भंसाली ने जानबूझ कर मोल लिया है 'पद्मावत' विवाद?
By खबरीलाल जनार्दन | Published: January 22, 2018 02:23 PM2018-01-22T14:23:24+5:302018-01-22T15:07:48+5:30
संजय लीला भंसाली करणी सेना को फिल्म दिखाने के लिए तैयार हो गए हैं। वह हर समझौते के लिए तैयार हैं। फिर अब तक क्या कर रहे थे?
पिछले साल 1 दिसंबर से रिलीज की बांट जोह रही संजय लीला भंसाली निर्देशित पद्मावत आने वाले गुरुवार (25 जनवरी) को देशभर में रिलीज हो जाएगी! राजस्थान में राजपूत महिलाओं के एक समूह का कहना है ऐसा हुआ तो वह जौहर करेंगी। जौहर में राजपूत महिला जिंदा आग में कूदकर जान दे देती हैं। एक शख्स ने फेसबुक लाइव आत्महत्या करने की धमकी दी है। भीलवाड़ा में मोबाइल टावर पर एक शख्स चढ़ गया है, बैन न होने वहां से कूदने की धमकी दे रहा है। नीचे खड़े प्रशासनिक लोग उसे सांत्वना दे रहे हैं। पंजाब के अंबाला में एक सिनेमाघर को उड़ाने की धमकी मिली है। बीती शाम (रविवार, 21 जनवरी) हरियाणा में एक मॉल में विरोधियों सिनेमाघर के टिकट काउंटर पर हमला कर दिया। संसदीय समिति और सुप्रीम कोर्ट से बहाली के बाद फिर से राजस्थान सुप्रीम कोर्ट पहुंची है।
पिछले साल (नवंबर, 2017) में राजस्थान के जयपुर के नाहरगढ़ किले में एक शख्स लटकता मिला था। बगल में पड़े पत्थर पर लिखा था, 'हम सिर्फ पुतले नहीं लटकाते, पद्मावती।'
इससे पहले बीते साल (अप्रैल, 2017) में करणी सेना ने भंसाली को थप्पड़ जड़ा था। जयपुर के जयगढ़ किले में चल रही शूटिंग के दौरान घटी इस घटना के वक्त भंसाली के कैमरे भी तोड़े गए थे। उनका सेट भी तबाह कर दिया गया था।
भारत में एक साल करीब 1000 फिल्में रिलीज होती हैं। अकेले बॉलीवुड में 400 से ज्यादा फिल्में आती हैं लेकिन ऐसे में अगर एक फिल्म राष्ट्रीय मुद्दा बने तो निश्चित ही यह फिल्मकार की जीत है। कम से कम उन्होंने किसी ऐसे मुद्दे छूने का साहस दिखाया जो इतने लोगों प्रभावित करती है। लेकिन भंसाली के मामले में यह नकारात्मक है। उन पर चर्चा उनके सिनेमाई लहर में बहकर तथ्यों को इधर-उधर करने वाले साहसीपन की होती है। कुछ नमूने देखें-
पद्मावत, पद्मावती, खिलजी, घूमर और रानी की कमर
पद्मावती विवाद में भंसाली समझौता, सुलह, मेल-जोल, निपाटारा, समाधान, मध्यमार्ग सबके लिए तैयार हैं। पद्मावती को पद्मावत करने, कथित तौर पर विवादित खिलजी दृश्यों को काटने, घूमर डांस में रानी पद्मावती की दिख रही कमर को साड़ी पहनाने को तैयार हैं।
थप्पड़ खाने, सिर कलम करने जैसे बयानों के बाद भी उनका खून नहीं खौल रहा। उन्होंने एक एफआईआर अभी तक दर्ज नहीं कराई है। अगर उन्हें अपनी सिनेमाई सोच और उसे प्रस्तुत करने की छूट पर भरोसा है तो क्यों खुलकर क्यों नहीं बोलते। तर्क हो सकता है कि वह अपनी मेहनत और पैसे को जाया नहीं जाने देना चाह रहे होंगे। पर यह तर्क इन ज्यादतियों की भरपाई नहीं करता।
बाजीराव, मस्तानी मिले और दोनों को बेटा भी हुआ
साल 2015 के दिसंबर में बाजीराव मस्तानी रिलीज हुई थी। फिल्म में पेशवा बाजीराव और मस्तानी की मुलाकात हुई। दोनों का साथ में डांस हुआ। दोनों की शादी हुई। दोनों का एक बेटा भी हुआ। तब विरोध करने वाले इतने ताकतवर नहीं थे। वे कुछ जगहों पर पोस्टर फाड़ने, जलाने तक ही सीमित रहे। उनका कहना था कि मस्तानी की बाजीराव से कभी मुलाकात भी नहीं हुई थी। आरोप लगे भंसाली सिनेमाई लहर के शिकार है, वह फिल्म की धारा में बह जाते हैं। असल कहानी पीछे रह जाती है।
राम, लीला और गोलियों की रासलीला
फिल्म दो कबीलाई दुश्मनी के बीच दो युवाओं के प्यार पर आधारित रोमांटिक क्राइम ड्रामा था। उनकी बोली से वे राजस्थान के मालूम होते थे। लेकिन फिल्म नाम भंसाली साहब को रामलीला सूझा। दिल्ली हाईकोर्ट में फिल्म पर स्टे लगा। रिलीज तारीख आगे बढ़ी। फिल्म का नाम बदलकर उन्होंने गोलियों की रासलीला-रामलीला रखा। फिर फिल्म रिलीज हुई। तब भी भंसाली के तर्क हो सकते थे कि इससे रामलीला (देशभर में भगवान राम की कहानी की प्रस्तुतिकरण का नाम) से कोई लेना-देना नहीं है। यह महज उनकी फिल्म का नाम भर है। पर क्या कोई और नाम उन्हें नहीं मिला था।
पार्वती चक्रवर्ती (पारो), तवायफ चंद्रमुखी को एक साथ डोलाया
साल 2002 में भंसाली ने देवदास फिर से बनाई। दो बार पहले ही बॉलीवुड में बन चुकी थी। शरदचंद के उपन्यास पर अधारित इस कहानी पर बिमल रॉय जैसे निर्देशक फिल्म बना चुके थे। लेकिन भंसाली को सूझी कि क्यों ना पार्वती चक्रवर्ती (पारो) और शहर की तवायफ चंद्रमुखी को एक साथ डांस (डोला रे) कराया है। इतिहास बन जाएगा। बना भी, गाना सराहा गया है। लेकिन विवाद के बाद। तर्क थे कि ब्राह्मणों के घरों की शुद्धि के लिए धोबी जाति के लोगों से पानी छिड़कवाया जाता है। तब किसी को बुरा नहीं लगता। नगरवधु की परंपरा का जिक्र करते हुए बताया गया कि वही मिट्टी लाते थे तो ब्राह्मणों की शुद्धि होती थी फिर साथ डांस करने से क्या बिगड़ता है। लेकिन यहां भी वही भंसाली की सिनेमाई प्रस्तुतिकरण की छूट थियरी चलती है। गुजारिश में वे अपने किरदार को इच्छामृत्यु दिलाते-दिलाते रह गए थे। इसलिए फिल्म विवादों से बच गई थी।
अब सवाल है कि भंसाली अगर अपनी सिनेमाई समझ और उसकी छूट को समझते हैं तो 15 साल से क्यों बार-बार समझौता कर रहे हैं। और ऐसा नहीं है तो वह जानबूझकर विवाद मोल ले रहे हैं।