भारत देसी नस्लः बोझ बनते मवेशियों को वरदान बनाने की जरूरत?, गोवंश मारे-मारे फिर रहे...

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: February 7, 2025 05:54 IST2025-02-07T05:54:49+5:302025-02-07T05:54:49+5:30

India's indigenous breed: बेहद कठिन और गर्म परिस्थितियों में भी आसानी से जीवित रहने की विशेषता के कारण अफ्रीका के गर्म देशों में भी इनकी भारी मांग है.

India's indigenous breed need turn cattle becoming burden boon cows roam around killed | भारत देसी नस्लः बोझ बनते मवेशियों को वरदान बनाने की जरूरत?, गोवंश मारे-मारे फिर रहे...

सांकेतिक फोटो

Highlightsदेखभाल नहीं करनी पड़ती और विषम जलवायु में भी ये जल्दी बीमार नहीं पड़तीं. फसलों का डंठल मवेशियों के चारे के काम में आता था, उन्हें अब जला दिया जाता है. पंजाब में तो पराली जलाने की समस्या इतनी विकराल है कि उसके धुएं से सर्दियों में दिल्ली गैस चेंबर जैसी बन जाती है.

India's indigenous breed: ऐसे समय में, जबकि भारत में देसी नस्ल के गोवंश मारे-मारे फिर रहे हैं, ब्राजील में एक भारतीय नस्ल की गाय का 40 करोड़ रु. में बिकना एक बड़ी उम्मीद जगाता है. नेल्लोर नस्ल की वियाटिना-19 नाम की इस गाय को ब्राजील के मिनास गैरेस में हुई नीलामी में 4.8 मिलियन डॉलर (लगभग 40 करोड़ रुपए) में खरीदा गया और इस तरह यह अब तक बेची गई दुनिया की सबसे महंगी गाय बन गई है. इन गायों की विशेषता इनकी मजबूत इम्युनिटी होती है जिससे वे बीमारियों से लड़ने में सक्षम होती हैं. कठिन परिस्थितियों में भी ये गायें कम देखभाल में जीवित रह सकती हैं, जिससे उनका पालन आसान हो जाता है. बेहद कठिन और गर्म परिस्थितियों में भी आसानी से जीवित रहने की विशेषता के कारण अफ्रीका के गर्म देशों में भी इनकी भारी मांग है.

भारतीय नस्ल की गायों की यह प्राय: आम विशेषता होती है कि उनकी ज्यादा देखभाल नहीं करनी पड़ती और विषम जलवायु में भी ये जल्दी बीमार नहीं पड़तीं. लेकिन देखभाल नहीं करने के कारण ये दूध भी जर्सी जैसी विदेशी नस्ल की गायों की तुलना में कम देती हैं, जिससे इनके पालन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

जबकि अनुसंधानों से यह साबित हो चुका है कि ज्यादा दूध देने वाली विदेशी नस्ल की गायों की तुलना में देसी गायों का दूध ज्यादा पौष्टिक होता है. प्राचीन काल से ही कृषि के साथ गोवंश का अटूट नाता रहा है. तकनीकी उन्नति के साथ कृषि में अत्याधुनिक औजारों के इस्तेमाल के कारण दुर्भाग्य से गोवंश की कोई जरूरत नहीं रह गई है, जिससे उनके पालन पर कोई ध्यान नहीं देता.

उत्तर भारत में तो हालात बेहद खराब हैं, जहां बैलों से न तो खेतों की जुताई होती है न फसलों की गहाई होती है और न उनसे कोई अन्य काम लिया जाता है. नतीजतन जिस खेती के लिए वे वरदान माने जाते थे, अब उसी के लिए बोझ बन गए हैं. गांवों में आज आवारा मवेशियों के झुंड के झुंड उधर-उधर भटकते रहते हैं, जिनसे फसल की रक्षा के लिए किसानों को अपने खेतों में बाड़ लगानी पड़ती है.

जिन फसलों का डंठल मवेशियों के चारे के काम में आता था, उन्हें अब जला दिया जाता है. पंजाब में तो पराली जलाने की समस्या इतनी विकराल है कि उसके धुएं से सर्दियों में दिल्ली गैस चेंबर जैसी बन जाती है. जो चारा गाय-बैलों के खाने से गोबर बनकर फसल के लिए बेशकीमती खाद का काम करता था, अब प्रदूषण का कारण बन रहा है.

जबकि रासायनिक खाद और कीटनाशक खेतों को साल-दर-साल बंजर बनाते जा रहे हैं, क्योंकि पैदावार लेने के लिए हर साल उनकी मात्रा बढ़ानी पड़ती है. अब शोधों से पता चल रहा है कि केमिकल, कीटनाशकों के इस्तेमाल से मॉडिफाइड बीजों के जरिये ली जाने वाली पैदावार मात्रा में भले ही ज्यादा हो, लेकिन पौष्टिकता में देसी फल, सब्जियां और अनाज उनसे बहुत बेहतर होते हैं.

यही बात देसी गायों के दूध के बारे में भी कही जा सकती है. इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि ब्राजील में भारतीय नस्ल की गाय के दुनिया में सबसे महंगी गाय होने का रिकॉर्ड बनाने की खबर से देसी गायों की देखभाल की तरफ भी लोगों का ध्यान जाएगा, उन्हें दूध के लिए पाला जाएगा और बैलों की शक्ति के सदुपयोग के अभिनव तरीके खोजे जाएंगे!

Web Title: India's indigenous breed need turn cattle becoming burden boon cows roam around killed

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