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जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: बढ़ते राजकोषीय घाटे की चुनौती

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: February 11, 2019 12:01 IST

विभिन्न रेटिंग एजेंसियों की तरह देश और दुनिया के कर विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों ने राजकोषीय घाटे के घोषित किए लक्ष्य को चुनौतीपूर्ण बताया है।

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हाल ही में 5 फरवरी को वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा है कि मोदी सरकार के द्वारा वित्त वर्ष 2019-20 के लिए प्रस्तुत किए गए अंतरिम बजट के तहत राजकोषीय घाटा (फिजिकल डेफिसिट) सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3।4 प्रतिशत रखे जाने का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है, उसे हासिल करने में सरकार को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि लोकलुभावन अंतरिम बजट में खर्च बढ़ाने के जो कदम उठाए गए हैं उससे मांग और बचत वृद्धि संबंधी लाभ भी हो सकते हैं। इसी प्रकार क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने भी कहा है कि अगले वित्त वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3।6 प्रतिशत रहने की संभावना है। 

गौरतलब है कि विभिन्न रेटिंग एजेंसियों की तरह देश और दुनिया के कर विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों ने राजकोषीय घाटे के घोषित किए लक्ष्य को चुनौतीपूर्ण बताया है। लेकिन यह भी कहा है कि अनुकूल आर्थिक परिवेश में मोदी सरकार अपना अंतरिम बजट प्रस्तुत करते समय पूर्ण स्वायत्तता का उपयोग करते हुए बजट को सभी के लिए हितप्रद बनाते हुए दिखाई दी है। इस नए बजट से अर्थव्यवस्था के साथ-साथ विभिन्न वर्गो को लाभ मिलेगा।

चूंकि 2019-20 का अंतरिम बजट आम चुनाव के पहले का आखिरी बजट था, अतएव इसे लोक-लुभावन बनाया गया है। निश्चित रूप से इस बजट को लोकलुभावन बनाने के लिए सरकार राजकोषीय घाटे संबंधी कठोरता से कुछ पीछे हटी है। निस्संदेह देश के समक्ष चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 के  दौरान बढ़े हुए राजकोषीय घाटे की चिंताएं मुंह बाए खड़ी हैं। वित्त वर्ष 2018-19 के बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 6।24 लाख करोड़ रुपए रखा गया था, यह व्यय दिसंबर 2018  के अंत तक 7।01 लाख करोड़ रु पए पर पहुंच गया है, जो बजट अनुमान से करीब 12।4 प्रतिशत ज्यादा है। स्पष्ट है कि चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 के पिछले 9 माह में जो राजकोषीय घाटा ऊंचाई पर पहुंच गया है उसे पाटा जाना मुश्किल है।

उल्लेखनीय है कि चालू वित्त वर्ष 2018-19 के दिसंबर माह तक यानी पहले नौ महीनों में जहां प्रत्यक्ष कर संग्रह में 14।5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है, वहीं अप्रत्यक्ष कर संग्रह पिछले साल के बराबर बना हुआ है।  व्यय की तुलना में राजस्व पर दबाव ज्यादा दिख रहा है। प्रत्यक्ष कर के तहत कॉर्पोरेट कर संग्रह 14 प्रतिशत बढ़कर दिसंबर के अंत तक 4।27 लाख करोड़ रुपए हो गया, जो पिछले साल की समान अवधि में हुए 3।75 लाख करोड़ रुपए की तुलना में ज्यादा है। जरूरी है कि सरकार राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए शुरू से ही रणनीति के साथ आगे बढ़े। यदि सरकार राजकोषीय घाटे को लक्ष्य के अनुरूप जीडीपी के  3।4 फीसदी के स्तर पर बनाए रखने में सफल होगी, तो यह सरकार की बड़ी उपलब्धि होगी।

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