जिनसे भारत के आम आदमी और भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक नुकसान नहीं हो सकेगा.
खास बात यह है कि इस समय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है. भारत खाद्यान्न अधिशेष वाला देश है और देश के 80 करोड़ से अधिक कमजोर वर्ग के लोगों को नि:शुल्क खाद्यान्न वितरित किया जा रहा है. युद्ध की आशंका के बीच भी भारत पर दुनिया का आर्थिक विश्वास बना हुआ है. नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक 27 सितंबर को भारत के पास रिकॉर्ड स्तर पर 704 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार है, जिससे भारत किसी भी आर्थिक जोखिम का सरलतापूर्वक सामना करने में सक्षम है.
फिर भी युद्ध की बढ़ती आशंकाओं के बीच भारत को महंगाई पर सतर्क निगाहें रखनी होंगी. उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक खुदरा महंगाई दर में पिछले सितंबर माह में वृद्धि हुई है. वित्त मंत्रालय के द्वारा प्रकाशित आर्थिक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2024 में दक्षिण पश्चिम मानसून के अच्छे रहने के कारण खरीफ की बुआई अच्छी हुई है और रबी की फसल भी अच्छी आएगी.
यहां यह उल्लेखनीय है कि विगत अगस्त में आरबीआई ने देश में बढ़ती महंगाई को देखते हुए मौद्रिक नीति समीक्षा के तहत रेपो रेट को पहले की तरह 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है. ये लगातार 10 वीं बार है जब मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में रेपो रेट को यथावत रखने का फैसला किया गया है. आखिरी बार रेपो रेट में फरवरी 2023 में बदलाव किया गया था. अब रिजर्व बैंक को युद्ध की आशंका के बीच मौद्रिक नीति की आगामी समीक्षा बैठक में भी तेज विकास दर की बजाय महंगाई नियंत्रण को ही प्राथमिकता दिए जाने पर ध्यान देना होगा. इसमें कोई दो मत नहीं है कि युद्ध की आशंका के बीच अब सरकार को भी महंगाई नियंत्रण के लिए बहुआयामी रणनीति की डगर पर आगे बढ़ना होगा.
हम उम्मीद करें कि ईरान-इजराइल और रूस-यूक्रेन युद्ध की आशंका के बीच सरकार बाजार की गिरावट रोकने के लिए भी रणनीतिपूर्वक आगे बढ़ेगी. हम उम्मीद करें कि सरकार पीएलआई योजना के तहत दवाई उद्योग में काम आने वाले जिन 35 प्रमुख कच्चे मालों (एपीआई) का उत्पादन देश में ही कर रही है, उनके अलावा करीब 18 प्रकार के एपीआई का उत्पादन भी देश में ही करने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी, ताकि दवाइयों के दामों पर नियंत्रण रखा जा सके. ऐसे बहुआयामी रणनीतिक प्रयासों से देश के आमजन व देश की अर्थव्यवस्था को युद्ध के दुष्प्रभावों से बहुत कुछ बचाया जा सकेगा.