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लोकसभा चुनाव को देखते हुए बिहार में शुरू होने जा रही है रैली की सियासत, नवंबर में सभी दिखाएंगे अपना दमखम

By एस पी सिन्हा | Updated: June 10, 2023 16:21 IST

दलित वोट बैंक पर दावा करने वाली बिहार की दो बड़ी पार्टियां हम और लोजपा(रा) नवंबर में रैली करने जा रही हैं।

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ठळक मुद्देलोकसभा चुनाव 2024 के लिए सभी पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए अपना दम भर रही हैबिहार में चुनावी रैली की तैयारी शुरू हो गई है नंवबर में सभी पार्टियां चुनावी रैली करने की तैयारी में है

पटना: बिहार में लोकसभा चुनाव से पहले रैली की सियासत शुरू होने वाली है। इसकी शुरूआत नवंबर महीने में होगी, जिसमें राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने स्तर से शक्ति प्रदर्शन करेंगी।

दलित वोट बैंक पर दावा करने वाली बिहार की दो बड़ी पार्टियां हम और लोजपा(रा) नवंबर में रैली करने जा रही हैं। इसके साथ ही सवर्ण वोट बैंक को अपने पक्ष में एकजुट करने के लिए आनंद मोहन रैली करने वाले हैं।

चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) की ओर से पटना के गांधी मैदान में पार्टी के स्थापना दिवस के अवसर पर 28 नवंबर को रैली की जाएगी। तो वहीं जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा भी इसी महीने गांधी मैदान में अपनी ताकत दिखाएगी।

इस बात की सहमति पार्टी की कोर कमिटी की बैठक में बनी है।वहीं, सवर्ण वोट बैंक को महागठबंधन के पक्ष में मजबूत करने के लिए पूर्व सांसद बाहुबली आनंद मोहन भी घोषणा कर चुके हैं कि नवंबर में पटना के गांधी मैदान में रैली करेंगे। लोजपा (रामविलास) का तो स्थापना दिवस है।

लेकिन बाकी पार्टियां नवंबर के महीने को इसलिए पसंद कर रही हैं कि वह समय ठंड की शुरुआत का समय होगा। धूप में आयोजन करना आसान होगा। धनकटनी आदि के बाद लोग गांवों में फ्री भी होंगे और रैली में बढ़-चढ़ कर भाग भी ले सकेंगे। बता दें कि बिहार में दलित वोटरों की संख्या लगभग 16 फीसदी है।

यह वोट बैंक किसी भी पार्टी को चुनाव में बजट बनाने के लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाला है। इसी 16 फीसदी वोट बैंक पर जीतन राम मांझी के साथ ही चिराग पासवान की नजर है। बिहार में 6 ऐसे लोकसभा क्षेत्र हैं जो आरक्षित सीट हैं। ये सीटें हैं सासाराम, गया, जमुई, हाजीपुर, गोपालगंज और समस्तीपुर। ऐसे में लोजपा और हम दोनों पाटिया यहां पर मजबूत उम्मीदवार देकर इस वोट बैंक पर अपना कब्जा जमाना चाहेगी।

हालांकि, इनमें से लोजपा (रामविलास) और लोजपा (पारस) का कब्ज़ा तीन सीटों पर पहले से हैं। वहीं, गया में मांझी का शुरू से ही दबदवा रहा है। इस लिहाजा यह काफी महत्वपूर्ण होगा कि इन दोनों दलों में कौन दलितों को अपने साथ पूरी तरह से एकजुट कर पाता है। इधर, जेल से बाहर निकलने के बाद आनंद मोहन भी नवंबर में महारैली करने का ऐलान कर दिया है।

इसको लेकर वो राज्य के कई जिलों में जा रहे हैं और सवर्ण समुदाय के लोगों से इस रैली में आने का निमंत्रण दे रहे हैं। इनकी नजर भी भाजपा के कोर वोट बैंक कहें जाने वाले सवर्ण वोट बैंक पर होगी। आनंद मोहन जो दावा कर रहे हैं, उसमें सफल होते हैं तो फिर भाजपा के लिए काफी समस्या हो सकती है।

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