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भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: सस्ते माल के आयात से नहीं रोजगार बढ़ाने से बढ़ेगी जीडीपी

By भरत झुनझुनवाला | Updated: September 23, 2020 13:36 IST

इस दौर में तमाम छोटी कंपनियों की हालत गड़बड़ रही है. इन छोटी कंपनियों द्वारा अपने परिणाम भी अभी प्रकाशित नहीं किए गए हैं. इसलिए शायद अभी भी अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर सामने नई आई है. 

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ठळक मुद्देनिर्यात बढ़ाने और रोजगार बढ़ाने से देश की अर्थव्यवस्था में तेजी की रहेगी उम्मीदकृषि क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में आगे बढ़ाने में भरोसा करना उचित नहीं, कई मोर्चों पर सक्रिय होने की जरूरत

देश की आय को मापने के लिए देश में हुए उत्पादन का अनुमान लगाया जाता है और आकलन किया जाता है कि देश में कितना उत्पादन हुआ होगा. सरकारी अनुमान के अनुसार इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून 2020 में देश के कुल उत्पादन में 23.9 प्रतिशत की गिरावट आई है.

वहीं, जवाहरलाल यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर अरुण कुमार के अनुसार अप्रैल में जीडीपी में 75 प्रतिशत की गिरावट आई है, मई में 60 प्रतिशत की और जून में 40 प्रतिशत की यानी औसत 58 प्रतिशत की गिरावट पहली तिमाही में आई है. इस प्रकार सरकार और अरुण कुमार के अनुमान में दुगुने से ज्यादा का अंतर दीखता है. मैं समझता हूं कि वास्तविकता इन दोनों के बीच है.

कई छोटी कंपनियों की हालत खराब

ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने जो जीडीपी का अनुमान लगाया है वह कंपनियों द्वारा प्रकाशित परिणाम के आधार पर लगाया है जो कि सही विधि है. लेकिन कोविड संकट के दौरान पहली तिमाही में विशेषता यह है कि केवल कुछ बड़ी कंपनियों जैसे मोबाइल टेलीफोन, बिजली एवं ई-कॉमर्स का ही कारोबार ठीकठाक चला है. 

तमाम छोटी कंपनियों की हालत गड़बड़ रही है. लेकिन इन छोटी कंपनियों द्वारा अपने परिणाम प्रकाशित नहीं किए गए हैं. इसलिए यदि केवल प्रकाशित परिणामों के आधार पर जीडीपी का आकलन करें तो वह बड़ी सफल कंपनियों के आधार पर हो जाता है जो कि अर्थव्यवस्था की सही स्थिति को नहीं बताता है. 

असंगठित क्षेत्र के ब्यौरे को लेकर संशय

सरकार के अनुमान में दूसरी समस्या यह है कि असंगठित क्षेत्र जिसमें किराना दुकान, दर्जी, टैक्सी, छोटे स्कूल, डाक्टर, ढाबे इत्यादि आते हैं-इनके आंकड़े एकत्रित करना पहली तिमाही में असंभव था इसलिए सरकार ने इनके द्वारा उत्पादन में आई गिरावट का अनुमान कैसे लगाया है इसका ब्यौरा उपलब्ध नहीं है. 

इसलिए सरकार द्वारा जो 23.9 प्रतिशत की गिरावट बताई गई है उस पर विश्वास नहीं होता है. सरकार ने यह भी कहा है कि इस तिमाही में कृषि में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि जीडीपी में हुई है. इस पर भी संदेह उत्पन्न होता है. अरुण कुमार के अनुसार अप्रैल में हमारी मंडियों में 50 प्रतिशत आवक कम हुई है. मेरा अपना प्रत्यक्ष अनुभव है कि नींबू का मूल्य जो 40 रु. प्रति किलो पूर्व में था वह इस अवधि में गिरकर 25 रु. हो गया है. 

यदि फल-सब्जी के दाम गिरते हैं तो जीडीपी उसी अनुपात में गिरता है. जैसे एक किलो नींबू यदि 25 रु. में बिके तो वह जीडीपी में 25 रु. की वृद्धि करता है. वही नींबू यदि 40 रु. में बिके तो जीडीपी में 40 रु. की वृद्धि होती है, क्योंकि इस अवधि में कृषि उत्पादों के दाम में गिरावट आई है. इसलिए कृषि की जीडीपी में वृद्धि हुई, इस पर विश्वास करना कठिन हो जाता है. 

कृषि क्षेत्र के भरोसे नहीं चल सकते 

यह मान भी लें कि कृषि में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई तो भी कृषि क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में आगे बढ़ाने में भरोसा करना उचित नहीं होगा. कारण यह कि जीडीपी में कृषि का हिस्सा मात्र 14 प्रतिशत है. 14 प्रतिशत में यदि 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हो तो कुल जीडीपी में 0.24 प्रतिशत की वृद्धि कृषि के कारण हो सकती है जो कि नगण्य है.

जीडीपी के कमजोर होने का एक और आंकड़ा छोटे उद्यमों को दिए गए ऋण का है. रिजर्व बैंक के अनुसार बैंकों द्वारा मझोले, छोटे एवं अति छोटे उद्योगों को मार्च 2020 में 11.49 लाख करोड रु. का ऋण दिया गया था. अप्रैल-मई में इसमें गिरावट आई, जून में यह सुधरा और 11.32 लाख करोड़ तक पहुंच गया जो कि मार्च से कम था. लेकिन विचारणीय यह है कि छोटे उद्योगों को जो 3 लाख करोड़ रु. का सरकार ने ऋण का पैकेज जारी किया था उसके बावजूद कुल ऋण में वृद्धि क्यों नहीं हुई? 

ऐसा प्रतीत होता है कि बैंकों ने छोटे उद्योगों को दिए गए ऋणों की टोपी घुमाई यानी पुराने ऋण का भुगतान ले लिया और नए ऋण उन्हें दे दिए. इस प्रकार कुल ऋण पूर्ववत रहे.

निर्यात बढ़ाने और रोजगार बढ़ाने से बनेगी बात

इस परिस्थिति में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत सरकार को सलाह दी है कि वह अपने निर्यात बढ़ाए और वैश्वीकरण को और पुरजोर तरीके से अपनाए. ऐसा ही हम पिछले 6 वर्षों से करते आ रहे हैं लेकिन हमारा जीडीपी लगातार गिर ही रहा है. इस समय इस नीति को अपनाना और ज्यादा घातक होगा. 

कारण यह कि संकट के समय जब हम वैश्वीकरण को अपनाते हैं तो दूसरे देशों में बना सस्ता माल अपने देश में प्रवेश करता है और हमारे उपभोक्ता के रोजगार साथ-साथ समाप्त हो जाते हैं. इसलिए हमारे सामने विकल्प यह है कि हम जनता को रोजगार उपलब्ध कराएं अथवा सस्ता माल. मैं समझता हूं कि रोजगार उपलब्ध कराना ज्यादा महत्वपूर्ण है. 

सरकार को चाहिए कि तत्काल विदेश से आने वाले तमाम माल पर आयात कर में भारी वृद्धि करे जिससे देश के बंद उद्योगों का काम फिर से चालू हो जाए, जिससे कि देश में रोजगार उत्पन्न हो और अर्थव्यवस्था चल निकले.

टॅग्स :सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)इकॉनोमी
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