प्रकाश बियाणी का ब्लॉग: अर्थव्यवस्था को सही ट्रैक पर लाने की चुनौती
By Prakash Biyani | Published: July 24, 2019 01:06 PM2019-07-24T13:06:08+5:302019-07-24T13:06:08+5:30
2014 में एनपीए के बोझ से दबे बैंकों ने कर्ज वितरण पर अघोषित रोक लगाई तो नॉन बैंकिग फायनेंस कंपनियों (एनबीएफसी) ने इस कमी को पूरा किया. 2018 में इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फायनेंशियल सिस्टम्स डिफॉल्टर हुई तो कमर्शियल पेपर मार्केट प्रभावित हुआ जो एनबीएफसी का सबसे बड़ा फंडिंग सोर्स था.
यूपीए सरकार पर पॉलिसी पैरालिसिस और भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर 2014 में भाजपा ने 30 साल बाद स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाई थी. क्रूड ऑइल के अंतर्राष्ट्रीय मूल्य नियंत्रित रहने से महंगाई, वित्तीय घाटा और चालू खाते का घाटा घटा. एनडीए सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी पैसा खर्च किया. इसके बाद नोटबंदी गलत क्रियान्वयन का शिकार हुई. जीएसटी के साथ भी यही हुआ. सरकार दावा करती रही कि ‘ईज ऑफडूइंग’ में देश का क्र म सुधरा है, पर स्वदेशी कारोबारी ‘डिफिकल्टीज ऑफ बिजनेस डूइंग’ की शिकायत करते रहे. इसके बावजूद 2019 में पहले से ज्यादा बहुमत के साथ एनडीए की सरकार बनी जिसके लिए आज सबसे बड़ी चुनौती है अर्थव्यवस्था को सही ट्रैक पर लाना.
बिजनेस कॉन्फिडेंस इंडेक्स के ताजा सर्वे में 52 फीसदी लोगों ने कहा है कि मोदी सरकार आर्थिक मोर्चे पर असफल रही है. बेरोजगारी बढ़ रही है. वस्तुओं की मांग घटने से निजी निवेश 2018-19 में मात्न 9.5 लाख करोड़ रुपए रह गया है जो 14 साल का न्यूनतम स्तर है. औद्योगिक उत्पादन की ग्रोथ पिछले एक साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है. फिनिश्ड स्टील का उत्पादन पिछले पांच साल के न्यूनतम स्तर पर है. 2018-19 में वाहन बिक्री मात्न 2.7 फीसदी बढ़ी है जो पांच साल की न्यूनतम ग्रोथ है. ऑटोमोबाइल की बिक्री घटने से वाहन निर्माताओं ने प्रोडक्शन घटा दिया है. 3 लाख करोड़ रुपए के फास्ट मूविंग कंजुमर मार्केट में सुस्ती है. साबुन, टूथपेस्ट, हेयर आयल, बिस्कुट तक की मांग घट गई है. इंडियन फाउंडेशन और ट्रांसपोर्ट रिसर्च ने माल की ढुलाई की मौजूदा कमी की तुलना 2008-09 की ग्लोबल मंदी से की है. देश के प्रमुख आठ शहरों में 10 लाख रेडी फॉर पजेशन घर ग्राहकों की प्रतीक्षा कर रहे हैं. देश की इकोनॉमी में आधा योगदान देनेवाले सर्विस सेक्टर की ग्रोथ सात माह के न्यूनतम स्तर पर है. निर्यात नहीं बढ़ रहा है. देश ने 2018-19 में 331 बिलियन डॉलर का निर्यात व्यापार किया जो 2014 के निर्यात से मात्न 17 बिलियन डॉलर ज्यादा है. महंगाई नियंत्नण में है पर लोग पैसा खर्च नहीं कर रहे हैं. बचत भी 25 फीसदी से घटकर 17 फीसदी रह गई है.
2014 में एनपीए के बोझ से दबे बैंकों ने कर्ज वितरण पर अघोषित रोक लगाई तो नॉन बैंकिग फायनेंस कंपनियों (एनबीएफसी) ने इस कमी को पूरा किया. 2018 में इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फायनेंशियल सिस्टम्स डिफॉल्टर हुई तो कमर्शियल पेपर मार्केट प्रभावित हुआ जो एनबीएफसी का सबसे बड़ा फंडिंग सोर्स था. इसके बाद से कॉर्पोरेट वल्र्ड में नगदी का भारी संकट पैदा हो गया है. सरकार ने इसका निदान रिजर्व बैंक के 43.22 बिलियन डॉलर एक्सेस रिजर्व में खोजा. इसके लिए बिमल जालान कमेटी का गठन हुआ जिसने सरकार को निराश किया. उसने एकमुश्त राशि देने के बजाय 3 से 5 वर्षो में किस्तों में राशि देने की सिफारिश की है यानी निकट भविष्य में मार्केट में तरलता नहीं बढ़ेगी.