प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: ड्रोन निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का बड़ा फैसला
By प्रमोद भार्गव | Published: February 14, 2022 03:34 PM2022-02-14T15:34:04+5:302022-02-14T15:35:27+5:30
भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जो उत्पादों और तकनीकी उपकरणों के पुर्जो की खरीद के लिए चीन का विकल्प तलाश रहे हैं। महामारी और वैश्विक सप्लाई चेन प्रभावित होने से विभिन्न वस्तुओं के अन्य देशों से आयात में मुश्किलें आई हैं। इस कारण भी भारत की चीन पर निर्भरता मजबूरी का सबब बनी हुई है।
भारत ने घरेलू युवा उद्यमिता को आत्मनिर्भर बनाने की दृष्टि से बड़ा निर्णय लेते हुए चीन से ड्रोन के आयात पर जो प्रतिबंध लगा दिया है, उससे चीन की कंपनी ‘एसजेड डीजेआई टेक्नोलॉजी’ को बड़ा झटका लगा है। यह दुनिया में ड्रोन का निर्माण करने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। जबकि भारत में ड्रोन निर्माण का उद्योग शुरुआती चरण में है। विदेशी व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने यह आदेश हाल ही में जारी किया है। आदेश के मुताबिक अब ड्रोन के चंद कलपुर्जे ही बिना अनुमति के आयात किए जा सकेंगे। रिसर्च एवं डेवलपमेंट (आरएनडी) रक्षा एवं सुरक्षा उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ड्रोन व उनके पुर्जो का आयात करने की छूट होगी।
दरअसल, भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जो उत्पादों और तकनीकी उपकरणों के पुर्जो की खरीद के लिए चीन का विकल्प तलाश रहे हैं। महामारी और वैश्विक सप्लाई चेन प्रभावित होने से विभिन्न वस्तुओं के अन्य देशों से आयात में मुश्किलें आई हैं। इस कारण भी भारत की चीन पर निर्भरता मजबूरी का सबब बनी हुई है। भारत और चीन के बीच सीमा पर हुए विवाद के बाद लंबे समय से गतिरोध बना हुआ है। इसी दौरान चीन-अमेरिकी विवाद के बीच चाइनीज ड्रोन चिंता के रूप में भी पेश आया है।
आशंका जताई जा रही है कि शेनड़ोन की कंपनी एसजेड डीजीआई के ड्रोन मुखबिरी करने का काम भी कर रहे हैं। ये पुल, बांधों, सेना स्थलों और अन्य सुरक्षा संबंधी सरंचनाओं की जासूसी करने में सक्षम हैं। अतएव ये चीनी ड्रोन हार्ट रेट एवं फेशियल रिकॉग्निशन (चेहरे की पहचान) जैसी व्यक्तिगत जानकारी तक हर चीज चीनी गुप्तचर एजेंसियों से साझा कर सकते हैं। चूंकि भारत और चीन के संबंध सामरिक दृष्टि से युद्ध के हालात निर्मित कर देने जैसे हैं इसलिए चीनी ड्रोन भारत के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकते है।
भारत सरकार ने पिछले साल 15 सितंबर को ड्रोन के इस्तेमाल संबंधी नियमों में ढील दी थी। लाइसेंस हासिल करने की प्रक्रि या को आसान बनाया था। साथ ही भारी पेलोड की अनुमति भी दी थी, ताकि ड्रोन को मानव राहित फ्लाइंग टैक्सियों के रूप में प्रयोग में लाया जा सके। इस नाते भारत दुनिया के सबसे बड़े ब्रांड्स को भारत में अपने उत्पाद बनाने और फिर उन्हें दुनिया में निर्यात करने के लिए आकर्षित कर रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार ने भारत में ड्रोन और उसके कम्पोनेंट (यौगिक) में निर्माण के लिए कंपनियों को पीएलआई योजनाओं के तहत अगले तीन साल के लिए 120 करोड़ रुपए का प्रोत्साहन देने की घोषणा की हुई है।
तकनीकी रूप से दक्ष भारतीय युवाओं को भी स्र्टाटअप के तहत यह लाभ मिलेगा। इस नाते देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा क्षेत्न में अंतरिक्ष विज्ञान की अहम भागीदारी के लिए दो नवीन नीतियां भी वजूद में लाई जा रही हैं। इस हेतु प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने भारतीय अंतरिक्ष संगठन यानी इंडियन स्पेस एसोसिएशन (आईएसपीए) का शुभारंभ कर दिया है। इसके तहत स्पेसकॉम (अंतरिक्ष श्रेणी) और रिमोट सेंसिंग (सुदूर संवेदन) नीतियां जल्द बनेंगी। इन नीतियों से स्पेस और रिमोट क्षेत्नों में निजी और सरकारी भागीदारी के द्वार खुल जाएंगे।
वर्तमान में ये दोनों उद्यम ऐसे माध्यम हैं, जिनमें सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर हैं। क्योंकि आजकल घरेलू उपकरण, रक्षा संबंधी, संचार व दूरसंचार सुविधाएं, हथियार और अंतरिक्ष उपग्रहों से लेकर रॉकेट और मिसाइल ऐसी ही तकनीक से संचालित हैं, जो रिमोट से संचालित और नियंत्रित होते हैं। चंद्र, मंगल और गगनयान भी इन्हीं प्रणालियों से संचालित होते हैं। भविष्य में अंतरिक्ष-यात्ना (स्पेस टूरिज्म) के अवसर भी बढ़ रहे हैं। भारत में इस अवसर को बढ़ावा देने के लिए निजी स्तर पर बड़ी मात्ना में निवेश की जरूरत पड़ेगी।
घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के नजरिये से 101 रक्षा उपकरणों के आयात पर पहले से ही रोक लगी हुई है। आयात किए जाने वाले उपकरणों, हथियारों, मिसाइलों, पनडुब्बियों और हेलिकॉप्टरों का निर्माण अब भारत में होगा। इस मकसद की पूर्ति के लिए आगामी 5 से 7 साल में घरेलू रक्षा उद्योग को करीब चार लाख करोड़ रु पए के ठेके मिलेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत-मंत्न के आवाहन के तहत रक्षा मंत्नालय अब रक्षा उत्पादन के क्षेत्न में स्वदेशी निर्माताओं को बड़ा प्रोत्साहन देने की तैयारी में आ गया है।