विचार: सरकारी कर्मचारियों का वेतन होना चाहिए सात गुना कम, बचे पैसे से बढ़ाएँ नौकरियों की संख्या

By भरत झुनझुनवाला | Published: September 1, 2021 02:06 PM2021-09-01T14:06:10+5:302021-09-01T14:42:01+5:30

वियतनाम में देश के नागरिक की औसत आय की तुलना में सरकारी कर्मी का औसत वेतन 90 प्रतिशत होता है. यदि वियतनाम के नागरिक की औसत आय 100 रुपए है तो सरकारी कर्मियों का औसत वेतन 90 रुपए है.

government employees Increase number reduce salary implement public distribution system Bharat Jhunjhunwala's blog | विचार: सरकारी कर्मचारियों का वेतन होना चाहिए सात गुना कम, बचे पैसे से बढ़ाएँ नौकरियों की संख्या

2019 में घटकर 17.1 प्रतिशत रह गई. तुलना में भारत में सरकारी खपत बढ़ती जा रही है.

Highlightsचीन में यदि नागरिक का औसत वेतन 100 रुपए है तो सरकारी कर्मी का औसत वेतन 110 रुपए बैठता है.भारत में यदि नागरिक का औसत वेतन 100 रुपए है तो सरकारी कर्मी का औसत वेतन 700 रुपए है. विश्व बैंक ने बताया है कि वैश्विक स्तर पर सरकारी खपत में गिरावट हो रही है.

संविधान के निर्माताओं ने कल्याणकारी राज्य की कल्पना की थी. यह कहने की जरूरत नहीं कि जनकल्याण हासिल करने के लिए सरकारी कर्मियों की नियुक्ति करनी ही होगी. जैसे हाईवे बनवाने के लिए अथवा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को लागू करने के लिए सरकारी कर्मियों की नियुक्ति करना आवश्यक होता ही है.

इसके पीछे की सोच यह है कि सरकारी कर्मी अपने कार्यो का निष्ठापूर्वक संपादन करके देश के आर्थिक विकास में योगदान देंगे और जनकल्याण हासिल करेंगे. लेकिन यदि सरकारी कर्मियों को सरकार इतना अधिक वेतन देने लगे कि विकास और जनकल्याण दोनों ठप हो जाएं तो हम संविधान की भावनाओं के विपरीत चल पड़ते हैं. ऐसी स्थिति में सरकारी कर्मियों का कल्याण प्राथमिक और जनकल्याण गौण हो जाता है.

विश्व बैंक ने ‘वैश्विक परिदृश्य में सरकारी वेतन’ नाम से अध्ययन किया. इसके अनुसार वियतनाम में देश के नागरिक की औसत आय की तुलना में सरकारी कर्मी का औसत वेतन 90 प्रतिशत होता है. यदि वियतनाम के नागरिक की औसत आय 100 रुपए है तो सरकारी कर्मियों का औसत वेतन 90 रुपए है. चीन में यदि नागरिक का औसत वेतन 100 रुपए है तो सरकारी कर्मी का औसत वेतन 110 रुपए बैठता है.

लेकिन भारत में यदि नागरिक का औसत वेतन 100 रुपए है तो सरकारी कर्मी का औसत वेतन 700 रुपए है. यह बात विश्व बैंक की रपट बताती है. गौर करने की बात यह है कि वियतनाम और चीन दोनों ही हमसे बहुत अधिक तीव्रता से आर्थिक विकास हासिल कर रहे हैं. इससे संकेत मिलता है कि भारत की आर्थिक विकास दर के न्यून होने के पीछे एक कारण यह हो सकता है कि भारत की ‘राष्ट्रीय आय’ का उपयोग सरकारी कर्मियों की ‘खपत’ को पोषित करने में खप जा रहा है जिससे जन कल्याण और आर्थिक विकास दोनों पीछे होते जा रहे हैं.

सरकारी खपत में हो रही गिरावट

इसी क्रम में विश्व बैंक ने बताया है कि वैश्विक स्तर पर सरकारी खपत में गिरावट हो रही है. वैश्विक स्तर पर 2009 में सरकारी खपत देश की कुल आय का 18 प्रतिशत थी जो कि 2014 में घटकर 17.2 प्रतिशत हो गई और 2019 में घटकर 17.1 प्रतिशत रह गई. तुलना में भारत में सरकारी खपत बढ़ती जा रही है. वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2014 में देश की आय में सरकारी खपत का हिस्सा 10.4 प्रतिशत था जो 2020 में बढ़कर 12.6 प्रतिशत हो गया है. स्पष्ट है कि जहां वैश्विक स्तर पर सरकारी खपत में गिरावट आ रही है, वहीं भारत में सरकारी खपत में तीव्र वृद्धि हो रही है.

यहां यह स्पष्ट करना होगा कि वैश्विक स्तर पर सरकारी खपत लगभग 17 प्रतिशत की तुलना में भारत में 12 प्रतिशत है. कारण यह है कि तमाम देशों में सरकारी कर्मियों की नियुक्ति अधिक संख्या में की गई है. जैसे भारत में एक लाख नागरिकों के पीछे 139 सरकारी कर्मी हैं जबकि अमेरिका में एक लाख नागरिकों के पीछे 668 सरकारी कर्मी हैं.

अमेरिका में भारत की तुलना में सरकारी कर्मियों की संख्या लगभग पांच गुना है. यानी भारत में 12.6 प्रतिशत सरकारी खपत में 139 कर्मी नियुक्त हैं तो अमेरिका में 17.1 प्रतिशत सरकारी खपत में 668 कर्मी नियुक्त हैं. अत: हमें इस बात से विचलित नहीं होना चाहिए कि वैश्विक स्तर पर सरकारी खपत ज्यादा है.

हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि भारत में कम संख्या में कर्मियों द्वारा अधिक खपत क्यों की जा रही है. समस्या यह है कि अपने देश में सरकारी खपत में वृद्धि हो रही है जबकि वैश्विक स्तर पर इसमें गिरावट आ रही है और भी चिंताजनक है कि विश्व श्रम संगठन के अनुसार कोविड संकट के दौरान भारत में सभी कर्मियों के वेतन में 3.6 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि असंगठित श्रमिकों के वेतन में 22.6 प्रतिशत की गिरावट आई है. यह गंभीर है क्योंकि एक तरफ सरकार की खपत में वृद्धि हो रही है और दूसरी तरफ नागरिक की आय में गिरावट आ रही है.

सरकार को सात गुना कम कर देना चाहिए वेतन

स्पष्ट है कि भारत में सरकारी कर्मी जनता का कल्याण अथवा विकास में सहयोग देने के स्थान पर जनता का शोषण करने और विकास में गिरावट लाने की भूमिका अदा कर रहे हैं. इसका अर्थ यह नहीं है कि सरकारी कर्मी अपना कार्य नहीं करते हैं. वे कार्य करते हैं. उनमें से कई ईमानदार भी हैं. लेकिन कार्य के लिए जिस प्रकार के वेतन उन्हें दिए जा रहे हैं, उनका देश पर विपरीत प्रभाव पड़ता दिख रहा है.

इस परिस्थिति में सरकार को वर्तमान सरकारी कर्मियों के वेतन में कटौती करके इन्हें वर्तमान का केवल सातवां हिस्सा कर देना चाहिए जिससे कि ये वियतनाम और चीन के समान हो जाएं. जैसे यदि किसी कर्मी को आज 70 हजार रुपए का वेतन प्रति माह मिलता है, उसे काटकर केवल दस हजार रुपए देना चाहिए. इस बची हुई रकम से वर्तमान सरकारी कर्मियों की संख्या को बढ़ा दिया जाए.

यदि वर्तमान में 2 करोड़ सरकारी कर्मचारी हैं तो 12 करोड़ और कर्मियों को नियुक्त कर कुल 14 करोड़ सरकारी कर्मी नियुक्त कर दिए जाएं. ऐसा करने से दो विसंगतियां दूर हो जाएंगी. पहली यह कि हमारे सरकारी कर्मियों का वेतन दूसरे तीव्र विकास करने वाले देशों के समतुल्य हो जाएगा और दूसरा यह कि सरकार के पास 14 करोड़ कर्मियों की एक नई फौज तैयार हो जाएगी जिससे जन कल्याण और आर्थिक विकास के कार्य संपादित हो सकेंगे.

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